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प्रभावशाली सम्प्रेषण की सर्वसामान्य बाधाएं क्‍या है।

 संप्रेषण की अनेक बाधाएं हो सकती हैं जिन्हें प्रमखतः कछ वर्गों में बॉटा जा सकता है एक शिक्षक के लिए, इन बाधाओं को जानना अत्यन्त आवश्यक है जिससे वह एक प्रेषक या स्रोत के रूप में अपने संप्रेषण के दौरान उन्हें ध्यान में रखकर उन्हें दूर कर शिक्षण को प्रभावशाली बना सके। शिक्षण प्रारंभ करने से पहले शिक्षक को निम्नलिखित बाधाओं पर प्रमुख रूप से ध्यान में रखना चाहिए 

संप्रेषण को बाथाएँ :

भौतिक बाधाएं i) कोलाहल । (ii) अदृश्यता iii) वातावरण (iv) भौतिक असुविधाएं (v) विकर्षण (vi) अस्वस्थता

भाषा संबंधी बाधाएं (i)अनुथित शब्द (ii) अत्यधिक शब्द (iii) अस्पष्ट चित्र (iv) अस्पष्ट संकेत

पृष्टभूमि संबंधी बाधाएं (i) पूर्वज्ञान (ii) सांस्कृतिक विभिन्नता (iii) पूर्व पातावरण एवं वर्तमान वातावरण अंतर (iv) वातावरण में भिन्नता से संदेश की प्रथालता कम होना

मनोवैज्ञानिक बाधाएँ (i) पूर्वाग्रड (ii) अरुचि (iii) ध्यान भंग (iv) अप्रत्यक्षीकरण (v) अपुरस्कृत अनुभव(vi) चिंताग्रस्त होना (vii) उत्सुकता का पूर्ण न होना

ल्लेखित संप्रेषण बाधाओं का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है‘ :-

भौतिक बाधाएं’-संप्रेषण की भौतिक बाधाएं वे बाधाएं हैं जो प्रेषक को ग्रहणकर्ता या विद्यार्थी से जड़ने नहीं देती। उदाहरण के लिए अगर संप्रेषण के समय पर्याप्त शांति के बदले कोलाहल हो तो प्रेषित की संदेश, विद्यार्थियों को ठीक से सुनाई देगी। इसी तरह यदि माध्यम के रूप में प्रदर्शित दृश्य सामग्री का अस्पष्ट हो उसमें कमी हो तो भी छात्र उसे नहीं समझ पायेंगे।  संप्रेषण का वातावरण जैसे बैठने की सुविधा, उचित हवा प्रकाश एवं फर्नीचर का न होना ग्रहणकर्ता के ध्यान को विकर्षित कर सकता है और ध्यान के अभाव में संदेश प्रभावशाली ढंग से संप्रेषित नहीं हो सकेगा।

अस्पष्ट हो उसमें कमी हो तो भी छात्र उसे नहीं समझ पायेंगे। संप्रेषण का वातावरण जैसे बैठने की सुविधा, उचित हवा प्रकाश एवं फर्नीचर का न होना ग्रहणकर्ता के ध्यान को विकर्षित कर सकता है और ध्यान के अभाव में संदेश प्रभावशाली ढंग से संप्रेषित नहीं हो सकेगा। इसके अतिरिक्त प्रेषक और ग्रहणकर्ता का स्वास्थ्य यदि ठीक नहीं है तो न तो प्रेषक को उचित ढंग से प्रसारित कर सकता है न ही ग्रहणकर्ता संदेश को समझकर ग्रहण कर सकता है।

भाषा संबंधी बाधाएं’-भाषा संबंधी बाधाओं के अंतर्गत संप्रेषण के दौरान अनुचित शब्दों का प्रयोग संदेश को विकृत कर देता है उसी प्रकार अनावश्यक रूप से अत्यधिक शब्दों का उपयोग संदेश को सही रूप में ग्रहण नहीं होने देता। भाषा के अंतर्गत अन्य माध्यमों का भी उपयोग होता है जैसे चित्र, संकेत या अन्य दृश्य सामग्री यदि ये उपयुक्त रूप से न बनाये गये हों एवं गलत प्रदर्शन किया गया हो तो भी प्रभावशाली संप्रेषण में पहुँचती है।

