पारंपरिक रूप से आर्थिक राष्ट्रवाद ऐसी विचारधारा के रूप में स्वीकार किया जाता है, जो अर्थव्यवस्था, श्रम और पूँजी के निर्माण के घरेलू नियंत्रण पर जोर देती है। यह भूमण्डलीकरण के विरुद्ध और निरंकुशता का द्योतक है। इसकी अन्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं -
(i) आर्थिक राष्ट्रवाद आर्थिक उदारवाद और मार्क्सवाद के साथ आधुनिक राजनीतिक अर्थव्यवस्था की महत्त्वपूर्ण विचारधारा है, जो भारतीय राष्ट्रवाद का महत्त्वपूर्ण पक्ष था।
(ii) हाल के लेखकों का विचार है कि आर्थिक राष्ट्रवाद के आधार पर सरोकार किसी विशिष्ट नियत किस्म की आर्थिक नीतियों जैसे कर की बाधाएं और संरक्षणवाद की अपेक्षा राष्ट्र से ज्यादा है। अतः इस दृष्टिकोण के अनुसार आर्थिक राष्ट्रवाद की विचारधारा के आधार पर विशिष्ट आर्थिक नीतियों की पुष्टि न करके इसकी राष्ट्रवादी अंतर्वस्तु को स्पष्ट करना चाहिए।
(iii) राष्ट्र और राष्ट्रवाद को आर्थिक राष्ट्रवाद के अंतर्गत लाने से इसे समझ पाना संभव है कि आर्थिक राष्ट्रवादी विभिन्न आर्थिक नीतियों को आदि बढ़ा सकते हैं, जिनमें से कुछ आर्थिक विचारों की धाराएं दूसरी धाराओं से जुड़ी हो सकती हैं।
आर्थिक राष्ट्रवाद के आरंभिक समर्थकों के मत ये मत निम्नलिखित हैं ।
(1. 19वीं शताब्दी के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रवादी फ्रेडरिक लिस्ट (1789-1846) ने आर्थिक राष्ट्रवाद और आर्थिक राष्ट्रवाद की धारणा की पहल की। उनका ‘राष्ट्रीय अर्थशास्त्र का सिद्धांत एडम स्मिथ के ‘व्यक्तिगत अर्थशास्त्र’ और जीन बापटिस्ट के ‘सार्वभौमिक अर्थशास्त्र’ से अलग प्रकार का है।
(2. लिस्ट ने अपनी पुस्तक में मूलत: व्यक्ति या संपूर्ण मानवता के लाभ हेतु आर्थिक नीतियों का आकलन करने के लिए आर्थिक उदारवादियों की आलोचना की। उन्होंने उदारवादी विचार के ‘मृत भौतिकवाद’ की आलोचना करते हुए कहा कि उदारवादियों ने व्यक्ति को सिर्फ एक उत्पादक और उपभोक्ता माना, न कि राष्ट्र का सदस्य या राज्य का नागरिक।।
(3. लिस्ट के अनुसार ‘असीम सार्वभौमवाद’ के विचार ने आर्थिक नीति के उद्देश्य हेतु राष्ट्र को विशेष महत्त्व नहीं दिया है। उन्होंने दावा करते हुए कहा है, “प्रत्येक व्यक्ति और संपूर्ण मानवता के बीच राष्ट्र खड़ा है।” उन्होंने इस मध्यवर्ती शाखा पर आधारित अपने दृष्टिकोण को सूत्रबद्ध किया “मैं राष्ट्रीयता को अपनी व्यवस्था की प्रमुख विशिष्टता के रूप में संकेतित करता हूँ।
राष्ट्रवाद की प्रकृति पर व्यक्तिवाद और संपूर्ण मानवता के मध्यवर्ती रुचि के रूप में, मेरी संपूर्ण संरचना आधारित है।” उनके अनुसार व्यक्ति राष्ट्र के सदस्य हैं, इसलिए आर्थिक नीतियाँ व्यक्तियों के धन को बढ़ाने का लक्ष्य रखने वाली न होकर राष्ट्र की संस्कृति और शक्ति के विकास के प्रति उन्मख होनी चाहिए। इस प्रकार का विकास अंतत: संपूर्ण मानवता को स ‘मनुष्य जाति का सभ्य होना प्रत्येक राष्ट्र के सभ्य और विकसित होने के माध्यम से ही बोधगम्य और संभव हो सकता है।’
