सांवेगिक बुद्धि सांवेगिक और सामाजिक कौशलों का ऐसा समूह है जो उस तौर-तरीके को प्रभावित करता है जिससे हम स्वयं को समझते और अभिव्यक्त करते हैं, सामाजिक संबंध विकसित और बरकरार रखते हैं, चुनौतियों का सामना करते हैं और प्रभावी और सार्थक तरीके से सांवेगिक जानकारी का उपयोग करते हैं। पिछले कई वर्षों से सांवेगिक बुद्धि की कई परिभाषाएं प्रस्तावित की गई हैं।
इसकी सबसे लोकप्रिय परिभाषा इस प्रकार है. “सांवेगिक बुद्धि स्वयं एवं अन्य के संवेगों को पहचानने और उनको अच्छी तरह से प्रबंधित करने की क्षमता है”। यह परिभाषा इस बात पर बल देती है कि हमारे आंतरिक और सामाजिक विश्व की समझ बनाने और तदनुसार निर्णय लेने के लिए संवेगों के बारे में जानकारी का इस्तेमाल किया जा सकता है। रेवेन बार-ऑन (2002) जैसे अन्य दिद्वानों ने सांवेगिक बुद्धि को "गैर-संज्ञानात्मक क्षमताओं, दक्षताओं
और कौशलों का ऐसा व्यूह जो परिवेश की मांगों और दबावों का सामना करने में सफल होने की व्यक्ति की क्षमता को प्रभावित करता है” के रूप में परिभाषित करके इसके अनुकूलन संबंधी प्रकार्य पर बल दिया है।
सलोवी एवं मेयर (1990) ने शुरूआत में सांवेगिक बुद्धि को सामाजिक बुद्धि के उप-समूह के रूप में परिभाषित किया - “यह व्यक्ति की स्वयं अपनी' भावनाओं और संवेगों' की निगरानी करने की क्षमता है ताकि उनके बीच अंतर किया जा सके और इस जानकारी का उपयोग व्यक्ति के चिंतन और कार्यों के मार्गदर्शन के लिए किया जा सके”। बाद में, इस परिभाषा को और अधिक व्यापक बनाने के लिए इसे संशोधित किया गया। मेयर, सलोवी और कारुसो (2004) ने इसे “संवेगों के बारे में तर्क-वित्तर्क, और संवेगों के चिंतन को संवर्धित करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया है। इसमें संवेगों को सटीक रूप से अनुभव करने, और सांवेगिक और बौद्धिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए संवेगों को विचारपूर्वक नियंत्रित करने संबंधी क्षमताएं शामिल हैं"। इस दृष्टिकोण में संवेगों और बुद्धि के संयोग पर बल दिया जाता है और इसे अन्य सैद्धांतिक ढ़ाचों में भी शामिल किया गया है (सियारोकी, चान और कापुटि, 2000; रॉबर्ट्स, जेडनर एवं मैथ्यूज (2001)
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