स्वामी अछूतानंद आरंभ से ही अन्तर्मुखी और उन्नतिशील विचारों के व्यक्ति थे। धर्मअध्यात्म में उनकी गहन रुचि थी। उनके इस व्यक्तित्व के निर्माण का श्रेय कबीर पंथ को जाता है, जिसका ज्ञान उन्हें श्री मथुरा प्रसाद से प्राप्त हुआ था। वे अंग्रेजी सेना में सेवारत थे तथा कबीर पंथ के विचारों से प्रभावित थे। स्वामी अछूतानंद उत्तर भारत में दलित मुक्ति आंदोलन के प्रमुख नेता माने जाते थे। उनका संपूर्ण जीवन दलित एवं अछूतों के उद्धार के लिए समर्पित रहा।
स्वामी अछूतानंद प्रारंभ से ही साधु-सत्संगों में भाग लेने लगे थे। उस समय आर्य समाज का प्रचार बड़ी । तीव्रता से हो रहा था, तब वे आर्य समाज के सम्पर्क में आए तथा मूर्ति पूजा, देवी-देवताओं में आस्था, अंधविश्वास और अस्पृश्यता विरोधी विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने आर्य समाज अपना लिया। उनमें एक अच्छे वक्ता के गुण देखते हुए आर्य समाज ने उन्हें दलित वर्गों का प्रचारक बना दिया। अब अछूतानंद को हरिहरानंद के नाम से जाना जाने लगा। परंतु कुछ दिन बाद उनकी आर्य समाज के प्रति रुचि समाप्त हो गई, उन्हें एहसास हुआ कि आर्य समाज के कार्यकर्ताओं की कथनी और करनी में बहुत अन्तर है।
आर्य समाजी स्कूलों में सभी जातियों के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है, लेकिन इन स्कूलों में सवर्ण जातियों के बच्चों को टाट की पट्टियों पर और दलित बच्चों को जमीन पर बैठाया जाता स्वामी अछूतानंद ने 1892 में आर्य समाज छोड़ दिया और ‘अछूत महासभा’ का गठन करके दलितों में 10 चेतना जगानी शुरू की। उन्होंने शद्रों एवं दलितों में चेतना जगाते समय आर्य समाजियों के विचारों का खण्डन किया। स्वामी अछूतानंद ने कहा कि अनार्य लोग ही भारत के मूल निवासी हैं, जिन्हें आर्य हिन्दुओं ने पराजित करके अछूत घोषित किया है। इसलिए अछूत एवं शूद्रों को अपनी दासता से मुक होना होगा। दासता से मुक्ति के लिए सामाजिक चेतना एवं मानसिक परिवर्तन आवश्यक है।
इस महासभा के माध्यम से स्वामी अछूतानंद ने अछूतों के उद्धार के लिए आंदोलन चलाया। उन्होंने ब्रिटिश शासन से अछूतों के राजनैतिक एवं सामाजिक अधिकारों की मांग की। 1991 में जब ‘मांटेग्यूचेम्सफोर्ड एक्ट’ बना था, उस समय स्वामी अछतानंद ने यह अधिनियम बनने से पूर्व ही अछतों के विषय में एक मेमोरेण्डम प्रस्तुत किया था। इसमें अछुतों के लिए अलग शिक्षा, निर्वाचन और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग की गई थी।
1922 में जब प्रिंस ऑफ वेल्स भारत दौरे पर आए, तब दिल्ली में अखिल भारतीय अछूत महासभा’ द्वारा ‘अखिल भारतीय अछूत सम्मेलन’ आयोजित किया गया, जिसमें प्रिंस ऑफ वेल्स को मुख्य अतिथि बनाया गया। प्रिंस ऑफ वेल्स के समक्ष स्वामी अछूतानंद ने एक ज्ञापन प्रस्तुत करके कुछ मांगें रखीं, जो सामाजिक मक्ति का आधार थीं। 1922 में स्वामी अछूतानंद ने ‘आदि हिन्दू सभा’ की स्थापना की तथा विद्यालय एवं पुस्तकालय खोलकर इसी सभा के माध्यम से ‘आदि हिन्दू आंदोलन’ चलाया, जिसने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई।
प्रमुख रूप से यह आंदोलन समतामूलक समाज की संकल्पना पर आधारित था और अछूतों के मध्य राजनैतिक व सामाजिक जागृति के रूप में प्रकट हुआ। स्वामी अछूतानंद ने 1924 में आदि हिन्दू आंदोलन का प्रधान कार्यालय कानपुर में स्थापित किया। 1925 में ‘आदि हिन्दू मासिक पत्र का प्रकाशन व संपादन शुरू हुआ। उन्होंने इस पत्र के माध्यम से अछतों पर हो रहे अत्याचारों को प्रकाशित किया और ब्राह्मणवाद एवं सामंतवाद के विरुद्ध आवाज उठाई। 1927 में स्वामी अछूतानंद ने ‘आदि हिन्दू सम्मेलन’ के माध्यम से ब्रिटिश सरकार से अछूतों के लिए स्वराज की मांग की।
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