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वेबर के सामाजिक कार्य के प्रकारों और सत्ता के प्रकारों के बीच संबंध को स्पष्ट कीजिए।

 सामाजिक कार्य के प्रकार

बेबर ने सामाजिक कार्य के निम्नलिखित चार प्रमुख प्रकार बताए है

i) किसी लक्ष्य के संदर्भ में तार्किक कार्य अथवा स्वैकरैशनल कार्य: इसका एक उदाहरण है पुल का निर्माण कर रहा एक इंजीनियर। उसकी गतिविधियां अपने लक्ष्य यानि निर्माण को पूरा करने की दिशा में संचालित होती है।

ii) किसी घूल्य के संदर्भ में तार्किक कार्य अथवा वैर्टरैशनल कार्य: इस कार्य में अपने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सैनिक का उदाहरण दिया जा सकता है। उसका कार्य धन-दौलत की प्राप्ति जैसे किसी भौतिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि गौरव और देश-मक्ति जैसे विशिष्ट मूल्यों के लिए है।

iii) भावात्मक कार्य: इस प्रकार का कार्य व्यक्ति की भावात्मक स्थिति के फलस्वरूप होता है। जैसे कि बस में यदि कोई व्यक्ति किसी लडकी से छेड़खानी करता है तो वह लड़की नाराज होकर श्रप्पड़ मार देती है। उस लड़की को इतना उकसाया जाता है 'किवह हिंसात्मक प्रतिक्रिया करती है।

iv) परम्परागत कार्य: यह कार्य उन परम्पराओं और विश्वासों से प्रेरित होता है, जो हमारे स्क्माव का अंग बन गए है। परम्परागत भारतीय समाज में बढ़ों को प्रणाम अथवा नमस्कार करना एक तरह से स्वभाव का अंग है और सहज ही ऐसा हो जाता है।

यह देखा जा सकता है कि सामाजिक कार्य के उपर्युक्त वर्गकरण की झलक वेबर की सत्ता की अवधारणा में भी मिलती है।

सत्ता के प्रकार

जैसा कि आपने पढ़ा है, सत्ता का अभिष्राय वैधता से है। वेबर के अनुसार वैधता की तीन प्रणालियां है, और इनमें से प्रत्येक के अनुरूप नियम है, जो आदेश देने की शक्ति को औचित्य प्रदान करते है। वैधता की निम्नलिखित तीन प्रणालियों को सत्ता के प्रकारों का नाम दिया गया है।

i) पारम्परिक सला

ii) करिश्माई अथवा चमत्कारिक सत्ता

iii) तर्क-विधिक सत्ता

i) पारम्परिक सत्ता

वैधता की यह प्रणाली पारम्परिक कार्य से निरूपित होती है। दूसरे शब्दों में यह व्यवहारकि कानून पर तथा प्राचीन परंपराओं की मान्यता पर आधारित है। इसका आधार यह विश्वास है कि किसी विशेष सत्ता का सम्मान किया जाना चाहिए क्‍योंकि यह युग-युगान्तरों से चली आ रही है।

पारंपरिक सत्ता के अंतर्गत शासक पीढ़ी मिली प्रस्थिति के कारण व्यक्तिगत सत्ता का उपभोग करते है। उनके आदेश रीति-रिवाजों के अनुरूप होते हैं और उन्हें शासित लोगों से अपना आदेश मनवाने का भी अधिकार होता है। प्रायः वे अपनी शक्ति का दुरूप्रयोग करते हैं। जो लोग उनके आदेशों का पालन करते हैं, वे उनकी प्रजा कहलाते है। यह प्रजा व्यक्तिगत निष्ठा के कारण अथवा प्राचीन काल से मान्यता प्राप्त पद के प्रति पवित्र सम्मान के कारण अपने स्वामी के आदेशों का पालन करती है। आइए, अब हम इस संबंध में अपने समाज का ही एक उदाहरण लें। आप भारत में प्रचलित जाति प्रथा से भली भांति परिचित हैं। “निम्न' जातियां सदियों तंक “उच्च* जातियों के अत्याचार क्‍यों सहती रहीं? इसका एक स्पष्टीकरण यह हो सकता है कि “उच्च” जातियों की सत्ता को परम्पराओं तथा प्राचीन मान्यताओं का समर्थन प्राप्त था। कुछ लोगों का कहना है कि “निम्न* जातियों ने अपने दमन को सामाजिक स्वीकृति दे दी थी। इस प्रकार यह देखा जाता है कि पारंपरिक सत्ता प्राचीन परंपराओं को पवित्र मानने के विश्वास पर आधारित है। इससे सत्ता का इस्तेमान करने वालों को वैधता प्राप्त हो जाती है।

