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संस्मरण लेखन की विशेषताएँ बताइए।

संस्मरण एक अंतर्विरोधी प्रकृति वाला साहित्य रूप है। उसके लिखे जाने के लिए परिचय का विस्तार बहिर्मुखता की माँग करता है. जबकि उसका कलात्मक रचाव हार्दिकता एवं अंतर्मुखता की अपेक्षा रखता है। एक सीमा तक ही इन दोनों को साध पाना संभव होता है। यही कारण है कि अच्छे और उल्लेखनीय संस्मरण किसी भी भाषा में बहुत अधिक नहीं होते। लेखक की स्वभावगत संकोची वृत्ति, यात्रा-भीरुता और मित्र बनाने की कला का अभाव कुछ ऐसे कारक हैं जो संस्मरण-लेखन के विरोध में जाते हैं। अंतरंगता संस्मरण की शिराओं में प्रवाहित रक्त की तरह है जो उसके स्वास्थ्य में एक खास तरह की चमक पैदा करती है। इसके अभाव में संस्मरण के नाम पर लिखी जाने वाली कोई भी रचना रक्त शून्यता की शिकार हो सकती है। औपचारिकता और अविश्वसनीयता जैसे तत्व संस्मरण के सबसे बडे शत्रु हैं। इसीलिए सामान्यत: संस्मरण परिचय की माँग करता है। जिस व्यक्ति के संस्मरण लिखे जा रहे हैं उसकी रचना-दृष्टि, सामाजिक दायित्व और विभिन्‍न मुद्दों पर प्रकट किए गए विचार पूरी विश्वसनीयता और प्रामाणिकता के साथ उनमें आने चाहिए। अपनी प्रकृति में संस्मरण आगे-पीछे दोनों ओर लगे शीशे की तरह होता है जिसमें दीखने वाले के साथ दिखाने वाला भी कहीं न कहीं प्रतिबिंबित होता है। यही कारण है कि संस्मरण केवल उसे ही आलोकित नहीं करता जिस पर वह लिखा गया है। एक सीमा तक वह अपने रचयिता का भी परिचय देता है। राजेद्र यादव जैसे लेखक जब अपने संस्मरणों को संकलित करते हुए औरों के बहाने' शीर्षक देते हैं तो उससे यही ध्वनित होता है कि औरों के बहाने इनका रचयिता अपने बारे में भी बहुत कुछ कहता है। अपने एक व्यंग्य-लेख में हरिशंकर परसाई ने उन संस्मरण लेखकों का मजाक उड़ाया है जो संस्मरण लिखते समय दूसरों से अधिक अपने बारे में लिखते हैं। ऐसे संस्मरण अपने विषय को गौण मानकर रचयिता को ही मुख्यतः केंद्र में रखते हैं। एक अच्छा और प्रामाणिक संस्मरण वही होता है जिसमें लेखक अपने को पृष्ठभूमि में रखकर अपने विषय के विविध पक्षों को समादर, आत्मीयता और विनम्रता के साथ धैर्यपूर्वक खोलता चलता है। संस्मरण का विषय अर्थात्‌ वह व्यक्ति जिस पर संस्मरण लिखा जा रहा है, अपनी सारी विशिष्टताओं के साथ दूसरों की तरह एक सामान्य मनुष्य ही होता है। अतः: यह जरूरी है कि उसे हाड़-मांस के एक मनुष्य की भांति ही प्रस्तुत किया जाए। किसी भी प्रकार की व्यक्ति-पूजा का भाव संस्मरण लेखन की प्रकृति से मेल नहीं खाता। जिस व्यक्ति को संस्मरण के लिए चुना गया है, उसके इस चुनाव में ही यह निहित है कि वह रचयिता का प्रिय और आदरणीय है। ऐसे व्यक्ति का जो प्रभाव लेखक पर पडा है उसका आकलन ही वह अपने संस्मरण में करता है। आदर्श संस्मरण वही है जिसमें लेखक अपने विषय के प्रति सारे समादर के साथ किसी प्रकार की एकांगिता से बचकर चलता है। अपने संस्मरण के लिए चुने गए व्यक्ति को संपूर्ण और विश्वसनीय रूप में प्रस्तुत करने की दृष्टि से भी यह जरूरी है कि संस्मरण में संतुलन और वस्तुपरकता के महत्व को समझा जाए। एक अच्छा संस्मरण अपने विषय के प्रति आत्यंतिक विनम्रता और वस्तुपरकता के योग से ही संभव होता है।

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