M.H.D-17
भारत की चिंतन परम्पराएं और दलित साहित्य
1. निम्नलिखित काव्यांशों की लगभग 200 शब्दों में संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए :
(क) “शीलानाच्छीलमित्युक्तं शीलनं सेवनादपि।
सेवन तन्निदेशाच्च निदेशश्च तदाश्रयात् ।।”
(ख) “इत्येषा व्युपशान्तये न रतये मोक्षार्थगर्भाकतिः,
श्रोवणां ग्रहणार्थमन्यमनसां काव्योपचाशत् कृता।
यन्मोक्षात्कृतमन्यदव हि मया तत्काव्यधर्मात् कृतम्,
पातुं तिक्तभिवौषधं मधुयुतं हृद्य॑ं कं स्यादिति।।”
(ग) प्रतयक्ष कल्पनापोढं
नामजात्यादि-असंयुतम |
(घ) अतएव कटकादिजन्यं दुःखमेव नरक:।
लोकसिद्धो राजा परमेश्वर: देहच्छेदो मोक्ष:।
देहात्मवादे च स्थूलोष्हं, कृशोष्हं, कृणोषहम इत्यादि सामानाधिकरण्योपपत्ति:।
'मम शरीरम्' इति व्यवहारों राहोः शिरः इत्योदिवदौपचारिक:।।
2. निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 500 शब्दों में दीजिए:
(क) प्रमाणवाद को स्पष्ट करते हुए, प्रत्यक्ष प्रमाण के तत्वों को विस्तार से बताइये।
(ख) संवाद की लोकतांत्रिक परम्परा पर प्रकाश डालिए।
(ग) सिद्ध संप्रदाय के ऐतिहासिक परिवेश को समझाइये।
(घ) तेलगु की संत परंपरा को समझाते हुए, तेलगु के प्रमुख संत कवियों पर विचार कीजिए।
3. निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100 शब्दों में दीजिए:
(क) बौद्ध धर्म के उदय एवं विकास को संक्षेप में बताइये।
(ख) आर्य नागार्जुन के दर्शन को समझाइये।
(ग) निर्गुण संत कवियों के सामाजिक पक्ष पर प्रकाश डालिए।
(घ) महानुभाव पंथ का मूल्यांकन कीजिए।
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