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भारत छोड़ो आन्दोलन की पृष्ठभूमि की विवेचना कीजिए। भारत छोड़ो आन्दोलन का क्‍या प्रभाव पड़ा?

 ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण जन आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश सरकार को भारत को आजादी देने के लिए विवश कर दिया, इसलिए इसके तात्कालिक कारणों का अध्ययन आवश्यक है, जो निम्नलिखित हैं - 

(1. इसका एक महत्त्वपूर्ण तात्कालिक कारण द्वितीय विश्वयुद्ध और इसकी परिस्थितियां थीं। देश में संघर्ष की स्थितियों के कारण मुद्रास्फीति में तेजी से वृद्धि हो रही थी।

किसी भी प्रतिरोध के दमन के लिए सरकारी हस्तक्षेप की तत्परता से युद्ध आपूर्ति तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संकट का सामना करने के लिए अपनाये जा रहे रुख के संबंध में राष्ट्रवादी नेताओं और दलों के बीच चलने वाले तीव्र वैचारिक मतभेद 1942 के आंदोलन में सम्मिलित लोगों को प्रभावित कर रहे थे।

(2. सैन्य और रणनीतिक कारणों से भारतीयों की राजनीतिक रियासतों पर रोक लगा दी गयी। युद्ध जैसे-जैसे आगे बढ़ा, राष्ट्रवादी ताकतों ने एशिया औपनिवेशिक प्रणालियों को चुनौती देना शुरू कर दिया,

जिससे ब्रिटेन की स्थिति शोचनीय हो गई। भारत पूर्वी स्वेज की ब्रिटिश रक्षा प्रणाली का मुख्य आधार था, इसलिए भारत को अधिराज्य का दर्जा देने वाले विचारों को समाप्त किया जा रहा था तथा विंस्टन चर्चिल की कठोर और अपरिवर्तित नीति से शासन चलाया जा रहा था।

(3. यह भावना मजबूती से उभरी कि जापानी सेना ने बर्मा और पूर्वी बंगाल में चटगाँव के सीमावर्ती क्षेत्रों पर अनेक बार छापा मारा था, जिससे शरणार्थियों में युद्ध, विनाश और परित्याग का खौफ उत्पन्न हो गया।

ब्रिटिश भारतीय सेना का बर्मा का प्रदर्शन बहुत कमजोर हो रहा था। अब ब्रिटिश भारतीय सेना में हिन्द महासागर के नौ सैनिक युद्ध में जापान से टक्कर लेने की हिम्मत नहीं थी। ऐसी परिस्थितियों में गाँधी और कांग्रेस ने ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन चलाने का निर्णय लिया।

(4. भारत के लिए पूर्ववर्ती क्षेत्रों की रक्षा करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी, क्योंकि जर्मनी पश्चिम की ओर से आगे बढ़ रहा था। जापानियों ने दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में ब्रिटिश सेना को हतोत्साहित कर दिया था।

जनरल स्टाफ ने विध्वंस नीति पर काम किया तथा यह योजना बनायी कि इस क्षेत्र में संसाधनों को नष्ट कर दिया जाए ताकि जापानी सेना को आवश्यक सामग्री से वंचित रखा जा सके।

बिजली घरों, तेल भण्डारों, बेतार यंत्रों, दूरभाष तथा तारों आदि के नष्ट करने की योजना बनायी गई। इस नीति से कांग्रेस सहमत नहीं थी।

(5. जापान के हवाई हमलों से बचने के लिए जिन नीतियों को अपनाया गया, वे सभी असफल रही और क्षेत्रों को प्रत्यक्ष सैन्य खतरे का सामना करना पड़ा।

ब्रिटिश आर्थिक नीतियों के कारण विशेष रूप से पूर्वी भारत में लाखों लोग प्रभावित हुए। अधिकारी आर्थिक दुष्परिणामों पर बहुत कम ध्यान दे रहे थे। 1940 में युद्ध के कारण जूट के मूल्य बहुत अधिक गिर गए और खाद्य-पदार्थों की कीमत पर्याप्त बढ़ गयी।

(6. 1942 के मध्य में ब्रिटेन को अपनी क्षमता पर बहुत कम विश्वास था कि ब्रिटिश सेना बंगाल और आसाम को जापानियों के आक्रमण से बचा सकती थी।

आर्थिक तंगी के कारण जो विपत्तियाँ उभर रही थीं, उससे त्रस्त जनता को राजनीतिज्ञों और प्रशासन से मदद की कोई उम्मीद नहीं थी तथा सेना की बढ़ती हुई अनिवार्यताओं जैसे कि डिनायल (त्याग) नीति ने जनता की भावनाओं को राज्यद्रोहों गतिविधियों में परिवर्तित कर दिया था।

(7. ‘भारत छोड़ो’ के आरंभिक दौर में अफवाहों ने युद्ध में आगे होने वाले संघर्ष में ब्रिटिश राज्य संबंधी नीति और ब्रिटिश हार के विचार के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस प्रकार की अफवाहें एक प्रतिरोध एवं जनसमूह का ज्ञान दर्शा रही थीं।

उदाहरण के लिए जैसे ही युद्ध आगे बढ़ा, मई 1941 में केंद्रीय प्रांतों आदिवासी इलाकों में ऐसी अफवाह उड़ी कि गोंड जाति के लोगों का खून घायल ब्रिटिश सैनिकों के अंगों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

वहीं जबलपुर में यह अफवाह फैली कि खाद्यान्नों की कमी के कारण सरकारी तंत्र इस प्रांत को खाली करने का आदेश जारी करने वाली है।

(8. आम लोगों में यह अफवाह फैलायी गई कि शीघ्र ही मई में जापानी बेड़े भारत के पश्चिम तट पर हमला करेंगे। इसके परिणामस्वरूप गुजरात और सौराष्ट्र में बड़े पैमाने पर खाद्य-पदार्थों की जमाखोरी हुई और खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ गईं।

‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के शुरू होने से एक माह पूर्व जुलाई 1941 में अधिकारियों ने बताया कि गुजरात के गाँवों में बढ़ती हुई असुरक्षा की भावना की वजह से आत्मरक्षा के लिए हथियारों की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

(9. दिसंबर, 1941 में जापानी आक्रमण में तेजी तथा बंगाल के क्षेत्रों में ब्रिटिश सैन्य बल का कमजोर पड़ना, इन अफवाहों को फैलाया गया कि ब्रिटेन की हार निश्चित है।

किसानों को आगाह किया गया कि सेनाओं से खाद्यान्नों का बचाव करें। नाविकों, बंदरगाहों के कर्मचारियों की किस्मत प्रत्यक्ष रूप युद्ध के उतार-चढ़ाव के साथ जुड़ी हुई थी। इन सबने भारत छोड़ो आंदोलन को प्रेरित किया।

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