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अनुवाद के विभिन्‍न क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।

अनुवाद के विविध क्षेत्र और उनके विभिन्न आयामों की विस्तार से चर्चा इस प्रकार है - 

(1) प्रशासनिक साहित्य और अनुवाद-किसी क्षेत्र में विशिष्ट शासन या किन्हीं मानव प्रबंधन गतिविधियों को प्रशासन कहा जाता है। प्रशासन से तात्पर्य सरकारी कामकाज से है।

चूँकि इसका दायरा बेहद विस्तृत है इसलिए यहाँ केंद्र और राज्य के कार्यक्षेत्र में आने वाले विभाग, अधीनस्थ विभाग, मंत्रालय, सरकारी बैंक, अर्धसरकारी बैंक, संबद्ध कार्यालय, स्वशासी निकाय, आयोग, समितियाँ, सहकारी बैंक तथा इनके अधीन आने वाले अन्य विभाग शामिल हैं। राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 3(3) के अनुसार निम्नलिखित के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाएँ प्रयोग में लाई जाएँगी

(क) केंद्रीय सरकार या उसके किसी मंत्रालय, विभाग या कार्यालय द्वारा या उसकी ओर से केंद्रीय सरकार के स्वामित्व में या नियंत्रण के किसी निगम या कंपनी के किसी कार्यालय द्वारा निष्पादित संविदाओं और करारों के लिए तथा निकाली गई अनुज्ञप्तियों, अनुज्ञापत्रों, सूचनाओं और निविदा प्रारूपों के लिए।

(ख) संकल्पों, साधारण आदेशों, नियमों, अधिसूचनाओं, प्रशासनिक या अन्य प्रतिवेदनों या प्रेसविज्ञप्तियों के लिए जो केंद्रीय सरकार द्वारा या उसके किसी मंत्रालय, विभाग या कार्यालय द्वारा या केंद्रीय सरकार के स्वामित्व में या नियंत्रण में किसी निगम या कंपनी द्वारा या ऐसे निगम या कंपनी के किसी कार्यालय द्वारा निकाले जाते हैं या किए जाते हैं। 

(ग) संवाद के किसी सदन या सदनों के समक्ष रखे गए प्रशासनिक तथा अन्य प्रतिवेदनों और राजकीय कागज-पत्रों के लिए। प्राधिकृत हिंदी अनुवाद की व्यवस्था इन सबके अनुवाद के लिए की गई है। प्रशासनिक साहित्य की भाषा-प्रशासनिक साहित्य की भाषा का अपना एक सौंदर्यशास्त्र है।

साहित्य की भाषा में एकदम अलग प्रशासनिक भाषा का केंद्रीय तत्त्व संप्रेषणीयता है। इसक लिए कुछ विशेषताएँ निर्धारित की गई हैं जिनके अनुसार प्रशासन की भाषा बोधगम्य हो, सरल-सुव्यवस्थित हो, एकार्थता को, संप्रेषणीयता को केंद्र में रखते हुए अधिक महत्त्व दिया गया है। प्रशासनिक भाषा का एक अन्य बेहद महत्त्वपूर्ण तत्त्व है निर्वैयक्तिकता। इसका तात्पर्य यह है कि यहाँ प्रयोग होने वाली भाषा का व्यक्तिविशेष से कोई संबंध नहीं होता । यहाँ दिए जाने वाले आदेश व निर्देश व्यक्ति द्वारा न दिए जाकर पद द्वारा दिए जाते हैं। यही कारण है प्रशासनिक भाषा में कर्मवाच्य की प्रधानता नहीं होती बल्कि कर्तृवाच्य की प्रधानता रहती है।

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प्रशासनिक साहित्य की भाषा औपचारिकता से परिपूर्ण होती है। इसमें अनेकार्थता की कोई संभावना नहीं होती है।  भाषा सरल एवं बोधगम्य प्रयोग किए जाने वाले शब्दों की अपनी एक तय शब्दावली होती है जिनका संबंध सीधा प्रशासन तथा सरकारी कार्यालय में प्रचलित कार्य प्रणाली से होता है। यह भाषा आम भाषा से अलग अपने तय अर्थ रखती है जिसमें अर्थविचलन की कोई संभावना नहीं होती।

