राजभाषा वह भाषा है, जो सरकारी राजकाज, प्रशासनतंत्र के कार्य के संपादन संबंधी गतिविधि की, कार्यकलापों की भाषा है। यह भाषा आमतौर पर समस्त देश में अथवा देश के अधिकांश भागों में परस्पर भिन्न-भिन्न भाषा भाषियों के बीच संपर्क माध्यम का कार्य करती है, तो साथ ही देश की शिक्षा, देश के ज्ञान-विज्ञान, रीति-नीति, कला, संस्कृति आदि से संबंधित समस्त कार्यकलापों का निर्वाह भी करती है। राजभाषा हिंदी इन दायित्वों का बखूबी से निर्वाह करती है।
इस भाषा में जो बात कही जाए, उसका अर्थ वही निकलना जरूरी है। इसमें शासकीय कार्यों में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा अर्थ की दृष्टि से औपचारिक, स्पष्ट तथा सुनिश्चित होती है। यह भाषा सबके समझ में आने वाली भाषा है, जिससे इसकी सरलता तथा स्पष्टता दृष्टिगत होती है। राजभाषा और साहित्यिक हिंदी दोनों एक-दूसरे से भिन्न हैं। साहित्य भाषा में बात सीधे या घुमा-फिरा कर भी प्रयोग की जा सकती है। इस भाषा के अंतर्गत लाक्षणिक, व्यंजनाश्रित तथा प्रतीकात्मक और अनेकार्थी की पूरी संभावना रहती है।
इसमें लालित्यपूर्ण और सांकेतिक भाषा का भी प्रयोग किया जा सकता है, परंतु राजभाषा हिंदी का प्रयोग सरकारी कामकाज में होने के कारण इस भाषा का सरल, स्पष्ट तथा एकार्थक और सहज होना जरूरी है, क्योंकि इस भाषा का प्रयोग अहिंदी भाषी लोग भी करते हैं। पारिभाषिक और तकनीकी शब्दावली का प्रयोग राजभाषा के क्षेत्र में होता है। पारिभाषिक अर्थात ज्ञान विशेष के क्षेत्र में परिसीमित और निश्चित होना। शब्द का अर्थ वहीं हो. जो प्रयोक्ता को अभिष्ट हो. या कहना चाहता हो।
राजभाषा हिंदी का प्रयोग अंग्रेजी के साथ-साथ मिलता है; जैसे-विश्वविद्यालयों में आवेदन पत्र के फॉर्म, मनीऑर्डर फॉर्म, रेल आरक्षण फॉर्म, बैंकों से संबंधित फॉर्म आदि में तथा कई तरह के कार्यालयों, कैलेंडरों में महीनों के नाम हिंदी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में होते हैं। ऐसे ही विभिन्न स्थानों पर हिंदी तथा अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं के साथ कहीं-कहीं क्षेत्रीय भाषाओं का भी प्रयोग होता है। छात्रों के लिए यह विचारणीय विषय है कि ऐसा क्यों होता है।
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