यह एक स्थापित तथ्य है कि वैश्वीकरण ने आधुनिक दुनिया को बदल दिया है। यह लोगों के व्यापार करने, यात्रा करने और एक-दूसरे से जुड़ने के तरीके को सुव्यवस्थित कर रहा है। वैश्वीकरण कई लाभ प्रदान करता है, हालांकि यह अपने स्वयं के आर्थिक और सांस्कृतिक परिणामों के साथ आता है, जिन्हें कभी-कभी प्रबंधित करना मुश्किल हो सकता है।
जैसा कि उपरोक्त चर्चा से समझा गया है, वैश्वीकरण का अर्थ वस्तुओं, सेवाओं और लोगों की सीमाओं के पार आवाजाही है और इसमें तीन मुख्य विशेषताएं शामिल हैं:
i) उत्पादन के अंतर्राष्ट्रीयरण के साथ उत्पादन का संरचनात्मक परिवर्तन;
ii) वस्तुओं और सेवाओं में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का विस्तार; और
iii) वैश्विक पूंजी प्रवाह का विस्तार और सघनीकरण |
जैसा कि हमने पहले उल्लेख किया है, यह असंभव है कि वैश्वीकरण की कभी वापसी होगी, हालांकि इसकी प्रगति की गति भिन्न हो सकती है। वैश्वीकरण के युग का विकास अपनी चुनौतियों के साथ आता है। वैश्वीकरण को अधिक प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है, ताकि विकास सही दिशा में हो सके । नीचे वैश्वीकरण की कुछ चुनौतियों के साथ-साथ उनका सामना करने की कार्यनीतियां दी गई हैं:
लोक संस्थानों में खुलेपन और पारदर्शिता की आवश्यकता
भ्रष्टाचार को रोकने के लिए पारदर्शिता एक मूलभूत कारक है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए केंद्र, राज्य और स्थानीय सभी स्तरों पर खुला और पारदर्शी शासन महत्वपूर्ण है। भ्रष्टाचार से सुशासन को खतरा होता है, संसाधनों का गलत आवंटन होता है, लोक और निजी क्षेत्र के हितों को नुकसान पहुंचता है और लोक नीति विकृत होती है। हम सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार के कारण बड़ी संख्या में लोक अनुबंध रद्द हो जाते हैं। जैसा कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने अपनी जुलाई 2018 की रिपोर्ट में खुले अनुबंध के लिए सिफारिशों पर कहा है: “खरीद सरकार की आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण गतिविधियों में से एक है, लेकिन यह लोक क्षेत्र के सबसे बड़े भ्रष्टाचार जोखिमों में से एक है”। भारत भी वैश्वीकरण के दौर में भ्रष्टाचार की चुनौतियों का सामना कर रहा है, और इसलिए लोगों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील बनने में राज्य संस्थानों की भूमिका पर जोर देने की जरूरत है।
वैश्वीकरण की प्रमुख चुनौती लोक संस्थानों को इस तरह से मजबूत और बहाल करना है कि लोक हितों की सुरक्षा में उनकी वैधता और प्रभावशीलता सुनिश्चित हो। राज्य को शासन के विभिन्न स्तरों पर, राज्य और गैर-राज्य के विभिन्न कर्ताओं को शामिल करते हुए, योजना, परामर्श, संधिवार्ता, और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के 'लिंकिंग पिन के रूप में कार्य करने के लिए कहा जाता है। सुशासन प्रथाओं को अधिक सार्थक, खुला और पारदर्शी होना चाहिए और इसके लिए लोक संस्थानों की जवाबदेही को मजबूत करने की जरूरत है। एक बाजार अर्थव्यवस्था में, विकास को विनियमित किया जाना चाहिए , लेकिन केवल एक हद तक | बल्कि इसे लोक संस्थानों द्वारा संचालित किया जाना चाहिए ,जो अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता और निष्पक्षता की नींव स्थापित करते हैं। प्रभावा और सुलभ लोक संस्थान न केवल अनुकूल हैं, बल्कि वैश्वीकरण के बढ़ते युग में स्थिर विकास के लिए आवश्यक शर्तें हैं।
