अब तक प्राचीन आदिमानवों के विषय में यह आम धारणा रही है कि उनका जीवन असभ्य व जंगली था, परन्तु पुरातत्त्वविदों द्वारा पुरातत््वीय स्थलों की खोज एवं खुदाई से मिले प्रमाणों के आधार पर उनके प्रति बने अपने विचारों को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है। कुछ पुरातत्त्वीय स्थलों से मिले प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता हैं कि आखेटक-संग्रहण समूह सामाजिक जीवन जीते थे, जो परिवार अथवा स्थानीय समूहों के परे परिवार, स्थानीय जन-समूह तथा विस्तृत सामाजिक सम्बन्धों पर आधारित था।
आदिमानवों से सम्बन्धित पाषाण उपकरण तथा औजार हमें निश्चित रूप से यह बताते हैं कि मुख्य उपकरणों का निर्माण कार्यशाला स्थलों में हुआ था। प्रत्येक कार्यशाला एक बड़े क्षेत्र को उपकरण प्रदान करती थी। इतिहासकार आलचिन का इस सन्दर्भ में कहना है कि सम्भवत: पाषाण उपकरण विभिन्न प्रकारों व आकारों के समुदायों द्वारा प्रयोग में लाया जाता था। इन उपकरणों के निर्माण के लिए उत्तम कोटि के कच्चे माल का वितरण निश्चित रूप से उन लोगों द्वारा होता था, जो इन स्थलों के आसपास रहते होंगे तथा अन्य समुदायों के लोगों के साथ विनिमय व्यवस्था वाले सम्बन्ध रहे होंगे। हमें कई आरम्भिक उपनिवेशों या बस्तियों के बीच व्यापार अथवा विनिमय के उदाहरण मिलते हैं, जो मध्यपाषाण कालीन समुदायों के साथ कुछ दूर तक समकालीन हैं।
इसके अलावा यदि हम आदिमानवों के पाषाण उपकरणों तथा शैलचित्रों को मिलाकर देखें तो एक बहुत ही रोचक दृश्य सामने आता है। इस सन्दर्भ में इतिहासकार आलचिन का कहना है कि मध्य भारत की गुफाओं में उपलब्ध नृत्यरत दृश्य चित्र यह बताते हैं कि इन समूहों में कई परिवारों का समावेश रहता होगा। इन समुदायों को उनकी रुचि तथा मूल्यों के अनुसार विनिमय के अवसर प्रदान करते थे। साथ ही ये अपने निकटस्थ परिवार या स्थानीय समूहों के अतिरिक्त सामाजिक सम्बन्धों को भी दृढ़ता प्रदान करते थे। इस प्रकार, इस बात की सम्भावना बहुत अधिक बढ़ जाती थी कि भारत के पाषाणकालीन निवासियों के मध्य भी ये सम्बन्ध रहे होंगे। चूँकि हम जानते हैं कि इस तरह की सामूहिक क्रियाएँ कला तथा तकनीकी के विकास में सहायक होती हैं।
इसी प्रकार, यदि हम प्राचीन पाषाण उपकरणों तथा औजारों का सूक्ष्म विश्लेषण करें, तो पाते हैं कि प्रत्येक आगे की अवस्था में निर्मित उपकरणों तथा औजारों में गुणात्मक वृद्धि हुई है। साथ ही आखेटकन संग्रहण समुदायों के मध्य विनिमय व्यवस्था तथा उनके पर्यावरणीय सम्बन्धों के प्रति जागरूकता में भी वृद्धि हुई है। आदिमानव अपने आरम्भिक उपकरणों का प्रयोग भूमि खोदने तथा कंद-मूल निकालने के लिए करता था, परन्तु मध्य आदिपाषाण में पूर्व काल के गँडासा व हस्त कुठार के स्थान पर कई प्रकार के खुरचनी व बेधक उपकरण प्रचलन में आ गए। इस काल में मानव ऐसे स्थलों को प्राथमिकता देने लगा, जहाँ मुख्य रूप से कच्चे माल की उपलब्धता सहज रूप में थी। इस तरह के उपकरणों के प्रयोग के लिए अब मानव भारी एवं खतरनाक जानवरों का दूर से शिकार एवं अपनी सुरक्षा दोनों ही कर सकता था। शैलचित्रों में कई दृश्य दिखाए गए हैं, जिनसे स्पष्ट हो जाता है कि आखेटकों द्वारा पशुओं के शिकार में दूर से ही बिना आमना-सामना किए अनेक भालों को फेंककर शिकार किया जा रहा है।
कालान्तर में सूक्ष्म पाषाण उपकरणों का प्रयोग मानव द्वारा एक विशिष्ट परिवर्तन को दिखाता है। अब आखेटकन को यन्त्रों से जोड़ दिया गया था, जो जाल, फंदा, पिंजग आदि के आरम्भिक प्रारूप थे। इतिहासकार वी.एन. मिश्रा के अनुसार आखेटक-फसंग्रहण समाज द्वारा बबूल के पेड़ों से प्राप्त गोंद, लाख आदि का प्रयोग मूठ लगाने के लिए किया जाता था। इसी प्रकार महीन डोरियों की लडियों से मछली पकड़ने के लिए जाल का निर्माण भी इसमें शामिल है।
आखेटक-संग्रहण समुदायों की विशेषताओं की जानकारी हमें विन्ध्य क्षेत्र तथा कैमूर पहाड़ियों की गुफाओं व चट्टानी शरणगाहों से प्राप्त शैलचित्रों से मिलती है। भीमबेतका तथा अन्य गुफाओं में चित्रित आखेटकन दृश्यों से पता चलता है कि आखेटक भालों से तथा तीर कमानों इत्यादि से किए जाते थे। कुछ दृश्यों में शिकार को घेरते हुए, उस पर तीर बरसाते हुए और शिकार को बस्ती तक ले जाते हुए दिखाया गया है। साथ ही शिकार को घेरने में स्त्रियों को सहयोग करते हुए चित्रित किया गया है।
इसके अलावा शैलचित्रों में अन्य भोजन सामग्री संग्रहण गतिविधियों में फलों का चुनना दिखाया गया है। साथ ही, स्त्रियों द्वारा फलों से भरी टोकरी ले जाते दर्शाया गया है। इस अवस्था से सम्बन्धित एक अन्य महत्त्वपूर्ण लक्षण मृतक का संस्कार करने के साक्ष्य से जुड़ा हुआ है। वास्तव में, मध्यपाषाण काल में ही पहली बार मृत शरीर को दफनाने के प्रमाण मिलते हैं।
उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर हम कह सकते हैं कि पाषाणकालीन मानवों ने अपने तत्कालीन यथार्थ को स्वीकार करते हुए विविध पाषाण उपकरणों तथा औजारों का निर्माण किया। वस्तुत: पाषाण युगीन मानव अपने बेढब अथवा अपरिष्कृत उपकरण निर्माण कला के लिए ही नहीं बल्कि उनकी यथार्थ शैलचित्रों या गुफा चित्रों को लेकर आधुनिक मानवों के लिए एक रोचक केन्द्र बिन्दु बने हुए हैं।
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