ऐसा काम दूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो॥ मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत्त है, जिससे सदैव प्यास मिटती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, उसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ। इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकत्ता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो और अवसर देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो | गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है। लेकिन बेगरज को दाँव पर पानाजरश कठिनःहै। इन बातों को निगाह में बाँध लो। यह मेरी जन्म भर की कमाई है।
उत्तर- प्रसंग:- प्रस्तुत गद्यांश मुंशी प्रेमचंद की कहानी “नमक का दारोगा से अवतरित है. जिसमें औपनिवेशिक व्यवस्था के दौरान समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार की एक झलके प्रस्तुत की गई है। मुंशी वंशीधर-जब रोजगार की खोज में निकलते हैं तो उनके पिता उन्हें ऐसी नौकरी की तलाश की सलाह-देंते है जिसमें “ऊपरी आमदनी” की भी गुंजाइश हो। यह प्रसंग उसी अवसर का है।
व्याख्या: वंशीधर के पिता उसे समझाते हुए कहते है कि तुम ऐसी“च्लौकरी कौ.तलाश करना जिसमें ऊपरी आय (रिश्वत) की भी प्रचुर संभावना हो क्योंकि मासिके.वेतन तो सीमित होता है और्मामैहैमें केवल एक बार ही मिलता है। उसकी स्थिति तो पूर्णमासी के चाँद जैसी होती हैःज्जों मास में केवल एक बार 'दिखकर घटना शुरू हो जाता है और लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय (रिश्वत) की स्थिति बताते हुए स्रोत के समान है जिसके पानी से ही व्यक्ति की प्यास ठीक से बुझ पाती है। एक अदभूत् सा तर्क देते हुए वे कहते है कि वेतन तो व्यक्ति द्वारा दिया जाता है इसी कारण उसमें “बरकत' नहीं होती जबकि ऊपर की आमदनी ईश्वर की ओर से प्राप्त होती है इसीलिए उसमें बरकत भी होती है। बेटे को संबोधित करते हुए वह कहता वे कि तुम तो स्वयं पढ़े लिखे हो अत: तुम्हें समझाने की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए लेकिन इस बात को समझने के लिए विवेक (बुद्धि) का सहारा लेना चाहिए। वह अपने पुत्र को व्यवहार कुशल बनने का आदेश जारी रखते हुए कहता है कि अवसर मिलने पर तुम सामने वाले व्यक्ति की आवश्यकता (मजबूरी) को समझो और कोई 'गरज' वाला व्यक्ति हो तो उसके लाभ कठोरता का व्यवहार करने से लोभ मिलने की अच्छी संभावना है लेकिन किसी व्यक्ति की गरज उतनी नहीं हो तो उसको दाँव पर पाना कठिन कार्य हो सकता है। आप इन बातों को ध्यान से सुनकर अपने दिमाग में रख लो क्योंकि ये बातें मैंने जीवन भर के अनुभव से सीखी हैं। प्रकारान्तर से वह रिश्वत लेने की आवश्यकता तथा उसके तौर तरीकों से अपने बेटे को अवगत करा रहा है।
विशेषः (1) इस गद्यांश में औपनिवेशिक व्यवस्था के दिनों में समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार की सुंदर झलक प्रस्तुत की है।
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