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वैचारिक दृष्टि वाले सिद्धांतकारों का क्या तर्क हैं?

 वैचारिक दृष्टि वाले सिद्धांतकारों का तर्क है कि शोधकर्ता की सामाजिक अवस्थिति को स्वीकार किए बिना जानकारी जो सार्वभौमिक रूप में प्रस्तुत की जाती है, गलत होती है | शोधकर्ता की अवस्थिति महत्वपूर्ण होती है। सामाजिक विज्ञानों का मूल्य तटस्थता पक्षपाती और वस्तुनिष्ठ होती थी| मानक ढांचा जिसका उपयोग विश्लेषण के लिए किया गया है, शोधकार्य और शोघकर्ता की इसमें उस समय की सामाजिक अवस्थिति को आवश्यक रूप से ध्यान में रखना चाहिए। ये मानक ढांचे सार्वभौमिक नहीं होते हैं और अनिवार्य रूप से भिन्‍न-भिन्‍न हो सकते हैं। वे यह भी तर्क देते हैं कि जो ज्ञान सार्वभौमिक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है वह हमेशा सत्ता की अवस्थिति से उत्पन्न होता है|

दृष्टिकोणवादी सिद्धांतकारों का तर्क है कि अनुसंधानकार्य को सभी दृष्टिकोणों के अनुसार किया जाना चाहिए| उनका तर्क है कि श्वेत, विषमलैंगिक, उच्च और मध्यम वर्ग के शोधकर्ता की दृष्टि अत्यंत विषम होती है। वे हाशिए पर पड़े हुए लोगों के दृष्टिकोण से शोधकार्य का तर्क देते हैं। नैन्सी हार्टसॉक जैसी दृष्टिकोण सिद्धांतकार का मानना है कि सत्य का मार्क्सवादी विचार ऐतिहासिक रूप से विशिष्ट होता है और सभी ज्ञान राजनीतिक होते हैं (देखें: हार्टसॉक, 1983)॥ वह कहती है कि समाज में महिलाओं की अवस्थिति और श्रम के यौन विभाजन का मतलब है कि महिलाओं का जीवन पुरुषों के जीवन से अलग होता है। लैंगिक संरचनाओं का पितृसत्तात्मक रूप पुरुषों और महिलाओं के बीच संबंधों को भौतिक बनाता है। महिलाओं का दबदबा महिलाओं को एक अनूठा दृष्टिकोण देता है जिससे वे यथास्थिति की आलोचना करने में सक्षम होती हैं। महिलाओं की संतृप्ति उन्हें स्वाभाविक रूप से समानता के लिए संघर्ष करने की शक्ति नहीं देती है, इस प्रकार एक नारीवादी दृष्टिकोण आवश्यक होता है। वह नारीबाद का समर्थन वाले दृष्टिकोण के लिए तर्क देती है, न कि केवल एक महिला के दृष्टिकोण के लिए। वह इस बात से सहमत है कि इस सच्चाई को ऐतिहासिक रूप से विशिष्ट मानते हुए पूर्ण सत्य के संस्करण के लिए बहस करना कठिन होता है।

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