यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,
वह पीड़ा, जिस की गहराई को स्वयं उसी ने नापा;
कुत्सा, अपमान, अबन्ञा के घुँधुआते कड़ुवे तम में
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरुक, अनुरक्त-नेत्र,
उल्लम्ब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा।
जिज्ञासु प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय, इस को भक्ति को दे दो:
यह दीप, अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर इस को भी पंक्ति को दे दो।
संदर्भ कविता की उपर्युक्त पंक्तियाँ हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ प्रयोगवादी कवि अज्ञेय द्वारा लिखित कविता ‘यह दीप अकेला’ में से ली गई हैं। कवि ने व्यक्ति की सत्ता को समाज से जोड़कर श्रेयस्कर माना है।
व्याख्या: दीप के बहाने कवि कहता है कि वह अकेला होकर भी काफी कुछ है। व्यक्ति भी अकेला होकर सब कुछ है, परन्तु दोनों की सार्थकता समष्टि में विलय से है।
जिस तरह से दीप अकेला होकर भी कठिनाइयों का मुकाबला करता है। ठीक उसी तरह व्यक्ति भी संघर्षों का अकेला सामना करने में सक्षम है।
दोनों लघुता में कांपते नहीं। व्यक्ति अपनी पीड़ा को गहराई से अच्छी तरह जानता है। वह स्वयं उसे नापता है। वह घृणा, अवज्ञा के कड़वे सच्च को झेलता है।
वह सदैव द्रवित होकर जागरूक रहकर प्रेम भरे नेत्रों, अपनी र बाँहों से अपनेपन की भावना में अनुरक्त रहता है। यह व्यक्ति जानने की इच्छा रखता है, यह बुद्धिमान है।
यह श्रद्धा की भावना रखता इसको भक्ति की आवश्यकता है। इसे भक्ति से जोड़ना चाहिए। भक्ति भाव के समूह से जुड़कर ही इसके जीवन की सार्थकता है।
यह दीप अकेला है। इसमें स्नेह है, गर्व भी। अगर इसे पंक्ति को दे दें तो इसका जीवन सार्थक हो जाएगा। यह दीप का विलय पंक्ति के बहाने व्यक्ति का समाज से विलय का प्रतीक है।
विशेष 1. कवि ने व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक सत्ता से जोड़ने का अनुरोध किया है।
- व्यक्ति का भक्ति-भाव में लीन होना भी उसके जीवन की सार्थकता है।
- पद्य में तत्सम राज्यावली की प्रधानता है.
- पद्यमे
- प्रतीकात्मकता और लाक्षणिकता का प्रयोग भी द्रष्टव्य है।
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