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विभाजन की त्रासदी के संदर्भ में 'टोबा टेक सिंह" कहानी का मूल्यांकन कीजिए।

गहन और जटिल रचना विधान की इस कहानी में बँटवारे के कारण पागलों की असंतुलित मन:स्थिति व अतार्किक दृष्टिकोण के माध्यम से लेखक ने विभाजन से संबंधित हृदयस्पर्शी संवेदना को अभिव्यक्त किया है। कहानी में साँझी संस्कृति और मानवीय संवेदना के एहसास की तीब्र भावना को भी चित्रित किया गया है।

घटनाक्रम बँटवारे के दो-तीन वर्ष बाद का है। दोनों मुल्कों की सरकारों को ख्याल आता है-कि साधारण कैदियों की तरह पागलों की आबादी का भी बँटवारा होना चाहिए। जिन हिंदू-सिक्ख पागलों के अभिभावक हिंदुस्तान चले गए हैं, उन्हें हिंदुस्तान भेजने की व्यवस्था की जाती है। भारत स्थित जिन मुसलमान पागलों के संरक्षक पाकिस्तान चले आए हैं, उन्हें पाकिस्तान भेजने का इंतजाम किया जाता है। इन हिंदू-सिक्ख-मुसलमान पागलों की समझ में नहीं आता है कि वे हिंदुस्तान में हैं कि पाकिस्तान में। उन्हें सिर्फ यही पता था कि एक आदमी मुहम्मद अली जिन्‍ना है जिसे कायदे-आजम कहा जाता है, उसने मुसलमानों के लिए जो मुल्क बनाया है, उसे पाकिस्तान कहते हैं, परंतु वे भी पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति से नितांत अनजान थे।

पागलों को स्वतंत्रता प्रदान करने के भारत, पाकिस्तान सरकार के निर्णय का प्रभावशाली लोगों ने नाजायज फायदा उठाया। 'फाँसी की सजा से बचाने के लिए उन्होंने अपने अपराधी रिश्तेदारों को पागल घोषिते७कशकर 'पागलखानों में रखवा दिया। इस कहानी को पढ़ते हुए बीच-बीच में राहीमासूम रजा के प्रसिद्ध उपन्यास 'आधा गाँव” की याद आती है। कुछ लोक प्रसंग बिल्कुल मिलते-जुलते से हैं लेकिन एक जैसे नहीं हैं। मण्टो ने लिखां'है. कि, वे पागल जिनका दिमाग पूरी तरह विकृत नहीं हुआ था, इस बखेडे में गिरफ्तार थे कि वे पाकिस्तान में हैं या. हिंदुस्तान में; अगर हिंदुस्तान में हैं तो पाकिस्तान कहाँ है, अगर पाकिस्तान में. हैं तो यह कैसे हो सकता है-कि वे कुछ अर्से पहले यहीं रहते हुए हिंदुस्तान में थे।

यह प्रसंग दिल की गहराइयों को छू जाता है। अपने देश से"विस्थापित होने का दर्द पागलों में भिन्‍न-भिन्‍न प्रकार का है। एक नौजवान पागल के जीवन पर आधारित कहानी का वर्णन मण्टो ने इस प्रकार किया है-

“लाहौर का एक नौजवान हिंदू वकील मुहब्बत में नाकाम होकर पागल हो गया था; जब उसने सुना कि अमृतसर हिंदुस्तान में चला गया है तो उसे बहुत दुख हुआ। अमृतसर की एक हिंदू लड़की से उसे मुहब्बत थी जिसने उसे ठुकरा दिया था मगर दीवानगी की हालत में भी वह उस लड़की को नहीं भूला था। वह उन तमाम हिंदू और मुसलमान लीडरों को गालियाँ देने लगा जिन्होंने मिल-मिलाकर हिंदुस्तान के दो टुकड़े कर दिए हैं और उसकी महबूबा हिंदुस्तानी बन गई है और वह पाकिस्तानी। ...... जब तबादले की बात शुरू हुई तो उस वकील को कई पागलों ने समझाया कि वह दिल बुरा न करे ...... उसे हिंदुस्तान भेज दिया जाएगा, उसी हिंदुस्तान में जहाँ उसकी महबूबा रहती है-मगर वह लाहौर छोड़ना नहीं चाहता था; उसका ख्याल था कि अमृतसर में उसकी प्रैक्टिस नहीं चलेगी।”