इसलिए अनुवाद करते समय अनुवादक को भी कुछ खास बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। भारत सरकार द्वारा प्रशासनिक साहित्य के अनुवाद के लिए अनुवाद प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है। इसके अंतर्गत 1971 से अनुवाद प्रशिक्षण का कार्य भारत सरकार के गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग के अंतर्गत काम कर रहे केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो को सौंपा गया जिसके तहत सरकारी कार्यालयों में काम कर रहे कर्मचारियों को समय-समय पर अनुवाद की प्रक्रिया और सिद्धांत से अवगत करवाया जाता है।

केंद्रीय सरकार के मंत्रालयों, विभागों के अनुवाद कार्य से संबंधित सभी कर्मचारियों के लिए केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो द्वारा अनुवाद प्रशिक्षण अनिवार्य है। केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो अनुवाद प्रशिक्षण के लिए त्रैमासिक, इक्कीस दिवसीय, पाँच दिवसीय अनुवाद प्रशिक्षण जैसे कई कार्यक्रम चलाता है। विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे अनुवादक इन प्रशिक्षणों की सहायता से अनुवाद के विभिन्न आयामों से समय-समय पर जागरूक होते रहते हैं तथा अपने अनुवाद कौशल को और अच्छा करने का प्रयास करते रहते हैं।

(2) बैंकिंग और अनुवाद-एक परंपरागत बैंकिंग व्यवस्था का पूँजी के लेन-देन को लेकर अपना एक लंबा इतिहास है किंतु भारत को आधुनिक बैंकिंग व्यवस्था अंग्रेजी की देन है। इसी के परिणामस्वरूप हम देख सकते हैं कि भारतीय बैंकिंग व्यवस्था पर पश्चिम का प्रभाव है। आज भी भारतीय बैंकों में मूल लेखनत्र फॉर्म, प्रचार सामग्री, दस्तावेज आदि मूलतः अंग्रेजी में ही तैयार किए जाते हैं।

राजभाषा संबंधी सांविधानिक-विधिक प्रावधानों के कारण बैंक भी राजभाषा प्रयोग के दायरे में आ जाते हैं जिसके कारण अनुवाद को उनके कार्यों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। बैंकिंग का संबंध आम जन और उसकी पूँजी से है इसलिए आमजन की भाषा में बैंकिंग की कार्यप्रणाली को समझाना और पत्र-व्यवहार भारतीय बैंक व्यवस्था के लिए अनिवार्य है। बैंकिंग के क्षेत्र में हिंदी का प्रयोग मूलतः दो स्तरों पर होता है 

(क) राजभाषा के स्तर पर और

(ख) जनभाषा के स्तर पर।

(3) विधि साहित्य और अनुवाद-भारत ने अपने संविधान में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् शासन-प्रशासन और विधि के क्षेत्र में हिंदी के प्रयोग के लिए भाषा योजना की संकल्पना रखी। भाषा योजना के कुल चार चरण होते हैं-चयन, संहिताकरण, विशदीकरण और अनुपालन । इसकी स्थापना के पीछे का उद्देश्य शासन-प्रशासन तथा विधि आदि क्षेत्रों के लिए मानक भाषा और पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण करना था।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात संविधान निर्माण के दौरान ही यह उपबंध किया गया था कि एक राजभाषा आयोग की स्थापना की जाएगी जो राष्ट्रपति को संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए भाषा के बारे में सिफारिश करेगा। 1955 में राजभाषा आयोग का गठन किया गया जिसके तहत आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह सुझाव दिया कि विधि के क्षेत्र में हिंदी में समान रूप से काम करने के लिए दो कार्य अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं-(1) विधि शब्दावली का विकास; और (2) समस्त अधिनियमों का हिंदी में पुनः अधिनियमन |

