शब्द की तीसरी शक्ति का नाम हे व्यंजना। व्यंजना शक्ति शब्द के मुख्यार्थ और लक्ष्यार्थ को पीछे छोड़ती हुई उसके मूल में छिपे हुए अकथित अर्थ का बोध कराती है। व्यंजना शब्द-शक्ति से शब्द का सूक्ष्मतर, गहनतर अर्थ व्यंजित होता है। ध्वन्यालोक में व्यंजना की अपार शक्ति का प्रतिपादन किया गया है। ध्वनिकार का कथन हे कि काव्य में मुख्यतः वाच्यार्थ का नहीं, व्यंग्यार्थ का सौन्दर्य होता हे। व्यंग्यार्थ की महत्ता के कारण ही काव्य के तीन भेद-उत्तम काव्य, मध्यम काव्य और अधम काव्य- किये गये हैं। प्रकरण, वक्ता, काल, आश्रय, कार्य, विषय आदि के अनुसार व्यंग्यार्थ वाच्यार्थ से भिन्न हो जाता हे। जेसे, सूर्यास्त हो गया का वाच्यार्थ तो एक ही हे परन्तु व्यंग्यार्थ गृहिणी, विद्यार्थी, दुकानदार, चोर-लुटेरों के लिए अलग-अलग होगा। व्यंग्यार्थ सब नहीं समझ पाते, केवल प्रतिभासम्पन्न, काव्य मर्मज्ञ ही प्राप्त करते हैं।
व्यंजना शक्ति के भेदोपभेद : इसके दो प्रमुख भेद हें-शाब्दी और आर्थी। शाब्दी व्यंजना में व्यंजक शब्द की प्रधानता रहती हे और आर्थी व्यंजना में व्यंजक अर्थ की। किन्तु इन भेदों का अभिप्राय यह नहीं है कि शाब्दी व्यंजना में केवल शब्द ही, और आर्थी व्यंजना में केवल अर्थ ही, व्यंग्यार्थ के प्रतिपादन में व्यंजक होते हैं, अपितु दोनों अवस्थाओं में शब्द और अर्थ व्यंजक होकर एक-दूसरे के सहायक बनते हें। हाँ, शाब्दी व्यंजना में व्यंजक शब्द की प्रधानता रहती है तथा व्यंजक अर्थ की गोणता, और आर्थी व्यंजना में व्यंजक अर्थ की प्रधानता रहती है तथा व्यंजक शब्द की गौणता।
1. शाब्दी व्यंजना
शाब्दी व्यंजना के दो उपभेद माने गये हैं-अभिधामूला ओर लक्षणामूला।
(क) अभिधामूला व्यंजना : अभिधामूला व्यंजना उसे कहते हैं, जिसके द्वारा किसी अनेकार्थक शब्द के उस अन्य अर्थ की भी प्रतीति हो जाती है जो संयोग, विप्रयोग आदि नियामक कारणों द्वारा नियन्त्रित हो।
उदाहरण,
मुखर मनोहर स्यथाम रंग बरसत मृद अनुरूप।
इमत मतवारी झमकि बनमाली रस रूप॥
-अज्ञात
यहाँ प्रस्तुत प्रसंग बनमाली अर्थात् मेघ का है। 'बनमाली' शब्द का यहाँ संयोगादि (प्रकरण) द्वारा निर्णीत अर्थ है-मेघ, किन्तु अभिधामूला व्यंजना द्वारा बनमाली का अर्थ 'कृष्ण' भी प्रतीत होता है, जिससे ' मेघ' और “कृष्ण' में उपमेय-उपमान भाव भी फलित हो जाता है। यहाँ शाब्दी व्यंजना इसलिए है कि ' बनमाली' शब्द का कोई पर्यायवाची शब्द-मेघ, जलद, आदि, रख देने से अभीष्ट चमत्कार नष्ट हो जाता हे।
(ख ) लक्षणामूला व्यंजना : जिस प्रयोजन के लिए लक्षणा का आश्रय लिया जाता है, वह प्रयोजन जिस शक्ति के द्वारा प्रतीत होता है, उसे लक्षणामूला व्यंजना कहते हैं।
