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रवीन्द्र कालिया की कहानी 'गौरैया' की अंतर्वस्तु को स्पष्ट कीजिए।

'गौरैया' साम्प्रदायिकता की समस्या पर लिखी गई विशिष्ट कहानी है, जो अपने कथ्य के आधार पर विशिष्ट पहचान बनाती है। इस कहानी में रवीन्द्र कालिया ने परिवेश चित्रण और गौरैया चिड़िया के प्रतीक को कथ्य के रूप में व्यंजित किया है। अपनी शैल्पिक युक्तियों से रवीन्द्र कालिया ने गौरैया को अमर, इंसानियत, मानवीयता की तलाश का प्रतीक बना दिया है। सांप्रदायिकता की जेठ की दोपहरी में तपते लू-संतप्त वातावरण में, “दोपहर के घनघोर सन्‍नाटे में उसकी आवाज पेड्-पौधों के ऊपर तितली की तरह थिरक रही थी।'” यहां लेखक ने दोपहर की भयंकर गर्मी के चित्रण द्वारा पूरे देश में फैली साम्प्रदायिकता की लपटों की ओर संकेत किया है, जहां गौरैया की आवाज एक शांति की आवाज का सुकून लेकर आती है। आगे शांति की इस प्रतीक गौरैया की आवाज को विभिन्‍न धर्म-सम्प्रदायों की मान्यता के अनुसार अपने-अपने धर्म-सम्प्रदाय के नारों कौ प्रतीति खोजते हुए दिखाया गया है, जहां गौरैया 'हर-हर', “गायत्री मंत्र', “अल्लाह-अल्लाह ', 'वाहे गुरुजी का खालसा' आदि जैसा स्वर उच्चारित करती हुई प्रतीत होती है। वास्तव में रवीन्द्र कालिया इस वातावरण के चित्रण की स्थिति द्वारा देश में विभिन्‍न प्रकार की साम्प्रदायिक मांगों, इच्छाओं और उनके संकल्पों को उजागर करते हैं, क्योंकि साम्प्रदायिकता, दुश्मनी के इस विषाक्त वातावरण से नन्‍्हीं गौरैया भी बच नहीं पाती है और लेखक उसे उसी के अनुसार हिन्दू, मुस्लिम या सिख धर्म की वाणी से जोड़कर देखने लगता है।

गौरैया का घोंसले के लिए तिनका इकट्ठा करना लेखक को “'रामशिला' एकत्र करना लगता है और वह गौरैया के इस कार्य को रामलला के मंदिर तथा मस्जिद निर्माण के प्रसंग से जोड़ देता है। घर में घोंसला बनाती तथा दो नन्‍्हीं गौरैयों के जन्म के बाद लेखक का उससे आत्मीय संबंध स्थापित हो जाता है। एक दिन दोनों बच्चों को अकेला छोड़कर गौरैया का कहीं चले जाना तथा उसके बाद उसका दोनों नन्‍्हीं गौरैयों के साथ मंदिर के कलश पर बैठकर चहकने के प्रकरण को रवीन्द्र कालिया उनके जन्मजात संस्कारों को हिन्दू परिवार से जोड़कर देखता है, किन्तु उसके दिमाग की इस गलतफहमी को उसकी पत्नी द्वारा दूर किये जाने पर कि गौरैया अपने विश्राम तथा आश्रय के लिए शांत स्थान बिना किसी धर्म-सम्प्रदाय की पाबंदियों में बंधे ढूंढ़ती रहती है, लेखक को यह सोचने पर विवश कर देता है कि चिड़िया किसी भी धर्म-सम्प्रदाय के बंधन से विमुक्त मनुष्य को धर्म-निरपेक्ष भाव से अपने में ही मस्त-मग्न होकर जीने का मानवीयता का शांतिपूर्ण संदेश देती है। 

रवीन्द्र कालिया इस कहानी के माध्यम बड़ी ही कुशलता के साथ भगवान की सार्थकता को प्रश्नांकित करने का संदेश भी पाठकों को प्रेषित करने का प्रयास करते हैं।

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