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व्यापार उदारीकरण के संबध में विकासशील देशों के मुद्धों का परीक्षण कीजिए।

 विद्वानों के एक वर्ग की यह धारणा है कि सेवा में व्यापार उदारीकरण निम्नलिखित में परिवर्तित हो सकता है(i) बढ़ी प्रतिस्पर्धा, (ii) कम दाम (ii) अधिक नये उपाय, (iv) प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, (v) रोजगार जनन, (vi) व्यापार व निवेश प्रवाहों में अधिक पारदर्शिता, (vii) पूर्वानुमान।

व्यापार उदारीकरण को निम्नलिखित विषयों के कार्यान्वयन हेतु प्रेरक के रूप में भी देखा जा रहा है - (i) सामाजिक, (ii) विकासात्मक एवं (iii) समग्रवादी।

कॉपेनहेगन में हुए सामाजिक विकास सम्मेलन 1995 में इस बात पर बल दिया गया कि सामाजिक विकास को आर्थिक परिवेश से पृथक न किया जाये।  विद्वान के एक विशिष्ट वर्ग के अनुसार गैट्स बाजार शक्तियों और सामाजिक एवं नैतिक न्याय आदि मुद्दों से जुड़ी सरकारी नीतियों के मध्य संतुलन स्थापित करेगा।

तथापि प्रश्न है कि क्या स्पर्धा के उभरते परिवेश में उनके राष्ट्रीय सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये निम्न के प्रति समुचित अवधान एवं व्यवहार रखा जाए

(i) नैतिक न्याय,

(ii) सार्वजनिक वितरण,

(iii) उपेक्षित लोगों का मानव विकास,

(iv) राज्यों की सम्प्रभुता।

प्रायः यह मत व्यक्त किया जाता है कि

(i) स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्रों में बाजार की विफलता पहचान ली गयी है।

(ii) राज्य अनेक क्षेत्रों में ऐसी सेवाओं को प्रदान करने वाले के रूप में ही सम्बद्ध हैं।

(iii) बाजार शक्तियों द्वारा सामाजिक सेवाओं में वचनबद्धताओं का अभाव केवल ऐसे विषयों के कार्यक्षेत्र में वृद्धि ही करेगा।

1. विश्व व्यापार संगठन ने कतिपय मानकों, नियमों एवं प्रक्रियाओं की एकरूपता पर बल दिया है। इनका अनुपालन एक निर्दिष्ट समय के भीतर समस्त सदस्य सरकारों द्वारा किया जाना है।विकासशील और अल्पविकसित देशों को विकसित देशों की अपेक्षा अधिक समय दिया जाता है।

इसके पीछे सिद्धान्त यह है कि वे विश्व एकरूपता की वांछनीयता के अनुसार मानदण्ड, नियम एवं आर्थिक नीतियां बना सकें। निःसन्देह इस समायोजनकारी प्रवृत्ति से निम्न को गुप्त रूप से क्षति पहुँची है

(i) अर्थव्यवस्था के विविध प्रतिमान

(ii) स्थानीकृत आवश्यकतायें

(iii) मुद्दे 

कभी-कभी समायोजन की यह प्रक्रिया विकासशील एवं अल्पविकसित देशों की आर्थिक स्वायत्तता और राजनीतिक सम्प्रभुता पर अभिभावी रही है। गैट्स समझौता व्यापक और सरकारों के सभी स्तरों हेतु प्रयोज्य है

(i) केन्द्रीय,

(ii) राज्यीय,

(iii) प्रान्तीय,

(iv) स्थानीय,

(v) नैगम।

इस सम्बन्ध में यह आशंकायें व्यक्त की गयी हैं कि गैट्स सिद्धान्त

(i) राज्य की सम्प्रभुता को उत्कीर्ण करेगा।

(ii) राष्ट्रीय हितों को यथासम्भव कम करेगा।

(iii) सार्वभौम सेवा दायित्वों की उपेक्षा करेगा।

कतिपय विचारकों के अनुसार निम्नलिखित कार्यों से सरकार की सत्ता को गुप्त रूप से क्षति पहुँचेगी

(i) व्यावसायिक सेवाओं पर संगठन के कार्यकारी दल द्वारा लेखांकन के क्षेत्र में अनुशासन विकसित करने हेतु समझौते।

(ii) स्वास्थ्य जैसी अन्य सेवाओं एवं विधिसंगत क्षेत्रों तक उसका विस्तार।

(iii) उपभोक्ता संरक्षण, नैतिक दृष्टि से सही आचार व्यवहार एवं व्यावसायिक सत्यनिष्ठा को पांबदियों के अनुकूल बनाने।