‘पृष्ठभूमि संबंधी बाधाएं’-संप्रेषणकर्ता एवं ग्रहणकर्ता की पृष्ठभूमि प्रभावशाली संप्रेषण के लिए एक अत्यंत आवश्यक इसके अंतर्गत पूर्व ज्ञान, सांस्कृतिक भिन्नता, वर्तमान वातावरण में संदेश का उपयुक्त होना इन बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है यदि पूर्व ज्ञान का स्तर, वर्तमान नये संदेश को ग्रहण करने योग्य न हो तो संप्रेषण या अधिगम में बाधा आ सकती है उदाहरण के लिये यदि बच्चों को अक्षर ज्ञान ही न हो तो उन्हें वाक्य नहीं पढ़ाया जा सकता। इसी तरह यदि बच्चों को गिनती ही न आती हो, तो गणित के प्रश्न हल नहीं करवाये जा सकते। सांस्कृतिक भिन्नता के कारण कोई संदेश अनुपयुक्त एवं अग्राह्य हो सकता है अतः संप्रेषण के समय सांस्कृतिक वातावरण की जानकारी होना आवश्यक है। इस प्रकार पृष्ठभूमि संबंधी बाधाएं संप्रेषा अप्रभावशाली बनाती है।

‘मनोवैज्ञानिक बाधाएं’-संप्रेषण की बाधाओं में ये मनोवैज्ञानिक बाधाएं एक प्रमुख स्थान रखती है कछ मनोवैज्ञानिक गुण जैसे पूर्वाग्रह होना संदेश के प्रकरण में एवं ग्रहण करने में बाधा डाल सकती है। यदि किसी कारण से ध्यान में कमी है तो भी अच्छे से अच्छा प्रेषक अच्छा संप्रेषण नहीं कर सकता न ही कोई ग्रहणकर्ता उसे ग्रहण कर सकता है। इसी तरह अरुचि होने पर भी संप्रेषण में बाधा पहुँचती है सही प्रत्यक्षीकरण का अभाव होता है। चिन्ताग्रस्त, प्रेषक एवं ग्रहणकर्ता के बीच प्रभावशाली संप्रेषण असंभव है। कई बार कुछ ऐसे अनुभव होते हैं जो पुरस्कृत किये जाने चाहिये परन्तु यदि ऐसा न हो तो यह संप्रेषण बाधा डालती है। इसी प्रकार प्रेषक द्वारा यदि ग्रहणकर्ता की उत्सकता का उचित अनुक्रिया नहीं प्राप्त होता तो भी संप्रेषण में बाधा पहुँचती है। उपरोक्त बाधाओं को दूर करने के लिये निम्नलिखित विधियों का उपयोग किया जाना चाहिये

संप्रेषण की बधाओं को दर करने की विधियाँ :-

बैठने की उचित व्यवस्था की जाये कमरा फर्नीचर. हवा प्रकाश इत्यादि का पर्याप्त ध्यान रखा जाये गैलरी या अर्ध वत्त में बैठाया जाये जिससे सभी से आमने-सामने का संबंध हो सके। दृश्यता एवं श्रवण संबंधी सभी प्रकार की कमियों को दूर किया जाये जिससे ध्यान भंग न हो।

दृश्य एवं श्रव्य सामग्री भी पूर्णतः प्रभावशाली ढंग से निर्मित हो जिससे गलत संदेश न जाये। वातावरण संबंधी, सारी बाधाओं को दूर कर ग्रहणकर्ता के मानचित्र स्तर के अनुरूप वातावरण प्रदान किया जाये जिससे सांस्कृतिक भिन्नता का संप्रेषण पर गलत प्रभाव न पड़े। भाषा संबंधी अनेक बाधाओं को अच्छी तरह ध्यान में रखकर बिना किसी भी प्रकार की त्प्रभावशाली भाषा एवं माध्यम का उपयोग किया जाये। इस प्रकार संप्रेषण की अनेक बाधाओं को ध्यान में रखकर उससे संबंधित समाधानों की व्यवस्था विभिन्न विधियों के प्रयोग द्वारा कर संप्रेषण को प्रभावशाली अवश्य बनाया जा सकता है।

संप्रेषण के दौरान निम्नलिखित विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक है :-

1. सुविधाजनक एवं स्वतंत्र वातावरण का निर्माण ।

2. यह निश्चित करना कि दृश्य उचित दिखाई पड़े साथ ही श्रव्य सामग्री भी उचित ढंग से सुनाई पड़े।

3. बैठने हेतु फर्नीचर आरामदायक एवं बच्चे के शारीरिक विकास के अनुरूप हो ।

4. बैठने हेतु व्यवस्था ऐसी हो जिसमें प्रत्येक ग्रहणकर्ता एवं प्रेषक में आमने-सामने एवं आरन संपर्क किया जा सके।

5. संप्रेषण के दौरान सरल भाषा का उपयोग हो क्लिष्ट भाषा का उपयोग न हो। अनावश्यक शब्दों का प्रयोग नहीं के बराबर होना चाहिए।