दूसरे शब्दों में, जिसके द्वारा (वाच्यार्थ और) लक्ष्यार्थ के उपरान्त प्रयोजन-रूप व्यंग्यार्थ की प्रतीति होती है उसे लक्षणामूला व्यंजना कहते हें।
लक्षणामूला व्यंजना का बहुचर्चित उदाहरण हे-' गंगायां घोष: अर्थात् गंगा (नदी) पर घोष (अभीरों-अहीरों की बस्ती) है : यह इसका वाच्यार्थ है। लक्ष्यार्थ है कि घोष गंगा-तट पर है, और इसका व्यंग्यार्थ लक्षणामूला व्यंजना से यह ज्ञात होता है कि घोष शीतल और पवित्र है (ऐसा शीतल और पवित्र है मानो गंगा-तट पर हो)।
2. आर्थी व्यंजना
जो शब्द-शक्ति निम्नोक्त 10 विशिष्टताओं में से किसी एक के कारण अन्य अर्थ का बोधन कराती है, उसे आर्थी व्यंजना कहते हैं। वे विशिष्टताएँ हैं-वक्ता, बोद्धव्य (श्रोता), काकु, वाक्य, वाच्य, अन्यसन्निधि, प्रस्ताव (प्रकरण) , देश, काल, चेष्टा, आदि। इन्हीं विशिष्टताओं के आधार पर आर्थी व्यंजना दस प्रकार की मानी गयी है। कतिपय उदाहरण लीजिए,
वक्तृ-वैशिष्ट्य आर्थी व्यंजना
निरखि सेज रंग रग भरी लगी उसासे लैन।
कछ न चैन चित्त में रह्मो चढ़त चाँदनी रैन॥
-पद्माकर
होली के दिनों में चांदनी रात में नायिका की अवस्था का वर्णन एक सखी नायक से कर रही है कि रंग-बिरंगी सेजों को देखकर वह आहें भरने लगती है और विकल हो जाती है। इस कथन से वक्ता (सखी) का प्रयोजन यह है कि नायक अत्यन्त निष्ठुर है, उसे अपनी नायिका से अलग नहीं रहना चाहिए।
प्रस्ताव ( प्रकरण ) वैशिष्ट्य आर्थी व्यंजना
स्वयं सुसज्जित करके क्षण में, प्रियतम को प्राणों के पण में।
हमीं भेज देती हें रण में, क्षात्र धर्म के नाते।
सखी?! वे मुझसे कहकर जाते।
-मैथिलीशरण गुप्त : यशोधरा
यह यशोधरा की अपनी सखी से उक्ति है। यहाँ प्रकरणगत व्यंग्यार्थ यह है कि यदि गौतम यशोधरा से कहकर जाते, तो उन्हें इस पुण्य-कार्य में कोई बाधा न होती।
अन्यसन्निधि-वैशिष्ट्य आर्थी व्यंजना
निहचल बिसिनी पत्र पै लख बलाक यहि भांति।
मरकत भाजन पे मनौ अमल संख सुभ कांति॥
नायिका की नायक से उक्ति है-देखो, कमलिनी के पत्ते पर बेठा हुआ यह बगुला इस प्रकार सुन्दर दीखता है, जैसे कि निर्मल मरकत मणि की थाली पर रखा हुआ शंख। यह उक्त पद्य का वाच्यार्थ हे।
व्यंग्यार्थ है कि यह स्थान अत्यन्त निर्जन एवं एकान्त है (क्योंकि, यहाँ बगुला तक किसी के डर से पंख नहीं फड़फड़ाता, वह निश्शंक बैठा हुआ हे)। यह व्यंग्यार्थ वक्ता ओर बोधव्य (श्रोता) से किसी अन्य (अर्थात् बलाका) द्वारा प्रतीत होता है। अत: यहाँ अन्यसन्निधिवैशिष्ट्य आर्थी व्यंजना हे।
Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE
For PDF copy of Solved Assignment
WhatsApp Us - 9113311883(Paid)
0 Comments
Please do not enter any Spam link in the comment box