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मार्क्स के अनुसार श्रमशक्ति क्‍या है?

 मार्क्स के अनुसार श्रमशक्ति उपयोगी कार्य करने की एक ऐसी क्षमता है जो उत्पादों के मूल्य को बढ़ा देती है। श्रमिक अपनी श्रमशक्ति अर्थात्‌ कार्य करने की क्षमता को बेचते है जिससे वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि होती है। वे नकद वेतन के बदले में पूंजीपतियों को अपनी श्रमशक्ति बेचते है।

हमें श्रमशक्ति और श्रम में अंतर को समझाना चाहिए। श्रम अपनी शक्ति लगाने की वह प्रक्रिया है जिससे वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि होती है। जबकि श्रमशक्ति किसी भी वस्तु में अतिरिक्त मूल्य बढ़ाने का साधन है। पूंजीपति कच्चे माल को खरीदने के लिए पूंजी निवेश करते है तथा बाद में उत्पादित वस्तुओं को अधिक कीमत पर बेच देते है। यह तभी संभव है जब वस्तु के मूल्य में वृद्धि हो। मार्क्स के अनुसार श्रमशक्ति वह क्षमता है जिसके जुड़ने से वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाता है। पूंजीपति श्रमशक्ति को खरीदने व उपयोग करके श्रमिक से श्रम हथियाने में सफल होता है। वस्तु के अतिरिक्त मूल्य का ख्रोत है यह श्रम।

मार्क्स के अनुसार पूंजीवादी उत्पादन व्यवस्था में अतिरिक्त उत्पादन मूल्य का ख्रोत एक विशिष्ट प्रक्रिया है। यह ऐसी प्रक्रिया है जिससे श्रमिक अपने श्रम द्वारा वस्तुओं के मूल्य में अधिक वृद्धि करता है। लेकिन वृद्धि की तुलना में पूंजीपति श्रमशक्ति का कम मूल्य देते है।

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