नौकरशाही की बदलती भूमिका
आज के वैश्वीकरण युग में राज्य के कार्यों और भूमिका में व्यापक परिवर्तन आया है। राज्य की जिम्मेदारियों का दायरा बदल गया है और नीति क्षेत्र में और राज्य की उच्च-स्तरीय कौशल, के लिए गुणात्मक और मात्रात्मक की आवश्यकताओं में महत्वपूर्ण संशोधन हए हैं। निजी उद्यम और व्यक्तिगत पहल के लिए एक प्रभावी ढांचे को सक्षम करने के लिए अब केंद्र-बिंदु प्रबंधन और वस्तुओं और सेवाओं के प्रत्यक्ष उत्पादन सेकार्यनीतिक योजना पर स्थानांतरित कर दिया गया है। विकेंद्रीकरण, नौकरशाही के न्यूनीकरण और अविनियमन ने न कंवल स्थानीय सरकार को बल्कि गैर-राज्य कर्ताओं को भी महत्व दिया है, जो विभिन्न विकास गतिविधियों के लिए जिम्मेदार हैं।
नौकरशाही को राष्ट्रीय हित और लोगों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए नीति निर्माण में मदद करते हुए राजनीतिक कार्यपालिका का मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है। इसे नीतियों को भी तैयार करने की आवश्यकता है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का आत्मनिर्भर, दक्ष और न््यायसंगत उपयोग हो सके। सिविल सेवकों से अपेक्षा की जाती है कि वे ऐसे कार्य करें, जो आम लोगों के लिए फायदेमंद हों। सिविल सेवकों को प्रभावी प्रशासन के लिए तैयार रहना चाहिए और खुद को राजनीतिक रूप से तटस्थ और लोगों के हितों के प्रति समर्पित रखकर स्थिरता बनाए रखनी चाहिए। वे समाज की सेवा करने और लोगों को अपने अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक बनाने के लिए अधिक से अधिक कौशल प्रदर्शित कर सकते हैं।
इसलिए, एक वैश्वीकृत आर्थिक प्रणाली में सफल होने के लिए, सिविल सेवकों को भागीदारी और जवाबदेही; प्रतिस्पर्धा और संघर्ष य उपयोगकर्ता और नागरिक; लोक हित और बाजार हित; के बीच एक अच्छा संतुलन बनाना चाहिए, साथ ही पुराने और नए कानूनों को निष्पक्ष रूप से लागू करना चाहिए और कमजोर वर्गों को उनके द्वारा संरक्षित करना चाहिए। सिविल सेवकों को न केवल लोक सेवाओं में बल्कि सरकार के भीतर भी दक्षता को बढ़ावा देना चाहिए। सहभागी उपायों को लक्ष्य के रूप में लिया जाना चाहिए, क्योंकि वे लोगों को स्वतंत्रता प्रदान करने में मदद करते हैं। नौकरशाही को अपने दृष्टिकोण में अधिक प्रतिस्पर्धा-उन्मुख बनने की आवश्यकता है, उन्हें वैश्वीकृत परिदृश्य की आवश्यकताओं के अनुसार, विशेष प्रशिक्षण देने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। वैश्वीकरण के मुद्दों से निपटने के लिए एक सामान्यवादी नहीं, बल्कि एक विशेषज्ञ दृष्टिकोण की आवश्यकता है। तदनुसार, नौकरशाहों की तैनाती को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है, ताकि उनके क्षेत्रों या विशेषज्ञता के क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों को बेहतर तरीके से सुलझाया जा सके।
सूचना और संचार पग्रौद्योगिकियों का विकास
