संवेगों का स्वरूप और विशेषता
संवेग क्या है? आम लोगों के लिए इसे परिभाषित करना बहुत सरल है। प्रसन्नता, खुशी, क्रोध, उदासी, ईर्ष्या, प्रेम आदि अनुभव किए जाने वाले सामान्य संवेग हैं।
उदाहरण स्वरूप हम अच्छा खाना खाते हैं और संतुष्ट महसूस करते हैं। हम अच्छी फिल्म देखते हैं और प्रसन्न महसूस करते हैं। हम प्रियजनों के साथ समय बिताते हैं और प्रेमपूर्ण महसूस करते हैं। हम खेल में हार जाते हैं और दुखी महसूस करते हैं। स्वयं को निम्नलिखित स्थितियों में कल्पना करें:
· आप अपना प्रवेश पत्र लेने के लिए दो घंटे से अधिक समय से कतार में खड़े हैं। अंततः आपकी बारी आने वाली है और दो अन्य लोग आपके आगे खड़े हैं, परंतु तभी प्रवेश-पत्र बांटने वाला कार्मिक भोजनावकाश के चलते काम बंद कर देता है और खिड़की बंद कर देता है।
· आप छात्रों और शिक्षकों से भरे सभागार में अपनी प्रस्तुति शुरू करने के लिए मंच के पीछे प्रतीक्षा कर रहे हैं।
· आप तीन वर्ष के अंतराल के बाद बहुत करीबी मित्र से मिलने जा रहे हैं, इस दौरान वह विदेश में रहकर पढ़ाई कर रहा था।
· पसंदीदा क्रिकेट या फुटबॉल टीम विश्व कप जीतती है।
उपरोक्त उदाहरणों से आपको ऐसे तीव्र संवेगों का स्मरण हुआ होगा जिन्हें आपने अपने जीवन में आम तौर पर अनुभव किया होगा। वास्तव में, इस इकाई को पढ़ते हुए अगर आप आज के दिन के बारे में सोचेंगे तो आप यह पहचानने में सक्षम हो सकेंगे कि दिन शुरू होने पर आप जैसा अनुभूत कर रहे थे, वह, जैसा आप अभी अनुभूत कर रहे हैं, उससे कितना अलग है।
संवेग अस्पष्ट रूप से जुड़ी घटनाओं की जटिल श्रृंखला है जो उद्दीपन से शुरू होती है और इसमें भावनाएं, मनोवैज्ञानिक परिवर्तन, कार्य के लिए आवेग और विशिष्ट लक्ष्य-निर्देशित व्यवहार शामिल हैं।
बुडवर्थ ने संवेग को इस तरह से परिभाषित किया है- यह मनुष्य के एक ऐसी गतिशील अवस्था है जो स्वयं व्यक्ति को भावनाओं के रूप में प्रतीत होता है और दूसरे व्यक्तियों को एक अशांत पेशीय और ग्रंथि संबंधी गतिविधि के रूप में प्रतीत होती है।
मॉरिस (1979) का कहना है कि संवेग ऐसा जटिल भावात्मक अनुभव है जिसमें विसृत शरीर-क्रियात्मक परिवर्तन शामिल होते हैं और जिसे लाक्षणिक व्यवहार पैटर्न द्वारा बाहरी रूप से व्यक्त किया जा सकता है।
इस प्रकार, संवेगों को किसी विशेष आंतरिक या बाहरी घटना की प्रतिक्रिया में अनुभव किया जाता है। ऐसी प्रतिक्रिया में शरीर में शारीरिक उत्तेजना जैसे हृदय गति, रक्तचाप, पसीना, हार्मोन छोड़ना आदि शामिल हैं। दूसरा, इसमें कारवाई करने की अभिप्रेरणा सक्रीय हो जाती है जैसे की खुशी या प्रसन्नता करने वाली चीजें और संवेग का संप्रत्यय कार्यों को करना, और उन चीजों या लोगों से बचना जो दर्द या अप्रियता को जनम देते हैं। तीसरा, वस्तुओं, व्यक्तियों और स्थितियों से जुड़े हमारी संवेदनाओं, प्रत्यक्षणों और विचारों से हमारे संवेग सृजित होते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम किसी चीज को किस तरह समझते हैं, इसके बारे में किस तरह सोचते हैं और किस तरह इसकी व्याख्या करते हैं। चौथा, संवेग अपनी तीव्रता में भिन्न होते हैं, उदाहरणार्थ, प्रसन्नता को सातत्यक के सबसे निचले सिरे पर महज सुखकर के तौर पर और सातत्यक के सबसे ऊपरी स्तर पर रोमांचित या उत्साहित के रूप में अनुभव किया जा सकता है। इसी तरह चिडचिड़ापन और परेशान होना क्रोध के मृदु रूप हैं जबकि उग्र और क्रोधोन्मत्त होना क्रोध संबंधी भावनाओं के कठोर रूप हैं।