एक पागल पाकिस्तान और हिंदुस्तान के चक्कर में पड़कर एक दिन पेड़ पर चढ़कर चिल्लाता है-“मैं न हिंदुस्तान में रहना चाहता हूँ न पाकिस्तान में, मैं इस पेड़ पर ही रहूँगा।"

यह घटना विभाजन के मूलभूत सिद्धांत को मजाक बनाकर प्रस्तुत करती है। एक मुसलमान पागल एक दिन घोषणा करता है कि वह कायदे-आजम मुहम्मद अली जिन्‍ना है तो दूसरा सिक्ख पागल मास्टर तारा सिंह बन जाता है। दोनों में खून-खराबे की नौबत आते ही उन्हें खतरनाक पागल करार कर अलग-अलग बंद कर दिया जाता है। यूरोपियन वार्ड में स्थित दो पागल अंग्रेजों के जाने से दुखी थे। उनके सामने प्रश्न था कि पागलखाने में उनकी हैसियत किस तरह की होगी-“यूरोपियन वार्ड रहेगा या जाएगा। ब्रेकफास्ट मिला करेगा या नहीं। क्‍या उन्हें डबलरोटी के बजाय ब्लडी इंडियन चपाती तो जहरमान नहीं करनी पड़ेगी?”

सआदत हसन मण्टो की कहानी जिस पागल पात्र के द्वारा अपने चरम पर पहुँचती है, वह है-बिशन सिंह बेदी नामधारी एक सिक्‍्ख युवक। बिशन सिंह नामक यह सरदार टोबा टेक सिंह गाँव का रहने वाला है। कहानी इस तरह विकसित हुई है कि लोग बिशन सिंह को टोबा टेक सिंह ही पुकारने लगते हैं। उसका परिचय मण्टो ने इन शब्दों में दिया है-

एक सिक्‍्ख था, जिसे पागलखाने में दाखिल हुए पंद्रह बरस हो चुके थे। हर वक्‍त उसकी जबान से यह अजीबो-गरीब शब्द सुनने में आते थे-'औपड्‌ दि गड़ गड़ दि अनैक्स दि बेधयानां दि मुंग दि दाल ऑफ दी लालटेन ........' वह न दिन को सोता था न रात को। पहरेदारों का यह कहना था कि “पंद्रह बरस के तबील अर्से में वह एक पल के लिए भी नहीं सोया था; वह लेटता भी नहीं था, अलबत्ता कभी-कभी दीवार के साथ टेक लगा«#लेता था;हर वक्‍त खड़ा रहने से उसके पाँव सूज गए थे और पिंडलियाँ भी फूल गई थीं, मगर जिस्मानी तकलीफ के बावजूद वह लेटकर आराम नहीं करता था।”

टोबा टेक सिंह के चरित्र की विशिष्टताओं को वर्णित करते हुए. कहानीकार मण्टो ने कुछ सूक्ष्म बातों की ओर इंगित किया है। कहानी में यह वर्णन इस रूप में आया है-

इस सिक्‍्ख पागल के केश छिंदरे बहुत छोटे रह गए थे; चूँकि. बहुत कम नहाता*था/ इसलिए दाढ़ी और सिर के बाल आपस में जम गए थे जिसके कारण उसकी शक्ल बड़ी भयानक हो गई थी। मगर आदमी नुकसान पहुँचाने वाला नहीं था-पंद्रह बरसों में उसने कभी किसी से झगड़ा-फसाद नहीं किया था। पागलखाने के जो पुराने मुलाजिम थे, वे उसके बारे में इतना जानते थे कि टोबा टेक सिंह में उसकी बहुत जमीन थी; अच्छा खाता पीता जमींदार था कि अचानक दिमाग उलट गया, उसके रिश्तेदार उसे लोहे की मोटी-मोटी जंजीरों में बाँधकर "लाए और पागलखाने में दाखिल करा गए।

