मानव प्रकृति के साथ-साथ सामाजिक समझौते पर हॉब्स के दृष्टिकोण ने विद्वानों को प्रभावित करना जारी रखा है और विभिन्न दृष्टिकोणों से इसकी समालोचना की गई है।
मैकफर्सन (1962) ने, मानव प्रकृति पर हॉब्स के दृष्टिकोण राजनीतिक अवस्था से पूर्व की प्राकृतिक अवस्था के बजाय, एक बाजारू समाज में मानव व्यवहार के चित्रीकरण की आलोचना की गई है। मैकफर्सन का तर्क है कि हॉब्स द्वारा वर्णित प्रतिस्पर्धातमक और लगातार युद्ध की मानव प्रकृति उनके समय में उभरते बाजारू समाज की एक विशेषता थी। इस प्रकार उनके विचार में हॉब्स का सामाजिक समझौता, एक शक्तिशाली संप्रभु के निर्माण का सुझाव देकर उभरते बाजारू समाज की अस्थिर प्रकृति को स्थिर करने का एक प्रयास था। इसके अलावा भी कई लोगों ने हॉब्स की प्राकृतिक अवस्था की अनैतिहासिक प्रकृति की आलोचना की है। हॉब्स ने लेक्ड्थन में स्वयं स्वीकार किया है कि वह जिस प्रकार की प्राकृतिक अवस्था का वर्णन करते है वह काल्पनिक है न कि ऐतिहासिक।
हॉब्स के नैतिक दर्शन की एडम स्मिथ (1759) और साथ ही लियो स्ट्रॉस (1936) जैसे कई प्रमुख विचारकों ने आलोचना की है। दोनों ने हॉब्स में गहरी पैठ बना चुके नैतिक सापेक्षवाद को देखा था जिसके वे आलोचक थे। जैसा कि पहले चर्चा की जा चुकी है हॉब्स के नैतिक ढांचे में अच्छाई और बुराई काफी हद तक क्रमशः भूख और विरक्ति के बराबर है। हॉब्स द्वारा नागरिक समाज पूर्व प्राकृतिक अवस्था में न्याय की संभावना को नकारने और इस तरह नैतिकता को उच्च सिद्धांतों से रहित राज्य के लिए मात्र आविष्कार के रूप में घटोत्तर करने के लिए एडम स्मिथ (1759) विशेष रूप से उनकी आलोचना करते हैं। इस प्रकार भौतिकवादी, यंत्रीकृत आकस्मिक सिद्धांतों से उत्पन्न होने वाले नैतिक उपदेशों सहित मानव व्यवहार को कमतर करने के उनके प्रयास पर कई लोगों ने सवाल उठाया है। हालाँकि इस दृष्टिकोण पर वारेंडर (1957) जैसे विद्वानों ने भी सवाल उठाया है जिन्होंने यह तर्क देते हुए हॉब्स के प्रति एक सिद्धांतवादी दृष्टिकोण को अपनाया है कि उनका नैतिक दर्शन मुख्य रूप से प्राकृतिक कानूनों पर आधारित है जो प्राकृतिक अवस्था में भी अपरिवर्तनीय और शाश्वत होते हैं क्योंकि वे सीधे ईश्वर से उत्पन्न होते हैं। हॉब्स के लेखन में इन दोनों विचारों का समर्थन करने के लिए प्रमाण मिल सकते हैं। इस बारे में भी सवाल पूछे गए हैं कि कया हॉब्स द्वारा प्राकृतिक अवस्था में वर्णित सत्ता के भूखे और असुरक्षित मनुष्य कभी सामाजिक समझौता बनाने के लिए एक साथ आ सकते हैं। यहसंदेहास्पद है कि क्या प्राकृतिक अवस्था के आक्रामक और हिंसक मनुष्य अचानक तर्क खोज लेंगे और एक सामाजिक समझौता स्थापित करेंगे। इसके अलावा एक निरंकुश संप्रभु बनाने के लिए हॉब्स की भी आलोचना की गई है जिसके लिए आत्म-संरक्षण के अधिकार को छोड़कर सभी अधिकार आत्मसमर्पित कर दिए जाते हैं।
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