6. यदि चित्र एवं संकेतों का उपयोग हो तो उसकी व्याख्या की जाये।

7. संप्रेषण के विभिन्न प्रकारों का उपयोग किया जायें।

8. अन्य दृश्य सामग्रियों का प्रभावपूर्ण उपयोग हो।

9. समय-समय पर पृष्ठपोषण लिया जाये। ‘मनोविज्ञान संबंधी ध्यान रखने योग्य बातें’

(i) ध्यान आकर्षण हेतु माँग करे एवं श्रोताओं को प्रेरित करे।

(ii) पृष्ठपोषण प्रक्रिया का ज्यादा से ज्यादा उपयोग किया जाये।

(iii) सहायक सामग्री रंगीन एवं चालित तथा ध्वनियुक्त हों।

पृष्ठभूमि संबंधी ध्यान देने योग्य बातें’ :-

1. ग्रहणकर्ता में से प्रत्येक की पृष्ठभूमि की जानकारी रखना।

2. संदेश के महत्त्व को बताना।

3. प्रेषक एवं स्रोत विभिन्न तरीकों से स्रोत को अत्यधिक समृद्ध बनाये। इस तरह यह कहा जा सकता है- “प्रभावशाली संप्रेषण इस बात पर निर्भर नहीं करता कि क्या कहा गया बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि क्यों और कैसे कहा गया।”

संप्रेषण प्रभावशाली बनाने की युक्तियाँ तब एक विशेष संप्रेषण की आवश्यकता हो संपूर्ण अंतक्रिया आमने सामने के संबंधों द्वारा संपन्न करना चाहिये।

निम्नलिखित आठ सोपानों का पालन करना संप्रेषण को महत्त्वपूर्ण बना सकता है

1. संदेश की तैयारी

2. स्वयं की तैयारी

3. ध्यानाकर्षण करना

4. ग्रहणकर्ता की तैयारी

5. संदेश प्रसारित करना

6. उत्तर को ग्रहण कर उन्हें स्पष्ट करना

7. संप्रेषण का समापन

8. पुनरावलोकन-अनुकरण करना

परोक्त प्रमुख बिन्दुओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :

(1) संदेश की तैयारी-संदेश की तैयारी करते समय यह ध्यान में रखना अत्यन्त आवश्यक है कि संप्रेषण के दौरान आपका प्रमुख उद्देश्य क्या है? साथ ही यह भी कि जो संप्रेषण आप करने जा रहे हैं वह उस उद्देश्य की पूर्ति करता है । उद्देश्य विशेष के अनुसार संप्रेषण की एक निश्चित दिशा निर्धारित होगी एवं किसी प्रकार के भटकाव की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी।

स्पष्टता हो, संक्षिप्तता हो एवं विशेष बिन्दु पर जल्दी पहँचकर बाद में व्याख्या की जाये। संदेश की तैयारी में निम्नलिखित बिन्दु एक चेकलिस्ट का कार्य कर सकती है

(1) प्रमुख संदेश क्या है? (2) किसके लिये संदेश है? (3) किस परिणाम की अपेक्षा है? (4)संप्रेषण कैसे किया जायेगा? (5) सही समय क्या है? (6) सही स्थान कौनसा है?

(7) संदेश के प्रमुख बिन्दुस्पष्ट हैं या नहीं? (8) क्या किसी क्रिया की आवश्यकता है? (9) क्या संदेश में वे सारी सूचनाएं हैं जिनकी आवश्यकता है?

(2) स्वयं की तैयारी-कहा गया है यदि आप स्वयं को महत्त्व नहीं देते तो आप यह प्रेषित करते हैं कि आप का संदेश ध्यान देने योग्य नहीं है। जब भी आप बोलते हैं आप स्वयं को प्रस्तुत करते हैं। अशाब्दिक संदेश आपके बारे में बहुत कुछ बता देते हैं कि आप किस प्रकार के व्यक्ति हैं आप स्वयं को महत्त्व देते हैं या नहीं। अतः स्वयं को महत्त्व प्रदान करते हुए एक ऐसे वातावरण का निर्माण करें जिसमें ग्रहणकर्ता आपका संदेश ग्रहण करने के लिए तत्पर रहें एवं आप अपनी सर्वोत्तम प्रस्तुति दे पायें।

(3) ध्यान आकर्षित करना-ध्यान आकणि हेतु यह आवश्यक है कि संप्रेषण हमेशा आमने-सामने की स्थिति में हो, साथ ही ऐसे वातावरण में हों जहाँ किसी प्रकार का दबाव या विकर्षण न हो । आमने सामने के संबंधों में संप्रेषण के अंतर्गत ध्यानाकर्षण के लिये निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है

(अ) ध्यानाकर्षण की माँग, (ब) विनोदपूर्ण होना, (स) आंखों द्वारा संपर्क, (द) श्रोता के रुचि के अनुसार प्रस्तुति, (इ) दृश्य की महत्त. (उ) आवाज की महत्ता, (क) शारीरिक हाव भाव स्थिति,