वैश्वीकरण की पृष्ठभूमि में, सूचना और संचार प्रौद्योगिकियां (आई सी टी) अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में गतिशील परिवर्तनों पर जोर दे रही हैं। वैश्विक सूचना संचार प्रणाली भी तेजी से और मौलिक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। परिणामस्वरूप, देशों और महाद्वीपों के बीच की राष्ट्रीय सीमाएँ अस्पष्ट हो गई हैं, और सूचनाओं को स्थानांतरित करने और संसाधित करने की क्षमता कई गुना बढ़ गई है। आई सी टी तेजी से संगठनों में और सूचना के उत्पादन, पहुंच, अनुकूलन और लागू करने की समाज की क्षमता में लगातार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उन्हें अक्सर औद्योगिक युग के बाद के साधनों के रूप में देखा जा रहा है, जो ज्ञान के हस्तांतरण और अधिग्रहण को प्रोत्साहित करने की उनकी क्षमता के कारण ज्ञान अर्थव्यवस्था की नींव रख रहे हैं।
आई सी टी का सबसे शक्तिशाली आधार इंटरनेट है, जो कई क्षेत्रों के स्पेक्ट्रम का विस्तार करता है। आई सी टी क्षेत्र और डिजिटल अर्थव्यवस्था भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 13 प्रतिशत से अधिक का योगदान करती है। भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था सूचना प्रौद्योगिकी (आई टी-11), बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट, आई टी-सक्षम सेवाओं (आई टी ई एस), ई-व्यवसाय, इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण, डिजिटल भुगतान और डिजिटल संचार सेवाओं के माध्यम से सालाना अरबों का उत्पादन करती है। जबकि कोविड-19 महामारी ने भारत के डिजिटल परिवर्तन को प्रभावित किया है, कंपनियां अपनी आई टी कार्यनीतियों में बदलाव कर रही हैं, परिचालन लागत का प्रबंधन कर रही हैं, प्रक्रियओं को स्वचालित कर रही हैं, और बेहतर और पहले से अच्छी सेवा वितरण के लिए नई प्रणालियों को लागू कर रही हैं। रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन, बिग डेटा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन, क्लाउड कप्यूटिंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, साइबर सिक्योरिटी और वर्चुअल रियलिटी जैसी उभरती तकनीकों की मदद से ये प्रयास संभव हुए हैं।
भारत में एक जटिल और अक्सर चुनौतीपूर्ण नियामक वातावरण है, और राष्ट्रीय स्तर पर नए नियमों और उद्योग प्रोत्साहन योजनाओं की अक्सर घोषणा की जाती है। भारत ने हाल ही में डेटा सुरक्षा, गोपनीयता, सीमा पार डेटा प्रवाह और डेटा स्थानीयकरण को प्रभावित करने वाले नए विधेयकों और दिशानिर्देशों की घोषणा की। दक्षता और प्रभावशीलता बढ़ाने के उद्देश्य से शासन और प्रशासनिक सुधारों के मामले में आई टी की दोहरी भूमिका है। सबसे पहले, आई टी की प्रक्रियाओं की कुशलता बढ़ाने की क्षमता के माध्यम, से आई टी का उपयोग आंतरिक सरकारी प्रक्रियाओं में सुधार के लिए महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, मतदाता सूची तैयार करने और कल्याण पात्रता की सूची जैसे कार्यों के लिए डेटा प्रविष्टि की लागत को कम किया जा सकता है, और सटीकता में सुधार किया जा सकता है। दूसरे, नागरिक-सरकार इंटरफेस को बदलने के लिए आई टी का उपयोग करके पारदर्शिता, जवाबदेही और संवेदनशीलता सभी को बढ़ाया जा सकता है।