राजभाषा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में विधि शब्दावली के निर्माण के साथ हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं की शब्दावली के विकास के लिए केंद्र और राज्यों में हो रहे प्रयासों में समन्वय स्थापित करने के लिए समुचित प्रयास किए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया। परिणामस्वरूप तत्कालीन राष्ट्रपति ने 1960 में विधि विशेषज्ञों का एक स्थायी आयोग बनाने का आदेश पारित किया और तद्नुसार 1961 में संघ ने राजभाषा (विधायी) आयोग की स्थापना की। आयोग ने यह निर्णय लिया कि मानक विधि शब्दावली की तैयारी को हिंदी में अधिनियमों के संग्रह के पुनः अधिनियमन के कार्य से अलग न किया जाए । इस प्रकार मानक विधि शब्दावली का निर्माण और अधिनियमों का अनुवाद साथ-साथ चलता रहा।

(4) मीडिया और अनुवाद-वर्तमान काल मीडिया का काल है। तकनीकी विकास के साथ मीडिया का दायरा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। मीडिया के अंतर्गत प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ अब एक नया माध्यम सोशल मीडिया भी आकर जुड़ गया है। अब बहुत सारी खबरों से हम सोशल मीडिया के माध्यम से परिचित होते हैं।

फेसबुक, ट्विटर, वॉट्सएप आदि विभिन्न पोर्टल सोशल मीडिया के अंतर्गत आते हैं जो हमें देश-विदेश तथा विभिन्न विषयों की छोटी-बड़ी खबरों की जानकारी उपलब्ध करवाते हैं। आज प्रचार-प्रसार के लिए इन माध्यमों को विभिन्न देशों एवं समाजों में बड़े-बड़े राजनेता, फिल्मी हस्तियाँ आदि अपना रहे हैं। ऐसी स्थिति में अब हमारे समक्ष मीडिया की एक बिल्कुल नई भाषा आ खड़ी हुई है जो अनुवादकों के समक्ष एक नई चुनौती है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट की बात करें तो इसमें भी विविधता देखी जा सकती है। राजनीतिक, सामाजिक, खेल, मनोरंजन, बाजार । आदि विभिन्न भाषाओं के नमूने यहाँ उपलब्ध हैं। यह तो तय है कि कोई एक पारिभाषिक शब्दावली या कोश; मीडिया के विस्तृत दायरे को देखकर काफी नहीं है।

(5) सर्जनात्मक साहित्य और अनुवाद-सर्जनात्मक साहित्य का उद्देश्य सूचित करना मात्र ही नहीं, अपितु रहस्यों व रसों को उद्घाटित करना होता है।  सर्जनात्मक साहित्य का दायरा काफी विस्तृत है इसमें उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, गीत, गीतिनाटक आदि सब आ जाते हैं। इन सबके अनुवाद के लिए अनुवादक को कुछ विशेष योग्यताओं की आवश्यकता होती है। काव्यानुवाद-स्रोत भाषा में लिखे गए काव्य का लक्ष्य-भाषा में रूपांतरण काव्यानुवाद कहलाता है। यह आवश्यकतानुसार गद्य, पद्य एवं मुक्त छंद में किया जा सकता है।

कविता का अनुवाद वास्तव में सबसे जटिल कार्य है। किसी भी अन्य विधा के अनुवाद की तुलना में कविता का अनुवाद अधिक चुनौतीपूर्ण है। चूंकि कविता के अनुवाद में अर्थ, आशय, शब्द योजना छंद, लय, संस्कृति, काव्य सौंदर्य आदि सबका अनुवाद किया जाना अपेक्षित होता है इसलिए यह लगभग असंभव प्रतीत होता है। कविता का अनुवाद वास्तव में लक्ष्यभाषा में उसकी पुनर्रचना ही है। कविता के अनुवाद के लिए अनुवादक को कविता की गहरी समझ होनी चाहिए । कविता का अनुवाद यदि कोई कवि ही करे तो बेहतर होगा क्योंकि इसके लिए मूल कविता और उसके भाव को आत्मसात् करके उसे पुनर्जीवन दिया जाता है। कविता के अनुवादक को सहृदय होना अत्यंत आवश्यक है चूँकि यहाँ अनुवाद केवल भाषा और भाषा में निहित भावों का ही नहीं होता अपितु संकेतो-बिम्बों-प्रतीकों के साथ पंक्तियों के बीच की चुप्पी का भी होता है । साहित्य और उससे भी कविता के गूढ़ पाठक होना इसकी योग्यता है।

