हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल से हुई और इसका श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है। राजा राममोहन राय ने ही सबसे पहले प्रेस को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ा। भारतीयों के सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक हितों का समर्थन किया।
समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रहार किये और अपने पत्रों के जरिए जनता में जागरूकता पैदा की। राय ने कई पत्र शुरू किये। जिसमें अहम हैं-साल 1780 मैं प्रकाशित "बंगाल गजट'। बंगाल गजट भारतीय भाषा का पहला समाचार पत्र है। इस समाचार पत्र के संपादक गंगाधर भट्टाचार्य थे।
इसके अलावा राजा राममोहन राय ने मिरातुल, संवाद कौंमुदी, बंगाल हैराल्ड पत्र भी निकाले और लोगों में चेतना फैलाई। 30 मई 826 को कलकत्ता से पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में निकलने वाले 'उदन्त मार्तण्ड' को हिंदी का पहला समाचार पत्र माना जाता है।
इस समय इन गतिविधियों का चूँकि कलकत्ता केनद्र था इसलिए यहाँ पर सबसे महतवपूर्ण पत्र-पत्रिकाएँ - उददंड मार्तड, बंगदूत, प्रजामित्र मार्तड तथा समाचार सुधा वर्षण आदि का प्रकाशन हुआ। प्रारमभ के पाँचों सापताहिक पत्र थे एवं सुधा वर्षण दैनिक पत्र था। इनका प्रकाशन दो-तीन भाषाओं के माध्यम से होता था।
'सुधाकर' और “बनारस अखबार' सापृताहिक पत्र थे जो काशी से प्रकाशित होते थे। 'प्रजाहितैषी' एवं बुद्धि प्रकाश का प्रकाशन आगरा से होता था। 'तत्वबोधिनी' पत्रिका सापृताहिक थी और इसका प्रकाशन बरेली से होता था। 'मालवा' सापृताहिक मालवा से एवं 'वृतान्त' जममू से तथा “ज्ञान प्रदायिनी पत्रिका' लाहौर से प्रकाशित होते थे।दोनों मासिक पत्र थे। इन पत्र-पत्रिकाओं का प्रमुख उद्देश्य एवं सन्देश जनता में सुधार व जागरण की पवित्र भावनाओं को उत्पन्न कर अनुयाय एवं अत्याचार का प्रतिरोध/विरोध करना था। हालॉकि इनमें प्रयुकत भाषा (हिनदी) बहुत ही साधारण किसम की (टूटी-फूटी हिनदी) हुआ करती थी। सन् 868 ई. में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने साहित्यिक पत्रिका कवि वचन सुधा का प्रवर्तन किया। और यहीं से हिन्दी पत्रिकाओं के प्रकाशन में तीव्रता आई।आलोचना, हिंदी, वसुधा, अक्षरपर्व, वागर्थ, आकल्प, साहित्यवैभव, परिवेश, कथा, संचेतना, संप्रेषण, कालदीर्घा, दायित्वबो ध, अभिनव कदम, हंस, बया आदि वे पत्रिकाएँ हैं, जो हिंदी भाषा की समृद्धि का प्रतीक हैं।
आलोचना हिन्दी साहित्य जगत् मैं मूलतः आलोचना केंद्रित पत्रिकाओं में सर्वप्रथम, सर्वाधिक लंबे समय तक प्रकाशित एवं शीर्ष स्थानीय पत्रिका है। इसका प्रकाशन राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड के द्वारा होता है। बीच में दो बार प्रकाशन-क्रम भंग होने के बाद 'फिलहाल इस पत्रिका के प्रकाशन का तीसरा दौर जारी है। विभिन्न विचारधाराओं के श्रेष्ठ 'विटयानों ने समय-समय पर इसका संपादन किया है।
डॉ० नामवर सिंह सबसे अधिक समय तक इस के संपादन से जुड़े रहे हैं। अधिकांशतः सारगर्भित एवं विचारोत्तेजक आलेखों के प्रकाशन, विभिन्न समसामयिक मुद्दों में प्रभावकारी हस्तक्षेप तथा अनेक महत्वपूर्ण विशेषांकों के प्रकाशन के द्वारा इस पत्रिका ने संपूर्ण हिंदी साहित्य जगत् में अपनी विशिष्ट पहचान बनायी है।
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