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उत्तर आधुनिकता

आधुनिकता को सही अर्थों में परिभाषित कर पाना एक जटिल प्रक्रिया है, क्योंकि आधुनिकता की अवधारणा किसी एक तत्त्व पर आश्रित नहीं है। आधुनिकता जीवन की प्रगतिशील अवधारणा हे, एक दृष्टिकोण हे, एक बोध प्रक्रिया है, एक संसार प्रवाह है। आधुनिकता को रूढि से अनवरत विद्रोह करना पड़ता है, क्योंकि वह परम्परा का विकास हे।

अंग्रेजी में "आधुनिक ' का पर्यायवाची शब्द “मा्डर्न' है, जो नवयुगीन, वर्तमान से सम्बद्ध रीति-रिवाज और “व्यक्ति! के अर्थ में प्रयुक्त होता है। आधुनिकता के लिए वहां “माड्डर्निटी' शब्द प्रयुक्त होता है जिसका कोशगत अर्थ हे-नूतनता, नवीनता और आधुनिकता। वस्तुतः ' आधुनिकता' केवल “नवीनता' के अर्थ को व्यक्त नहीं करती अपितु इसमें देश-काल की जीवन्तता के साथ विवेकयुक्त वैज्ञानिक दृष्टि भी जुड़ी हुई है।

आधुनिकता एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें निरन्तरता का गुण विद्यमान है। आधुनिक एक दृष्टि हे जिसे नपे-तुले शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। यह एक जटिल प्रक्रिया है जो कई स्तरों पर होती है। डॉ. धनंजय वर्मा ने अपनी पुस्तक “आधुनिकता के बारे में तीन अध्याय ' में लिखा है-“मेरी धारणा है कि आधुनिकता मानव विकास यात्रा की जटिल, संश्लिष्ट और गतिशील प्रक्रिया है। यह केवल एक स्थिति और धारणा नहीं है, निरन्तर नए होते जाने की वृत्ति ओर वर्तमानता का बोध भी है। इसीलिए मैं आधुनिकता को परम्परा या पुरातनता का केवल विलोम नहीं मानता। आधुनिकता का सारा चिन्तन और उपक्रम प्राचीन और आधुनिक के द्वन्द्द से उपजी संक्रान्ति का परिणाम हे।”

आधुनिकता का संस्कार वैज्ञानिक सोच से जुड़ा हुआ हेै। विज्ञान ने हमें पुरातन मूल्यों को तर्क की कसौटी पर कसना सिखाया हे। उसने मानव ज्ञान को निरन्तरता और चिर नूतनता के प्रति विश्वस्त किया है ओर यही अर्थ 'आधुनिकता' के मूल में भी हे। आधुनिकता संस्कृति को गतिशीलता देती है तथा उसके संचरण की दिशा भी निर्देशित करती है। सच तो यह है कि आधुनिकता ही सांस्कृतिक विकास की प्रेरक है। विवेकयुक्त चिन्तन से ही आधुनिकता को देखना-परखना समीचीन है, क्योंकि आधुनिकता मूल्यों का नवीनीकरण भी करती है और नए मूल्य भी प्रदान करती है।

आधुनिकता को रूढ्िग्रस्त मानसिकता से नहीं समझा जा सकता और न ही उसका प्रतिमानीकरण किया जा सकता है।

आधुनिकता के मूल तत्त्व

आधुनिकता के मूल तत्त्व निम्न प्रकार हैं-

1. वैज्ञानिक चेतना

2. तटस्थ बुद्धिवाद

3. प्रश्नाकुल मानसिकता

4. युगबोध एवं समसामयिकता

5. अस्तित्व चेतना

6. संत्रास एवं अलगाव

7. मूल्य संकट एवं मूल्य संक्रमण

आधुनिकता दृष्टि अनिवार्यतः बोद्धिक हे। स्वविवेक की कसौटी पर कसे बिना वह मान्यताओं को स्वीकार नहीं करती। आधुनिकता एक प्रश्नाकुल मानसिकता हे, जो हर बंधी-बंधाई व्यवस्था, मर्यादा या धारणा को तोड़ती है। युगबोध एवं समसामयिकता को आधुनिकता से अनिवार्यत: सम्बद्ध किया जाता हे, क्योंकि आधुनिकता वस्तुतः समसामयिक मूल्यों का प्रतिफलन है। युगबोध भी आधुनिकता का प्रमुख लक्षण है क्‍योंकि युग से असम्पृक्त होकर कोई भी व्यक्ति आधुनिक होने का दावा नहीं कर सकता। अपने अस्तित्व के प्रति सजग चेतना भी आधुनिकता का एक लक्षण हे। मूल्यों, मान्यताओं, आशाओं एवं आकांक्षाओं के प्रति 'मोह-भंग' व्यक्ति को “संत्रास' एवं 'अलगाव' से भर देता है। स्वतन्त्रता के उपरान्त मूल्यों का विघटन तेजी से हुआ। आधुनिकता का भावबोध हमें पुराने मूल्यों का त्याग करने एवं नवीन को ग्रहण करने के लिए विवश करता हे। वस्तुतः “सभी प्रकार के अतिवाद से बचते हुए जिज्ञासा को जीवित रखना” ही आधुनिकता को पहचानने का मार्ग है।

उत्तर-आधुनिकता को आधुनिकता का अगला चरण भी कहा गया हे, जिसमें खोते हुए मानवीय मूल्यों और जीवन में अस्वीकार का भाव महत्त्वपूर्ण हे। उत्तर-आधुनिकता में अस्वीकार तथा कटु यथार्थ के साथ क्षोभ ओर संत्रास का भाव विद्यमान है। इसमें हाशिए पर जीवन बिताने वाले लोगों का वर्णन है। महामानव की जगह लघुमानव की स्थापना का प्रयत्न है तथा सार्वभौमिक सत्य पर कुठाराघात है। यह “टोटेलिटी' को नकारता है तथा वर्तमान रूप में उपस्थित समस्याओं पर ध्यान देता है। 'कुरु कुरु स्वाहा' उत्तर-आधुनिक रचना है।

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