व्यक्तिगत – व्यक्तित्व सकारात्मक होना इस प्रकार जब भी संप्रेषण किया जाये यह निश्चित होना चाहिये कि श्रोता ध्यानपूर्वक सुनने के लिए तैयार है तभी अपनी प्रस्तुति. प्रारंभ करे।

(4) ग्रहणकर्ता को तैयार करना-यदि आपके संदेश को सुनने हेतु श्रोता तैयार न हो तो आपको उन्हें तैयार करने हेतु थोड़ा समय देना चाहिए इसके लिए कुछ तरीके इस प्रकार हा सकते हैं

(i) यह बताना कि आप क्या बताने वाले हैं?

(ii) बताये जाने वाला संदेश श्रोता के लिये किस प्रकार लाभदायक है?

(iii) यह जाँच कर लेना कि श्रोता संप्रेषण हेतु इच्छुक है।

(iv) संप्रेषण संबंधी महत्त्वपूर्ण तथ्यों को सम्मिलित करना।

(5) संदेश प्रसारित करना-जब आप प्रसारित कर रहे हों तो आपको यह ध्यान में रखना चाहिए आपका संप्रेषण किस लिये हैं। सरल भाषा का उपयोग करे, अनावश्यक विस्तार को महत्त्व नहीं दे बल्कि महत्त्वपूर्ण प्रमुख बिन्दुओं श्रोताओं के समझ के अनुसार शामिल करें।

अच्छे प्रभाव हेतु अपना कथन, मस्तिष्क एवं भावना दोनों से ही संबंधित बनायें। संदेश देते समय ध्यान दें

(i) सुनने योग्य बोलें

(ii) उचित आरोह, अवरोह, आवाज गति का पालन करें।

(iii)भ्रम एवं अरुचि की स्थिति का ध्यान रखें।

(iv) प्रश्न एवं स्पष्ट करने हेतु विराम दें।

(v) प्रभावशाली समझ हेतु सारांश बतायें।

(vi) श्रोताओं से बात करें न कि उन पर।

(vii) जहाँ आवश्यक हो वहाँ नजदीकी बढ़ायें।

(6) उत्तर को ग्रहण करना एवं स्पष्ट करना-इस प्रमुख बिन्दु हेतु श्रवण-कला का होना अत्यन्त आवश्यक है। श्रवण कला का अर्थ ‘कुछ नहीं बोलना ही नहीं बल्कि यह एक सक्रिय प्रक्रिया है जिसके द्वारा वक्ता को सुना जा सके। अतः ध्यान देना है

(i) किसी उत्तर के प्रति उदासीन हो जाना क्योंकि आप उससे सहमत नहीं हैं।

(ii) अत्यधिक विस्तार में जाना या प्रमुख बिन्दुओं को छोड़ देना।

(iii)स्वयं की समस्याओं में ही उलझ जाना एवं जो कहा जा रहा है उसके प्रति एकाग्र न होना।

(iv) ग्रहणकर्ता पर हावी होने की कोशिश न हो बल्कि उन्हें धैर्यपूर्वक सुनना चाहिए।

(7) संप्रेषण का समापन-कई बार अंतक्रिया एवं व्यर्थ साबित होने लगती है अत: संप्रेषण का समापन करना अत्यन्त आवश्यक होता है अतः समापन हेतु कुछ युक्तियाँ अपनाई जानी चाहिए जैसे

(i)किसी क्रिया या प्रतिक्रिया का.माग करना।

(ii)आगे भविष्य के लिये तरीके बताना।

(iii)जो उपलब्ध किया गया है उसका सार बताना।

(iv) अगली मीटिंग या सभा तय करना।

(v)यह घोषणा कर देना कि समापन हो गया है।

(vi) ग्रहणकर्ता या श्रोता को उनके समय देने के लिये उनका धन्यवाद कहना।

(8) फॉलोअप या पुनः अनुगमन-कई बार प्रभावशाली संप्रेषण की यह आवश्यकता होती हैं कि संबंध को भविष्य में भी बनाये रखा जाये जिससे संदेश की जो महत्त्वपूर्ण बातें हैं उनके कार्यान्वयन की जाँच की जा सके।

इस प्रकार संप्रेषण अपने आप में एक कला है जिसे निरंतर अभ्यास द्वारा निखारा जा सकता है | एक शिक्षक ही नहीं बल्कि समस्त प्रकार के प्रेषकों के लिए स्रोत की समृद्धि के लिए, ग्रहणकर्ता की ग्राह्यता के लिये संप्रेषण कला का विकास करना अनिवार्य है।

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