16वीं और 19वीं शताब्दी में विकासवादी परिप्रेक्ष्य से नृवंशविज्ञान के दृष्टिकोण की ओर रूझान में बदलाव हुआ। नृविज्ञानविदों के लिए संस्कृतियों के विकास को संपर्क में आ रही संस्कृतियों के द्वारा समझाया जा सकता है, हालांकि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में संस्कृतियों के बीच का संपर्क अलग-अलग तरीके से देखा गया था। ऐतिहासिक पद्धति के उपयोग पर नृवंशविज्ञानी के बीच सहमति की कमी थी।
जर्मनी में ग्रैबनेर और उनके अनुयायियोँ ने 'कुल्टुरहिस्ट्रिश्चे' या सांस्कृतिक इतिहास के दृष्टिकोण का उपयोग किया| उनके लिए, सं॑स्कृतियों का विकास तब हुआ जब विसरण की प्रक्रिया के माध्यम से एक दूसरे के संपर्क में आई | ब्रिटेन में, रिवर, इलियट विधियाँन स्मिथ और पेरी भी प्रसार,/विसरण की प्रक्रिया में विश्वास करते थे। संस्कृतियों के विकास के लिए रिवर का संस्कृति से संपर्क आवश्यक था। पेरी और स्मिथ प्रसार/ विसरण के एकल और एक ही केंद्र में विश्वास करते थे। अमेरिकन हिस्टोरिकल स्कूल जर्मन और ब्रिटिश के नृवैज्ञानिकों से मिन्न विचार रखता था| बोअस और उनके छात्रों ने संस्कृतियाँ की व्याख्या करने के लिए सांख्यिकीय विधि का इस्तेमाल किया। अन्य अमेरिकियों ने अभिसरण की विधि, वंशावली विधि और मनोवैज्ञानिक विधि का भी उपयोग किया।
जैसा कि हमने देखा है, नृविज्ञानियों ने समाज का अध्ययन करने के लिए ऐतिहासिक पद्धति के उपयोग मेँ बहुत योगदान दिया है। इस तरह की विधि समय की अवधि में, इस एक संस्था या संस्कृति के विकास का पता लगाकर उसके किसी विशेष पहलू को बताती है| यह समाज के विकास के एक विशेष चरण से जोड़कर समाज में बदलाव की व्याख्या करता है। नृविज्ञान के रूप मेँ यह लेबलिंग रेडक्लिफ ब्राउन द्वारा ऐतिहासिक अध्ययनों से अलग होने का एक प्रयास था। यह समाजशास्त्र और सामाजिक-विज्ञान की स्वतंत्रता को स्वतंत्र विषयों के रूप मैं स्थापित करने का प्रयास था। नृवँशविज्ञान शब्द का लोकप्रिय रूप से उपयोग नहीं किया जाता है। हालौंकि, ऐतिहासिक पद्धति पूर्ववर्ती खंडों,/” अनुभागो में चर्चित विचारकों का योगदान अपार है| उन्होंने कई मायनों में, समाजशास्त्र और सामाजिक-विज्ञान में इतिहास के उपयोग के लिए नींव रखी थी।
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