(4. लिस्ट मानते थे कि ‘एक राष्ट्र विशेष किस प्रकार समृद्धि, सभ्यता और शक्ति प्राप्त कर सकता है और देश के औद्योगिक विकास के द्वारा इसे प्राप्त किया जा सकता है। अत: नये उद्योगों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए कर की बाधाएं खड़ी करना, लिस्ट की आर्थिक नीतियों का आधारभूत लक्ष्य है।
(5. आर्थिक राष्ट्रवाद की एक अन्य प्रवृत्ति थॉमस एटवुड (1783-1859) ने दी। वे एक ब्रिटिश बैंकर और राजनेता थे। इस धारा के राष्ट्रवादी ने रूपान्तरित हो सकने योग्य मुद्रा की आर्थिक उदारवादी नीतियों की आलोचना की है। आर्थिक उदारवादियों का विश्वास था कि इस प्रकार की वित्तीय नीतियाँ व्यापार को बढ़ावा देंगी। अतः इस उद्देश्य के लिये एक समान वित्तीय मानक हेतु सभी मुद्राओं के लिए उन्होंने स्वर्णमानक का समर्थन किया। एटवुड ने प्रस्ताव रखा कि ब्रिटेन की स्वर्ण से मुक्त एक कागजी मुद्रा होनी चाहिए।
(6. जर्मन जोहन गॉटलिब फिख्टे (1762-1814) ने आर्थिक राष्ट्रवाद की एक प्रवृत्ति प्रस्तुत की। उसने राष्ट्रीय आर्थिक स्वालवंबन का मजबूती से पक्ष लियादा इसके लिए उन्होंने एक हस्तक्षेपकारी राज्य का समर्थन किया, जो कि जनता के लिए उसकी आर्थिक आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष पूर्ति करेगा।
एक अन्य लेखन में उन्होंने एक निरंकुश आर्थिक राष्ट्रवाद तथा एक मजबूत हस्तक्षेपकारी राज्य के पक्ष में तर्क दिया, जो रोजगार सुनिश्चित करेगा। वेतन और मूल्यो को नियंत्रित करेगा। उन्होंने घरेलू मूल्यों पर नियंत्रण के लिए अविनिमय मुद्रा पर जोर दिया तथा विदेशी व्यापार का निषेध करने की बात कही, क्योंकि व्यापार में उतार-चढाव राष्ट्रीय आर्थिक नीतियों को अस्थिर कर सकता था।
(7. इन प्रवृत्तियों से अलग ब्रिटेन की प्रवृत्ति है। वहाँ के मीति नियंती मुक्त व्यापार के पक्ष में था इसलिए पक्ष में थे कि ब्रिटेन मशीन निर्मित वस्तुओं के व्यापार में उनके एकाधिकार को बढ़ायेगा। यह उनके देश की शक्ति और समृद्धि में बढ़ोतरी करेगा। मुक्त व्यापार की विचारधारा ने अंग्रेजों को एक राष्ट्रीय श्रेष्ठता का भी आभास कराया, जिसके माध्यम से वे अन्य खासकर औपनिवेशिक देशों की संस्कृति और परम्परा को हेय ठहरा सकते थे।
यह प्रवृत्ति कुछ अन्य देशों में भी विद्यमान थी; जैसे फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम और नीदरलैंड। ये वे देश थे, जहाँ औद्योगिक विकास देर से हुआ था। इसलिए यह कहा जा सकता है। कि आर्थिक राष्ट्रवाद समान रूप से उदारवादी आर्थिक नीतियों के विरुद्ध नहीं था।
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