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सामाजिक विज्ञान में आदर्श प्ररूपों के उपयोग की विवेचना कीजिए।

 वेबर के विचार पद्धति संबंधि लेखो में आदर्श प्ररूप एक प्रमुख धारणा हैं और इसका इस्तेमाल ऐतिहासिक विन्यास अथवा विशिष्ट ऐतिहासिक समस्या को समझने के साधन के तौर पर किया गया है। इसके लिए उसने आदर्श प्ररूप तैयार किए और यह समझा कि घटनाएँ वास्तव में कैसे घटती हैं। साथ ही यह भी दिखाया कि अगर उसके पहले का कोई घटना क्रम नहीं हुआ होता या दूसरे रूप में होता, तो जिस घटना की व्याख्या का प्रयास किया जा रहा है, वह भी दूसरे तरीके से ही घटी होती। उदाहरण के तौर पर हमारे देश के गाँवों में भूमि सुधार लागू होने तथा आधुनिक शक्तियों जैसे शिक्षा, आधुनिक व्यवसाय आदि के प्रवेश ने सयुंक्त परिवार व्यवस्था को क्षति पहुंचाई है। इसका अर्थ है कि किसी घटना [मूमि सुधार, शिक्षा आदि) और तात्कालिक स्थिति (सयुंक्त परिवार) के बीव कार्य-कारण संबंध के आधार पर व्याख्या भी की जा सकती है। इस प्रकार आदर्श प्ररूप की अवधारणा प्रघटना के सामान्य तौर पर व्याख्या करने में मदद करती है।

इसका यह अर्थ नहीं है कि हर घटना के पीछे कोई विशिष्ट कारण ही हो। वेबर का यह मानना नहीं है कि समाज का एक तत्व किसी दूसरे तत्व द्वारा निर्धारित होता है। उसने इतिहास और समाजशास्त्र के कार्य-कारण संबंधों को मात्र आंशिक और संभावित ही माना है। इसका अर्थ है कि क्यार्थ का एक अंश किसी दूसरे अंश को संभावित या असंभावित, अनुकूल या प्रतिकूल बना सकता है। उदाहरण के लिए कुछ मार्क्सवादियों का कष्ठना होगा कि उत्पादन के साधनों के निजी स्वामित्व का परिणाम यही होगा कि इन साधनों के स्वामी, अल्पसंख्यक वर्ग के पास ही राजनीतिक सता भी आ जायेगी। लेकिन वेबर की इस बारे में राय होगी कि संपूर्ण नियोजन की आर्थिक व्यवस्था में किसी खास राजनीतिक संगठन की संभावनाएं ज्यादा प्रबल हो जाती है। वेबर के लेखों में कार्य-कारण संकंधों का यह विश्लेषण विश्वमर के घटना क्रम के तुलनात्मक अध्ययन अथवा घटनाओं की जांच परख तथा सामान्य सिद्धान्त निर्धारित करने की उसकी दिलचस्पी से जुड़ा हुआ है। उसने किसी विशेष ऐतिहासिक घटना की अवधारणा प्रस्तुत करने और तुलनात्मक अध्ययन के लिए आदर्श प्ररूपों का प्रयोग किया। वेबर की आदर्श प्ररूप की अवधारणा में इतिहास और समाजशास्त्र की परस्पर निर्भरता सबसे ज्यादा स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

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