ii) करिश्माई अथवा चमत्कारिक सत्ता

करिश्माई अथवा चमत्कार का अर्थ हैं कुछ व्यक्तियों के असाधारण गुण। ऐसे गुण से इन व्यक्तियों में सामान्य लोगों की निष्ठा तथा भावनाओं पर अधिकार कर लेने की क्षमता आ जाती है। करिश्माई सत्ता किसी व्यक्ति के प्रति असाधारण आस्था और उस व्यक्ति द्वारा बताई गई जीवन-शैली पर आधारित होती है। ऐसी सत्ता की वैधता व्यक्ति की अलौकिक अथवा मायावी शक्ति में निहित होती है। ऐसे नेता चमत्कारों, सैनिक या अन्य प्रकार की विजयों अथवा अपने अनुयायियों की आकस्मिक समृद्धि के माध्यम से अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते है। जब तक ये करिश्माई नेता अपने अनुयाइयों अथवा समर्थकों की नज़र में अपनी चमत्कारिक शक्तियों को सिद्ध करते रहते हैं, तब तक उनकी सत्ता बराबर बनी रहती है। आपने महसूस किया होगा कि करश्मिई सत्ता से जो सामाजिक क्रिंगा जुड़ी है, तह भावात्मक क्रिया है। करिश्माई नेताओं के प्रवचनों तथा उपदेशों के प्रभाव से समर्थक अत्यंत्त भावुक हो जाते है। यहां तक कि वे अपने नेता की पूजा तक करते है।

iii) तर्क-विधिक सत्ता

यह शब्द सत्ता की उस प्रणाली को बोध कराता है, जो तार्किक है तथा कानूनी भी। यह सत्ता नियमित कर्मचारी वर्ग में निहित है, जिन्हें कुछ लिखित कानूनों एवं नियमों के अंतर्गत काम करना होता है। इस वर्ग के लोगों की नियुक्ति उनकी योग्यताओं के आधार पर की जाती है। ये योग्यताएं निर्धारित तथा संहिताबद्ध होती है। जिन के पास यह सत्ता होती है, उनका यह व्यवसाय होती है तथा वे इसके लिए वेतन पाते है। इस प्रकार यह एक तार्किक प्रणाली है।

यह वैधानिक इसलिए है क्‍योंकि यह देश के कानून के अनुरूप है जिसे सभी की मान्यता प्राप्त होती है और उसका पालन करना सभी का कर्त्तव्य समझा जाता है। आदेशों और नियमों तथा उन नियमों को कार्यान्वित करने वालों की प्रस्थिति तथा पद दोनों की वैधता को स्वीकार किया जाता है एवं उसका सम्मान होता है।

तर्क-विधिक सत्ता आधुनिक समाज का विशिष्ट पहलू है। यह तार्किकता की प्रक्रिया की अभिव्यक्ति हैं। याद रखें कि वेबर ने तार्किकता को पश्चिमी सभ्यता की मुख्य विशेषता माना है। वेबर के अनुसार यह मानव चिंतन तथा विचार-विमर्श की विशेष देन है। अब तक आपने तर्क-विधिक सत्ता तथा लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तार्किक कार्य के परस्पर संबंध को भली प्रकार समझ लिया होगा।

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