वैसे देखें, तो पन्नालाल की दो मातृभाषाएँ थीं- गुजराती और राजस्थानी जन्म से आजणा पटेल। वे संस्कृत, हिंदी, अंग्रेज़ी तथा उर्दू भी थोड़ा-थोड़ा जानते थे। आजणा पटेलों में उनके पहले शायद ही कोई लेखक हुआ हो। परंतु पन्नालाल लेखक हुए; और इतना ही नहीं, बड़े सर्जक के रूप में प्रसिद्ध हुए। भारतीय साहित्य में जो स्थान सरस्वतीचंद्र (गोवर्धनराम त्रिपाठी), गोरा (रवीद्रनाथ), श्रीकांत (शरबाबू) आदि का है, वही स्थान पन्नालाल की कृति ‘मानवीनी भवाई का भी है।
पचास वर्ष से भी अधिक समय तक उन्होंने लेखन कार्य किया और सौ से अधिक पुस्तकें लिखीं; चार सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। इस तरह उन्होंने गुजराती कथा साहित्य को समृद्ध किया। बीस से अधिक उनके कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं। कुछ प्रमुख कहानी संग्रह इस प्रकार हैं
1. सुख-दुःखना साथी (1940)
2. जिदंगीना खेल (1941)
3. जीवोदांड (1941)
4. लख चोरासी (1944)
5.साचा समणां (1949)
6. वात्रकने काँठे (1952)
7. पन्नालालनो वार्ता वैभव (1954)
8. ओरता (1954)
9.परवाड़ा (1956)
10. पचालालनी श्रेष्ठ वार्ताओ (1958)
11.मनना मोरला (1958)
12. पानेतरना रंग (1961)
13. धरती आभनाँ छटा (1962)
14.डालसो (1964)
15. चितरेली दीवालो (1965)
16.मोरलीना मूगा सुर (1966)
17. भांळो (1967)
18.वातनो कांटको (1969)
उन्होंने सौ से भी अधिक उपन्यास लिखे, जिनमें सामाजिक उपन्यास विशेष महत्वपूर्ण हैं। जीवन के उत्तरार्द्ध में उन्होंने पौराणिक उपन्यास भी लिखे। जिस दौरान शहर में रहे, उस समय नगर जीवन पर भी उपन्यास लिखे। इतिहास के प्रसंगों, दंतकथाओं, तथा लोककथाओं को लेकर उन्होंने छोटे-बड़े उपन्यास और कहानियाँ लिखीं। इसके अतिरिक्त उन्होंने नाटक, एकांकी और बाल साहित्य भी लिखा । : ‘अलप – झलप’ (1973) और ‘अलक मलक’ (1986) ये दोनों आत्मकथात्मक संस्मरण ग्रंथ हैं।
इसी तरह एकाधिक भागों वाला ‘ज़िदंगी संजीवनी’ नामक उपन्यास उनके अपने अनुभव पर आधारित आत्मकथात्मक उपन्यास कहा जा सकता है। ‘जेणे जीवी जाण्यु उपन्यास पू. रविशंकर महाराज के जीवन पर आधारित चरित्रात्मक उपन्यास है। दूसरी भाषाओं के उपन्यासों-कहानियों का अनुवाद भी उन्होंने किया। मात्र आठवीं कक्षा तक की स्कूली शिक्षा पाए पन्नालालं का नाम विश्व के बड़े रचनाकारों की पंक्ति में लिखा जाता है, यह एक चमत्कार ही है।
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