Recents in Beach

शंकर ने साल भर तक कठिन तपस्या की; मीयाद के -पहले रुपये अदा करुत्ते का उसने व्रत सा ले लिया। दोपहर को पहले भी चूल्हा न जलता था

शंकर ने साल भर तक कठिन तपस्या की; मीयाद के -पहले रुपये अदा करुत्ते का उसने व्रत सा ले लिया। दोपहर को पहले भी चूल्हा न जलता था; चबेने पर बसर होती थी, अब वह भी बंद हुआ, केवल लड़के के लिए रात को रोटियाँ रख दी जातीं। पैसे राज का तम्बाकू भी पी जाता था, यह एक व्यसन था, जिसका वह कभी त्याग न कर सका था। अब वह व्यसन भी इस कठिन ब्रत्त की भेंट हो गया। उसने चिलम पटक दी, हुकका तोड़ दिया और तम्बाकू की हाँडी चूरचूर कर डाली। कपड़े पहले भी त्याग की चरम सीमा तक पहुँच चुके थे, अब वह प्रकृत्ति की न्यूनतम रेखाओं में आबद्ध हो गये।

उत्तर- प्रसंग: प्रस्तुत गद्यांश प्रेमचंद की मार्मिक कहानी “सवा सेर गेहूँ” से अवतरित है। इस गद्यांश में प्रेमचंद ने औपनिवेशिक शासन काल में ब्राह्मणों द्वारा किए जा रहे निर्धन किसानो के शोषण का मार्मिक चित्रण किया गया है। कहानी का मुख्य पात्र शंकर नामक एक निर्धन किसान है जो घर में अनाज का एक दाना न होत हुए भी द्वार पर आए महात्मा महोदय के भोजन की व्यवस्था के लिए एक विप्र के यहाँ से “सवा सेर गेहूँ” कर्ज लेकर आता है। यह सवा सेर गेहूँ ही कुछ अवधि में बढ़कर साठ रुपये तक पहुँच जाता है और शंकर उसको चुकाने के लिए हर प्रकार का त्याग करने के लिए तत्पर हो जाता है। यह प्रसंग उसी अवसर का हे।

व्याख्या: ऋण को चुकाने के लिए शंकर ने ब्रत सा ले लिया और एक प्रकार की तपस्या के रूप में अपने दैनिक में विभिन्‍न प्रकार के त्याग करने शुरू कर दिए। पैसों की कमी के कारण दोपहर कर खाना न बनाने का क्रम तो पहले से ही चल रहा था और सिर्फ चबेनी (चना चबेनी) से ही गुजारा चल रहा था लेकिन वह चबेनी भी अब बंद कर दिया गया था ताकि बचत की जा सके। केवल लड़के के लिए रात की रोरियों की व्यवस्था कर दी जाती। उसका शौक एक पैसे रोज का तंबाकू लेने का था किंतु बचत की इस मजबूरी ने उसको भी बंद करवा दिया। उसने इसको लागू करने के लिए चिलम को एक ओर पटक दिया। हुक्‍्के को भी तोड़ दिया और तंबाकू की हांडी को भी चकनाचूर कर दिया। कपड़े पहनने में तो पहले ही कंजूसी बरती जा रही थी किंतु अब तो और अधिक बचत की मजबूरी के चलते वह इस दृष्टि से प्रकृति को न्यूनतम रेखाओं में बंध से गए अर्थात न्यूनतमक कपड़े पहनने लगे।

विशेषः (i) ग्रामीण जीवन के कुशल चतेरे के रूप में प्रेमचंद ने इन पंक्तियों मे ग्राम्य जीवन की निर्धनता तथा विषमताओं का जीवंत चित्र प्रस्तुत किया हें।

(ii) गधांश की भाषा साधारण बोलचाल की एवं विषय के अनुकूल है।

Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE

For PDF copy of Solved Assignment

WhatsApp Us - 9113311883(Paid)

Post a Comment

0 Comments

close