नई प्रौद्योगिकियां, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अनिवार्य रूप से श्रम बाजार में एक बड़े बदलाव की ओर ले जाएंगी, जिसमें कुछ क्षेत्रों में नौकरियों का विलुप्त होना और बड़े पैमाने पर अन्य क्षेत्रों में अवसरों का उत्पन्न होना शामिल है। डिजिटल अर्थव्यवस्था को कई नए और विभिन्न कौशल, नई सामाजिक सुरक्षा नीतियां और काम और अवकाश के बीच एक नए संबंध की आवश्यकता होगी। यह अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था ने नए जोखिम भी उत्पन्न किए हैं, जैसे साइबर सुरक्षा उल्लंघन, अवैध आर्थिक गतिविधियां को सुविधाजनक बनाना और गोपनीयता की अवधारणाओं को चुनौती देना। सरकारों, नागरिक समाज, शैक्षणिक समुदाय, वैज्ञानिक समुदाय और प्रौद्योगिकी उद्योग को नए समाधान खोजने और वैश्वीकरण की इस गंभीर चुनौती का समाधान करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। एक ऐसी डिजिटल अर्थव्यवस्था, जो बिना किसी भेद-भाव के सभी तक पहुंचाती है, के निर्माण के लिए समावेशिता आवश्यक है ।
विकसित देशों से विकासशील देशों में ऑद्योगिकी का हस्तांतरण
विकासशील देशों को प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण पिछले लगभग त्तीस वर्षो में अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों का सबसे चर्चित क्षेत्र बन गया है। विशेष रूप से, राष्ट्रीय सीमाओं के पार ऐसे देशों में प्रौद्योगिकी के विकास, अनुप्रयोग और प्रसार की प्रक्रिया में अंतर्राष्ट्रीय निगमों की भूमिका ने विशेष रुचि उत्पन्न की है। इसका एक परिणाम राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय स्तरों पर कई नीतिगत पहलकदमियों का संस्थानीकरण रहा है, जिसके कारण राष्ट्रीय कानूनों और अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेजों, दोनों में अधिक संख्या में कानूनी प्रावधानों को लागू किया गया है।
व्यापक परिदृश्य में, वे अंतर्राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को उत्पन्न करते हैं, जिसमें देशों के बीच ज्ञान का आदान-प्रदान होता है, जो न केवल ज्ञान और सूचना तक सीमित है, बल्कि हस्तांतरण की गई प्रौद्योगिकी को लागू करके और उसका प्रभावी ढंग से उपयोग करके कौशल हस्तांतरण, निर्माण के तरीकों, प्रौद्योगिकी के और अधिक विकास और नवाचार को भी शामिल करता है।
कई भारतीय कंपनियां विभिन्न प्रकार के वित्तीय, तकनीकी और अन्य प्रकार के सहयोग के लिए तैयार हैं। भारत अब एक खुली अर्थव्यवस्था है, इसलिए अधिक से अधिक भारतीय कंपनियां तकनीकी, वित्तीय और अन्य प्रकार के सहयोग में प्रवेश कर रही हैं। हालांकि, सभी सहयोग सफल नहीं होते हैं, भले ही वे उचित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों के तहत किए गए हों। कई कारणों से, इन सहयोग समझौतों को लागू करने में विवाद उत्पन्न होते हैं।
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण उद्योग को मजबूत करता है, और नए व्यावसायिक अवसरों की पहचान करने में मदद करता है, जो प्रौद्योगिकी प्रदाताओं की जानकारी और प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने में योगदान देता है। परिणामस्वरूप अंततः, व्यापार क्षेत्र का विस्तार होता है और प्रौद्योगिकियों और प्रणालियों के विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग पर ध्यान केंद्रित होता है। इसके अलावा, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रौद्योगिकी और प्रणालियों के व्यापक उपयोग और जागरूकता को बढ़ावा देता है, और नए और बेहतर उत्पादों, प्रक्रियाओं और सेवाओं के साथ प्रौद्योगिकी दाताओं और प्राप्तकर्ताओं के राजस्व में वृद्धि करके आर्थिक लाभ में मदद करता है, जिससे दक्षता और प्रभावशीलता, बाजार हिस्सेदारी और लाभ में वृद्धि होती है।
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