कथा साहित्य का अनुवाद-कथा साहित्य का अनुवाद कविता अथवा नाटक के अनुवाद से किसी भी तरह से सरल नहीं है। कथा साहित्य का अनुवाद भी एक जटिल कार्य है। सर्जनात्मक साहित्य की प्रमुख विधाएँ -कहानी तथा उपन्यास दोनों ही कथा साहित्य के अंतर्गत आती हैं। सर्जनात्मक साहित्य की भाषा अपने आप में बेहद लक्षणात्मक होती है। सांस्कृतिक रूप से समृद्ध यह भाषा अपने समाज से प्राणतत्व प्रदान करती है। अपने समाज में गहरी रची-बसी होने के कारण कथा साहित्य में मुहावरे, लोकोक्तियाँ, भाषा की क्षेत्रीयता आदि अनेक ऐसे तत्त्व होते हैं जो किसी भी अनुवादक के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकते हैं। कथा साहित्य में कविता के अन्य गुणों के साथ एक कथातत्त्व भी होता है जो समाज विशेष की अंतरंग छवि को प्रस्तुत करता है।

फणीश्वर नाथ रेणु का मैला आंचल, श्रीलाल शुक्ल का राग दरबारी, राही मासूम रज़ा का आधा गाँव, यशपाल का झूठा सच, भीष्म सहानी का तमस, कृष्णा सोबती का मित्रो मरजानी तथा जिंदगीनामा, कृष्ण बलदेव वैद का उसका बचपन, मैत्रेयी पुष्पा का चाक, राकेश कुमार सिंह का पठार पर कोहरा – ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो इस बात का प्रमाण हैं कि कथा साहित्य में रचनाकार न केवल विषय की गहराई में उतरते हैं अपितु उनका अपना परिवेश, भाषा, संस्कृति तथा समाज भी रचना में परिलक्षित होता है। ऐसी स्थिति में अनुवादक के सामने भाषा से भी बड़ी चुनौती लेखक अथवा रचना का परिवेश होता है जिसका अनुवाद एक बेहद जटिल कार्य हो जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि सर्जनात्मक साहित्य के अनुवादक के लिए न केवल भाषा अपितु भाषा की संस्कृति और प्रवेश की समझ होना भी अनिवार्य है। कथा साहित्य के अनुवाद में अनुवादक को कृति की मूलनिष्ठता के प्रति जहाँ वफादारी निभानी होती है, वहाँ उसे भाषा की सहजता, रवानी, स्पष्टता और बोधगम्यता का भी ध्यान रखना पड़ता है।

नाट्यानुवाद-नाट्यानुवाद शुरू करने से पहले मूल नाटक को केवल पढ़ना ही नहीं, आत्मसात् करना भी जरूरी है। आत्मसात होने की प्रक्रिया में वह नाटक अनुवादक के मन में अपना रंगमंच खड़ा करने लगता है। साहित्य की अन्य विधाओं से अलग नाटक दृश्य काव्य है। दृश्य काव्य होते ही यह साहित्य की अन्य विधाओं से कुछ स्तरों पर अलग खड़ा हो जाता है। नाट्यसाहित्य की विशेषता है उसका प्रस्तुतीकरण तथा उसके संवाद । यही दो बिंदु उसे अधिक जीवंत बनाते हैं इसलिए नाटक रचते समय नाटककार, उसका मंचन करते समय निर्देशक तथा अनुवाद करते समय अनुवादक को विशेष सतर्कता बरतनी होती है। नाट्यानुवादक को दोनों भाषाओं के ज्ञान के साथ, साहित्यिक रुचि, कथ्य की समझ तथा रंगमंचीय विशिष्टताओं का भी ज्ञान होना चाहिए। लक्ष्यभाषा की रंगमंचीय परंपरा एवं विशेषताओं के साथ-साथ उसे सोतभाषा की नाट्य परंपरा का भी ज्ञान आवश्यक है।

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