बाल अधिकारों के घोषणापत्र को संयुक्त राष्ट्र आमसभा ने 20 नवम्बर 1959 को अपनाया। इसका मूलपाठ इस विषय पर एक अभिसमय का मसौदा तैयार करने का आधार बना। बाल अधिकार पर अभिसमय (CRC) आमसभा द्वारा 20 नवम्बर 1989 को अपनाया गया तथा यह 2 सितम्बर 1990 को लागू हुआ। 7 जून 2007 तक 193 सदस्य-राज्यों की स्वीकृति प्राप्त करने के बाद यह अभिसमय संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था में लगभग सर्वव्यापकता प्राप्त - करने वाला पहला मानय अधिकार अभिसमय है। केवल अमेरिका ही संधि से बाहर है . हिलाँकि इसने 16 फरवरी 1995 को इस अभिसमय पर हस्ताक्षर कर दिए हैं)। यह एक महत्वपूर्ण घटना है क्योंकि बाल अधिकार अभिसमय मानव अधिकारों के क्षेत्र में सबसे अधिक व्यापक, सम्पूर्ण और सकेन्द्रित अभिसमय है।
अभिसमय के अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र आमसभा ने 16 मई 2000 को इससे सम्बन्धित दो वैकल्पिक प्रोटोकॉल भी अपनाए। पहले प्रोटोकॉल का सम्बन्ध सशस्त्र संघर्षों में बच्चों को सम्मिलित करने से है जबकि दूसरा प्रोटोकॉल बच्चों की खरीद-फरोक्त, बाल वेश्यावृत्ति तथा बाल अश्लील साहित्य से सम्बन्धित है। इन दोनों प्रोटोकॉलों को अपनाने के बाद बाल अधिकार अभिसमय का क्षेत्राधिकार काफी व्यापक हो गया है। ये दोनों प्रोटोकॉल 18 जनवरी तथा 12 फरवरी 2002 को लागू हुए तथा इन्हें जून 2007 तक क्रमशः 114 तथा 119 राज्यों की स्वीकृति मिल चुकी थी।
इस अभिसमय का मूल विचार यह है कि बच्चों को विशेष सुरक्षा तथा प्राथमिक देखरेख की आवश्यकता होती है क्योंकि सामाजिक एवं शारीरिक दृष्टिकोण से ये मानव समाज के सबसे कमजोर पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा अपनी उत्तरजीविता के लिए बड़ों पर निर्भर होते हैं। उनकी यह वस्तुपरक आधीन परिस्थिति प्रायः कई क्षेत्रों में इनके शोषण का कारण बन जाती है जैसे श्रम, अथवा लैगिंक अक्षतता आदि। अभिसमय बच्चों की इस असुरक्षा को मान्यता देता है तथा यह उद्घोषित करता है कि बचपन को विशेष देखरेख तथा सहायता की आवश्यकता होती है। इस अभिसमय का मूल मंत्र यह है कि राज्य बच्चों की अनिवार्य आवश्यकताओं को सर्वोच्च प्राथमिकता दे। यह सदस्य-राज्यों को यह आश्वस्त करने के लिए बाध्य करती है कि समाज में बच्चों के साथ उचित एवं समतापूर्ण व्यवहार किया जाएगा।
अभिसमय परिवार के महत्व तथा ऐसे वातावरण के निर्माण की आवश्यकता पर बल देता है जो बच्चे के स्वस्थ विकास तथा संवर्धन के अनुकूल हो। अभिसमय की प्रस्तावना तथा मूलपाठ “परिवार को समाज के एक मौलिक समुदाय” के रूप में विशेष महत्व देता है। अभिसमय यह स्वीकार करता है कि बच्चे (चाहे वह बालक हो या बालिका) के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण तथा संतुलित विकास के लिए यह आवश्यक है कि उसका विकास एक पारिवारिक, एक सुखद, स्नेही तथा सहानुभूतिक वातावरण में हो।
इस अभिसमय की आत्मा तथा दर्शन के मूल में चार सामान्य नियम हैं: भेदभावहीनता (अनुच्छेद 2), बच्चे का सर्वोत्तम हित (अनुच्छेद 3), जीवन, उत्तरजीविता तथा विकास का अधिकार (अनुच्छेद 6), बच्चों के विचारों को सम्मान (अनुच्छेद 12)। ये सामान्य नियम शिशुओं तथा अबोध बच्चों से सम्बन्धित सभी कार्यकलापों के लिए एक ढाँचा प्रदान करते हैं। इस अभिसमय में दिए गए बाल अधिकारों को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया हैः
· उत्तरजीविता अधिकार: जीवन का अधिकार तथा बच्चे के विकास की मूल आवश्यकताएँ
· विकास अधिकार: वे सभी अधिकार जो बच्चों की सम्पूर्ण क्षमता के विकास के लिए आवश्यक है जैसे अभिव्यक्ति का अधिकार (अनुच्छेद 13) तथा शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 28) |
· सुरक्षा अधिकार : वे सभी अधिकार जो बच्चों को उपेक्षा, दुरुपयोग तथा शोषण से सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है जैसे गोपनीयता का अधिकार (अनुच्छेद 16), दुर्व्यवहार तथा उपेक्षा से मुक्ति (अनुच्छेद 19)।
· भागेदारी अधिकार: वे अधिकार जो बच्चों को निर्णय निर्माण तथा अपने से सम्बन्धित मामलों में भाग लेने का अधिकार देते हैं जैसे बच्चे के विचारों का सम्मान (अनुच्छेद 12)
Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE
For PDF copy of Solved Assignment
WhatsApp Us - 9113311883(Paid)
0 Comments
Please do not enter any Spam link in the comment box