बिशन सिंह के परिवार वाले माहे-में एक बार उसे देखने आया*«करैल्ने, थे और हाल-समाचार मालूम करके लौट जाते थे। लंबे समय तक यह सिलसिल्ला निर्बाध गति से जारी रहां, पर जब पाकिस्तान-हिंदुस्तान की गड़बड़ शुरू हुई तो उनका आना-जाना बंद हो गया।

उसका नाम बिशन सिंह था मगर सब उसे टोबा टेक सिंह कहते थे। उसको यह कदापि मालूम नहीं था कि दिन कौन-सा है, महीना कौन-सा है या कितने साल बीत चुके हैं; लेकिन हर महीने जब उसके सगे-संबंधी उससे मिलने के लिए आने के करीब होते तो उसे अपने आप पता चल जाता; चुनांचे वह दफेदार से कहता कि उसकी मुलाकात आ रही है; उस दिन वह अच्छी तरह नहाता, बदन पर खूब साबुन घिसता और बालों में तेल डालकर कंघा करता। अपने वह कपड़े जो वह कभी इस्तेमाल नहीं करता था, निकलवाकर पहनता और यूँ सज-बनकर मिलने वालों के पास जाता। वे उससे कुछ पूछते तो वह खामोश रहता या कभी-कभार 'औपड्‌ दि गड़ गड़ दि अनैक्स दि बेधयानां दि मुंग दि दाल ऑफ दी लालटेन .......” कह देता।

परंतु जब से बाँटवारे की चर्चा होने लगी थी तब से वह 'ऑफ दी लालटेन' की जगह 'ऑफ दी पाकिस्तान गवर्नमेंट' बकने लगा था। जब उसे पता चला कि उसका गाँव टोबा टेक सिंह पाकिस्तान में चला गया है तो वह बड़बड़ाने लगा था-“ओपड्‌ दी गड़ गड़ दी एनेक्स दी बेध्याना दी मूंग दी दाल ऑफ दी पाकिस्तान एंड हिंदुस्तान ऑफ दी दुर फिट्टे मुँह।” बँटवारे पर की गई उसकी यह तल्ख प्रतिक्रिया अपनी जमीन व गाँव से काटे जाने की प्रतिक्रिया है। इस प्रतिक्रिया के समक्ष हिंदुस्तान व पाकिस्तान के सारे प्रसंग बेहूदा बन जाते हैं। अदला-बदली के दौरान जब बिशन सिंह की बारी आती है तो वह अधिकारियों से पूछता है कि टोबा टेक सिंह कहाँ है, संबंधित अधिकारी उस पर हँसते हुए कहता है-“पाकिस्तान में।” यह सुनकर वह हिंदुस्तान जाने से इंकार कर देता है और बीच में एक स्थान पर अपनी सूजी हुई टाँगों पर खड़ा हो जाता है। सुबह होने पर उसके गले से गगनभेदी चीख निकलती है। अधिकारियों ने देखा-“वह आदमी, जो पंद्रह वर्ष तक दिन-रात अपनी टाँगों पर खड़ा रहा था, औंधे मुँह लेटा था। इधर काँटेदार तारों के पीछे हिंदुस्तान था - उधर वैसी ही काँटेदार तारों के पीछे पाकिस्तान। बीच में जमीन के उस टुकड़े पर, जिसका कोई नाम नहीं था, टोबा टेक सिंह पड़ा था।” बँटवारे पर इससे मार्मिक प्रतिक्रिया और क्या हो सकती है। 

मानसिक रूप से विक्षिप्त टोबा टेक सिंह अर्थात्‌ बिशन सिंह को अपने गाँव से असीम प्यार था। अपने देश भारत का विभाजन उसे स्वीकार्य नहीं था। भारत विभाजन को अस्वीकार करता हुआ अंत में वह उस स्थान पर गिरा, जो दो में से किसी देश की मिल्कियत नहीं थी।

मण्टो की यह कहानी पाठकों का साक्षात्कार विभाजन कौ त्रासदी से कराती है। कहानी को पढ़कर पाठक को विभाजन की व्यर्थता का बोध होता है। विभाजन से कौन सुखी हुआ, यह कहना मुश्किल/हैं लेकिन -सरहद के इस पार और उस पार करोड़ों आँखें वर्षों तक भीगी रहीं। आर्द्र नेत्रों से बहती अश्रुधारा को मण्टों की इस कहानी में अनुभव किया जासकता है।

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