प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश प्रेमचंद द्वारा लिखित ‘गवन’ उपन्यास से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में जालपा की मनोदशा का वर्णन किया गया है। जब रमानाथ सोने की चूड़ियाँ लाता है। तो, रमानाथ की माँ । गुस्से में चूड़ियाँ फेंक देती है और रमानाथ वहाँ से चला जाता है।
व्याख्या :– इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए जी है। देश की परवाह किए बिना सभी अपनेअपने स्वार्थ में लगे हुए हैं। किसी को धन की किसी को गहनों की लालसा है। सब अपने स्वार्थ की इन चीजों को प्राप्त करने में लगे हुए हैं। शाम के समय जालपा बाजार को बंद होते हुए देखती है और खुश होती है। वह बाजार में लोगों को देखती है। सभी के सिर शौक से झुके हैं, उनकी व्योरियाँ बदली हुई हैं और वे अपने स्वार्थ के नशे में चूर हैं। सभी अपने आप को दूसरों से कम आँकते हैं तो उन्हें अपने भीतर जलन महसूस होती है।
जालपा के बारे में कहा गया है कि वह यह नहीं जानती थी कि इस जन रूपी सागर में कुछ घटनाएँ ऐसी है जो छोटी-छोटी ककड़ियों का प्रतीक हैं और जिस प्रकार छोटी-छोटी कंकड़ियों से सागर में आवाज भी नहीं उठती उसकी प्रकार लोगों के मन पर उन घटनाओं का कोई असर नहीं होता। यहा पर तह घटना दिनेश को फाँसी की होता है।
विशेष-
1. प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. जालपा की मनोदशा का वर्णन किया गया है।
3. ‘मिट्टी का घरौंबा’ लोगों के स्वार्थ का प्रतीक
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