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ईसा पूर्व छठी शताब्दी में उत्तर भारत की स्थिति पर प्रकाश डालें।

ईसा पूर्व छठी शताब्दी में उत्तर भारत की स्थिति इस काल में उत्तर भारत के मध्य गंगा घाटी में अनेक धार्मिक सम्प्रदायों का उदय हुआ, जिनमें सबसे प्रमुख बौद्ध एवं जैन धर्म थे। इन धार्मिक सम्प्रदायों के उदय के अनेक कारण थे। 

इन धार्मिक सम्प्रदायों ने वैदिक ब्राह्मण धर्म के दोषों पर प्रहार किया। इन आंदोलनों को सुधारवादी आंदोलन भी कहा गया है। रोमिला थापर ने इस शताब्दी को विश्वव्यापी प्रश्नों की शताब्दी माना है। यह व्यापक विचार-विमर्श तथा वाद-विवाद का युग था, जिसमें प्रत्येक सिद्धांत को तर्क की कसौटी पर परखा गया था।

ईसा पूर्व छठी शताब्दी में उत्तर भारत स्थिति :

इस काल में उत्तर भारत के मध्य गंगा घाटों में अनेक धार्मिक सम्प्रदायों का उदय हुआ, जिसमें सबसे प्रमुख बौद्ध एवं जैन धर्म थे। इन धार्मिक सम्प्रदायों के उदय के अनेक कारण थे। इन धार्मिक सम्प्रदायों ने वैदिक ब्राह्मण धर्म के दोषों पर प्रहार किया।

इन आंदोलनों को सुधारवादी आंदोलन भी कहा गया है। रोमिला थापर ने इस शताब्दी को विश्वव्यापी प्रश्नों की शताब्दी माना है। यह व्यापक विचार-विमर्श तथा वाद-विवाद का युग था, जिसमें प्रत्येक सिद्धांत को तर्क की कसौटी पर परखा गया था।

सामाजिक स्थिति :-

ई.पू. छठी शताब्दी में समाज में जाति प्रथा विद्यमान थी। समाज चार वर्गों में विभक्त था ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र इसके अतिरिक्त विभिन्न जातियों का सामाजिक जीवन में भी महत्त्वपूर्ण स्थान था। इस काल में निम्न वर्ग एवं शूद्रों की स्थिति काफी खराब थी। 

चाण्डाल को सर्वाधिक घृणित जाति माना जाता था। यह जाति नगर के बाहर निवास करती थी। पुक्कसों का कार्य फूल तोड़ना, निषादी का कार्य शिकार करना तथा नाईयों का कार्य बाल काटना था। इस काल में दास प्रथा भी विद्यमान थी। निम्न जातियों को अधिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। ब्राह्मणों एवं क्षत्रियों को वे सब कर नहीं देने पड़ते थे, जो निम्न वर्णों को देने पड़ते थे। यज्ञों के समय राजा ब्राह्मणों का सहयोग लेता था। शासक वर्ग के प्रतिनिधि क्षत्रिय थे।

क्षत्रिय रक्त की शुद्धता पर अत्यधिक बल देते थे। इस काल में क्षत्रिय वैश्य ब्राह्मणों से घृणा करने लगे थे। लोहे के उपयोग के कारण सैनिक साजो सामान तथा अस्त्र-शस्त्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया। अजात शत्रु के पास महाशिलाकण्टक तथा रथमूसल जैसे भयंकर अस्त्र थे, जो अत्यधिक नरसंहार करते थे। इस काल में क्षत्रिय लोग ब्राह्मणों के विरुद्ध अपनो सामाजिक एवं राजनीतिक महत्ता के प्रति सचेत हुए।

समाज में अव्यवस्था को समाप्त करना, झगड़ों को निपटाना तथा कृषि भूमि की सुरक्षा करना आदि क्षत्रियों के प्रमुख कर्त्तव्य थे। ब्राह्मणों ने राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि घोषित करके स्वयं को धरती का देवता कहा। बुद्ध ने जाति प्रथा को अस्वीकार कर दिया। बौद्ध धर्म में छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं था बौद्ध धर्म में सभी जातियों के लोग शामिल हो सकते थे।

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