“दो बैलों की कथा' में बैलों के माध्यम से लेखक अपने विचार समाज के समक्ष रखता है। इस कहानी में दो मित्र बैल अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते हैं। यह कहानी वर्ष 93 में प्रकाशित हुई थी। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के उत्थान और विकास की दृष्टि से यह समय गाँधी युग के नाम से जाना जाता है जिसकाझउद्देश्य अहिंसात्मक असहयोग के द्वारा पूर्ण स्वराज की प्राप्ति था। इस युग में महात्मा गाँधी प्रमुख नेता थे, इन्होंने भारतीय राजनीति.को एक नई विचारधारा दी। कदाचित प्रेमचंद जी इस विचारधारा से प्रभावित थे और उन्होंने इस आधार को बल देने हेतु. अनेक कहानियाँ सृजित कीं, 'दो बैलों की कथा' भी उनमें एक है। यह कहानी अगर ध्यान से देखें तो साम्राज़्यवोद बनाम लोकतंत्र की वैचारिकी पर आधारित है। झूरी काछी के दो बैल हीरा, मोती कथा के संवाहक हैं जो प्रेमचंद के विचारों पर आरूढ़ होकर कथा को विस्तार देते हैं। एक तरफ हीरा-मोती हैं, दूसरी तरफ आदमियों की जमांत है ज़िसमें झूरी, उसकी पत्नी एवं साले तथा साले की पत्नियाँ, काजी हाउस का चौकीदार, कसाई एवं छोटी बच्ची आदि। झूरी।दोज़ों बैलों का मालिक है और उन पर जान छिड॒कता है, बैल भी झूरी पर जान देते हैं यहाँ लोकतंत्र है, परंतु झूरी अपनी पत्नी से दबता है और यह जानते हुए भी कि ससुराल में उसके बैलों की दुर्गत होगी वह बैलों को ससुराल भेज देता है। यहाँ से प्रारंभ होता है हीरा एवं मोती का संघर्ष परंतु प्रथम चरण के संघर्ष में हीरा-मोती पगहा तुड़ाकर अपने-घर आ जाते हैं/परंतु झूरी की पत्नी के साम्राज्यवादी मानसिकता के कोपभाजक बनकर फिर वे झूरी के ससुराल भेजे जाते हैं, जहाँ पर इन पर घोर अत्याचार होता है; मोटी रस्सी से बाँधें जाते हैं, इनसे हाड़ुतोड़ मेहनत कराई जाती है खाना भी नहीं दिया जाता है यह है संघर्ष का चरम बिंदु। दोनों बैल बच्ची की मदद से घर से भाग जाते हैं परंतु रास्ता भूल कर वे काजी हाउस तक जा पहुँचते हैं जहाँ बे:.एके.नई गुलामी का शिकार होते हैं फिर एक कसाई को बेच दिए जाते हैं और इसके बाद ये मुक्ति की इच्छा से कसाई के चेंगुल से भाग खड़े होते हैं। भाग्य उनका साथ देता है, रास्ता उन्हें जाना-पहचाना लगता हे और अंततः वे अपने मालिक झूरी के घर तक पहुँच जाते हैं।
प्रस्तुत कहानी “साम्राज्यवाद” एवं “लोकतृत्र' इन दो विचारधाराओं के बीचे: का ढूंद्व प्रस्तुत करती है। झूरी, दोनों बैल, बच्ची, लोकतंत्र के पोषक चरित्र का।निर्वाह करते हैं वहीं पर झूरी क्री पत्नी, उसके साले एवं साले की पत्नयाँ तथा कसाई साम्राज्यवादी मानसिकता के पोषक के रूप में चित्रित हैं। परंतु संपूर्ण कैहानी गाँधीवादी विचार से प्रभावित है। हीरा और मोती असहयोग, अनशन, अपनाते हैं; अपने धर्म की दुहाई देते हैं, इनमें स्वामिभक्ति है, ये साम्राज्यवादी शक्ति से लड़ते हैं और अंततः अपने लक्ष्य कों प्राप्त करते हैं। तदंतर हम देखें तो यह कहानी “निज' की स्वतंत्रता की कहानी है। हीरा और मोती कहीं न कहीं तत्कालीने। समाज में व्याप्त शोषण एवं गुलामी के प्रतीक हैं उनके संघर्ष और फिर मुक्ति प्रेमचंदी औजार हैं क्योंकि 1930-1931 के समय में संपूर्ण भारत देश स्वतंत्रता के लिए संघर्षरतत था। वह एक लंबी दासता से मुक्ति चाहता था। यह कहानी संघर्ष और मुक्ति की इस विडंबनापूर्ण स्थिति की ओर संकेत करती है। यह कहानी सांकेतिक भाषा में यह संदेश देती है कि मनुष्य हो या कोई भी प्राणी हो, स्वतंत्रता उसके लिए बहुत महत्त्व रखती है। स्वतंत्रता को पाने के लिए लड़ना भी पड़े, तो बिना हिचकिचाए लड़ना चाहिए। जन्म के साथ ही स्वतंत्रता सबका अधिकार है, उसे बनाए रखना सभी का परम कर्त्तव्य है।
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