शब्दावली निर्माण की दिशा में पहला प्रयास यह रहता है कि अवधारणा के व्यावहारिक अर्थ को व्यक्त करने वाला अपने भाषा-भंडार में उपलब्ध पर्याय का चयन किया जाए। जिन शब्दों के लिए हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में पर्याय प्रचलित है, उनके लिए उन पर्यायों का ही इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के लिए ‘hour’ का समकक्ष ‘घंटा’ शब्द मौजूद था तो उसे रखा गया है, जबकि ‘मिनट’ और ‘सेकंड’ शब्दों को ग्रहण कर लिया गया है।
इसी भाँति जिन ज्ञान शाखाओं की शब्दावली प्राचीन भारतीय विद्याओं में विद्यमान है- उदाहरण के लिए गणित, दर्शन, अर्थशास्त्र, साहित्यशास्त्र-वहाँ उन्हीं पर्यायों को अपनाया जाता है, प्रमेय’, ‘स्नातक’, ‘अभिनय’ आदि ऐसे ही शब्द हैं। इसी भाँति भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी शब्दों के लिए प्रचलित पर्यायों को लिया गया है। जैसे ‘bligited area’ के लिए मराठी का ‘झोपड़पट्टी’ शब्द रखा गया है। जो संकल्पनाएँ नई हैं उनके लिए शब्दों के ग्रहण की पद्धति के अलावा नए शब्दों का निर्माण भी किया जाता है। इस प्रक्रिया में अनुवाद का भी सहारा लिया जाता है।
इस तरह विभिन्न श्रेणियों के शब्दों को मिलाकर राष्ट्रीय शब्दावली परिवार विकसित किया गया है जिसमें परंपरागत, आगत और नवनिर्मित तीनों तरह के शब्द हैं। इन शब्दों के निर्माण में निम्नलिखित प्रक्रियाएँ अपनाई गई हैं
(1) अंगीकृत-पारिभाषिक शब्दावली निर्माण करते समय वैज्ञानिक शब्दावली निर्माण आयोग ने बड़ी मात्रा में अंतर्राष्ट्रीय शब्दों का चयन किया है। रासायनिक तत्त्वों और यौगिक अथवा रेडिकलों के नामों (जैसे-कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन) व्यक्तियों के नाम पर बनाए गए शब्दों (वोल्ट मीटर, एम्पियर आदि), द्विपद नामावली (जैसे सराका इंडिका), टमारिंडस इंडिका आदि को अंगीकृत कर लिया गया है।
पेट्रोल, रेडियो, रेडार, डीजल, इंजन, मोटर, बिस्कुट आदि जैसे भारतीय भाषाओं में रचे-पचे शब्दों को भी स्वीकार किया गया है। अंगीकृत शब्दों का लिप्यंतरण देवनागरी में करते समय भारतीय भाषाओं की प्रकृति को ध्यान में रखा जाता है।
(2) अनुकूलन-अनुकूलन से अर्थ है ‘शब्द को भाषा के अनुकूल ढालना।’ जब विदेशी भाषा का कोई शब्द किसी भाषा में ग्रहण कर लिया जाता है तो उसे उस भाषा का (जिसमें उसे ग्रहण किया गया है) शब्द मानकर प्रयोग किया जाता है। संकर शब्दों (hybrid words) के उदाहरण के रूप में ‘आयनीकरण’,’वो वोल्टता’, ‘साबुनीकारक’ आदि।
यहाँ क्रमश: ‘आयन’ के साथ ‘करण'”वोल्ट’ के साथ ‘ता’, ‘साबुनी’ के साथ ‘कारक’ प्रत्ययों का प्रयोग किया गया है यानी विदेशी शब्द में हिंदी प्रत्यय लगाकर संकर शब्द निर्मित किए गए हैं। अनुकूलन की यह प्रवृत्ति हर भाषा की सहज प्रकृति होती है। उदाहरण के लिए रेलगाड़ी’, ‘बस अड्डा’ जैसे शब्द हिंदी में पहले से मौजूद हैं। इस प्रवृत्ति से भाषा का सहज वाक्य विन्यास कायम रहता है।
(3) नवनिर्माण-जिन पारिभाषिक शब्दों के समुचित पर्याय भारतीय भाषाओं में उपलब्ध न हों तथा जिन्हें अंगीकृत करना भी उपयोगी न हो, उनके लिए पर्यायों के नवनिर्माण का सिद्धांत अपनाया गया है। इस तरह नए शब्द के निर्माण के लिए संस्कृत की धातु लेकर उनमें उपसर्ग और प्रत्यय लगाकर शब्द बनाए जाते हैं।
क्रिया’ शब्द से ‘प्रक्रिया’, ‘संक्रिया’, ‘अभिक्रिया’, ‘अनुक्रिया’ आदि शब्द बनाए गए हैं। नवनिर्माण की यह पद्धति संकल्पनात्मक शब्दों के लिए तो बहुत ही उपयोगी और व्यावहारिक है। इसलिए राष्ट्रीय शब्दावली के निर्माण में इसे खुलकर अपनाया गया है।
(4) अनुवाद-शब्दावली निर्माण की प्रक्रिया में अनुवाद की भूमिका भी बड़ी महत्त्वपूर्ण है। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के विकास के साथ जीवन पद्धतियों में बदलाव हुआ है। इस प्रकार अनेक प्रकार की नई-नई संकल्पनाएँ एवं स्थितियाँ विकसित हुई हैं और होती रहती हैं।
उनकी अभिव्यक्ति के लिए नई शब्दावली बनती है अथवा पुरानी शब्दावली में अर्थ विस्तार होता है। राष्ट्रीय पारिभाषिक शब्दावली को इस विकास के लिए अनुवाद की आवश्यकता पड़ती है। इस पद्धति में कभी-कभी संकल्पना को प्रकट करने वाले पूरे शब्द समूह का अनुवाद कर लिया जाता है।
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