किसी व्यक्ति के लिए संवेग वांछनीय या अवांछनीय हो सकते हैं, यह इस बात पर निर्मर करता है कि संबंधित घटना को 'सकारात्मक' माना जाता है या 'नकारात्मक' अथवा क्या यह किसी व्यक्ति के लिए कोई अनुकूलन संबंधी कार्य करता है। वे मानव व्यवहारों के अलग-अलग पहलुओं जैसे हमला, भागना, आत्मरक्षा, संबंध बनाना, प्रजनन करना आदि की प्रेरणा देते हैं। हालांकि, इनमें से कुछ प्रकार्यों का अंततोगत्वा परिणाम नकारात्मक हो सकता है जैसे मंच पर घबराहट होना, अत्यधिक क्रोध की अभिव्यक्ति तथा बेवजह आक्रामकता इत्यादि। हालांकि परिणाम सकारात्मक हों या नकारात्मक, फिर भी संवेग जब सृजित होते हैं तो उल्लेखनीय प्रमाव सृजित करते हैं। हम अपने परिवेश के अनुकूल होने के लिए हमें स्वयं के भावनाओं को उचित रूप से समझना और व्यक्त करने की आवश्यकता है।
संवेग भावनाओं के समान नहीं हैं, मले ही हम दोनों शब्दों का प्रयोग समान अर्थ के लिए करते हैं। भावना शब्द किसी व्यक्ति के निजी सांवेगिक अनुभव या किसी विशिष्ट संवेग के आल्म-प्रत्यक्षण को संदर्भित करने के लिए उपयोग किया जाता है। जब कोई घटना होती है, तो व्यक्ति पहले सजगता (संवेग) के बिना ही शारीरिक स्तर पर स्वचालित रूप से प्रतिक्रिया करता है और फिर वह इस (संवेग) का पंजीकरण या मूल्यांकन करता है। उदाहरण के लिए, जब कोई अपने आसपास सांप देखता है, तो उसके दिल की धड़कन, श्वास, पसीना (शरीर क्रियात्मक उत्तेजना) तुरंत बढ़ सकते है, जिससे भागने की क्रिया हो सकती है। केवल इसके बाद ही किसी को एहसास हो सकता है कि उन्होंने जो भावना अनुभव की, शायद यह भय की भावना थी। संवेगों से भावनाएं सृजित होती हैं। इस प्रकार, हालांकि अपने दैनिक जीवन में हम संवेगों और भावनाओं का उपयोग परस्पर समान अर्थ में करते हैं, ये दोनों एक दूसरे से अत्यंत भिन्न हैं।
एक अन्य संबंधित संप्रत्यय मनः:स्थिति है। संवेग हालांकि कम समय तक रहते हैं और किसी विशेष घटना की प्रतिक्रिया में सृजित होते हैं, मन:स्थितियां आम तौर पर लंबे समय तक यहां तक कि कई दिनों तक रहती हैं, और निश्चित रूप से किसी निश्चित, तत्काल घटना या कारण से संबद्ध नहीं होती, मनः:स्थितियां की तीव्रता कम होती है। संवेग किसी घटना या किसी व्यक्ति पर निर्देशित होते है (जैसे कि आप अपने भाई पर गुस्सा करते हैं या आप पंक्ति में प्रतीक्षा करने पर निराश होते हैं), मनःस्थिति बिना किसी स्पष्ट कारण के सृजित हो सकती है, जैसे किसी सुबह चिड़चिड़ा उठना, बेशक पिछले दिन चाहे कुछ भी अप्रिय नहीं हुआ हो। फिर भी, मनःस्थिति महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह भी हमारे कार्यों को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, सप्ताहांत में हम जब सकारात्मक मनःस्थिति में होते हैं तो मित्रों से सामाजिक रूप से घुलना-मिलना चाहते हैं और नकारात्मक मनःस्थिति की स्थिति में हम सामाजिक मेलजोल से बचना चाहते हैं।
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