यह भी आरोप लगाया जाता है कि संगठन पश्चिमी देशों के दीर्घाकृत प्रभाव के अन्तर्गत बनाया गया है। इसका उद्देश्य विकसित देशों विशेषकर उत्तर अमेरिका की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हितों की रक्षा करना है। इसके अतिरिक्त व्यापार समझौतों में विकासशील एवं अल्प विकसित देशों के संप्रभु राज्यों की अपेक्षा इन कम्पनियों की सुनवाई कहीं अधिक है। 

विकसित देशों में गुटों के दबाव के कारण गैट्स विकासशील एवं अल्प विकसित देशों को इस बात के लिए बाध्य करेगा कि वे अपने सेवा क्षेत्र को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा घरेलू सेवा क्षेत्र के एक ‘संघबद्ध अधिग्रहण’ की ओर प्रवृत्त करते व्यापार के लिए खोल दे। इस प्रकार के अधिग्रहण से सरकार की समतावादी सार्वभौम सेवा दायित्वों एवं उपभोक्ता संरक्षण सम्बन्धी प्रतिबद्धता की अवमानना होगी।

2. विश्व व्यापार संगठन ने असमान साझीदारों के मध्य बाजार प्रेरित प्रतिस्पर्धा उत्पन्न की है

(i) विकासशील और अल्पविकासशील देश अभी अपनी बाजार अधिसूचना निवेशार्थ घरेलू क्षमता आदि को पूरी तरह विकसित नहीं कर पाये हैं। उन्हें समायोजन प्रक्रिया से दो-चार होते समय परिवर्तित हानियां सहन करनी पड़ेंगी।

(ii) यह प्रक्रिया स्पर्धा बाजारों में इन देशों के भावी प्रवेश की सम्भावना में कमी कर देगी।

(iii) श्रम एवं पर्यावरण मानकों पर बढ़ते जोर ने इन देशों पर गम्भीर व्यापार प्रतिबन्ध लगाए हैं।

(iv) इन देशों में स्थानिक बेरोजगारी गरीबी एवं निरक्षरता सम्बन्धी समस्याएं समायोजन प्रक्रिया में भीतर ही भीतर समाप्त की जा रही हैं। |

(v) गैट्स समझौता विकसित देशों के निर्यात हितों को सिद्ध करेगा।

(vi) प्रदत्त स्थिति के अंतर्गत विकसित, विकासशील एवं अल्प विकसित देशों को जहाँ तक कि सेवा में आपूर्ति क्षमता का सम्बन्ध है, असमान रूप से रखा जाता है।

(vii) पूँजी गतिशीलता की दिशा में बाजार सुलभता वचनबद्धता में वर्तमान विषमता और पूर्वाग्रह जो कि श्रमिक गतिशीलता के विरुद्ध है, विकासशील देशों की बजाय विकसित देशों के हित में काम करते हैं।

(viii) यह दोनों पक्षों के मध्य विनिमय विचारों और समर्थनकारी सत्ता में एक आधारभूत असन्तुलन को प्रकट करता है। 

(ix) गैट्स विकासशील देशों के निर्यात हितों विशेषकर सीमापार श्रमिकों की गतिशीलता दृष्टिगत नहीं रखेगा। 

(x) विदेशी समदृष्टि भागीदारों पर किए जा रहे अधिक उदारमना वायदों के साथ पूँजी गतिशीलता पर वर्तमान वचनबद्धताओं की बजाय श्रमिक गतिशीलता पर वर्तमान प्रतिबद्धताओं में काफी विषमता विद्यमान है। मोड व्यापी प्रतिबद्धताओं में इस प्रकार की विषमता के कारण अनेक देश गैट्स को श्रम आधारित सेवाओं में अपनी निर्यात सम्भावना बढ़ाने में सहायता कर्ता के रूप में नहीं देखते हैं तथा गैट्स को केवल विकसित देशों के हित में मानते हैं।

3. परिवहन, भौतिक एवं दूसंचार, पर्यटन आदि परम्पारागत साहसकार्यों के अतिरिक्त सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियों जैसे उभरते क्षेत्रों में और पर्यावरण एवं शैक्षणिक सेवाओं समेत अर्थव्यवस्था का सेवाक्षेत्र सम्पूर्ण विश्व में एक आश्चर्यजनक विस्तार की प्रक्रिया से गुजर रहा है

(i) इंग्लैंड और अमेरिका आदि विकसित देशों में यह 72 प्रतिशत से भी अधिक है।

(ii) भारत जैसे विकासशील देशों में यह सकल घरेलू उत्पाद का 52 प्रतिशत है।

यह क्षेत्र इन देशों के श्रमिक बल को रोजगार का एक इसी प्रकार का अनुपात प्रदान करता है। सेवाक्षेत्र एवं निवेश प्रवाहों में यथेष्ट विस्तार दृष्टिगोचर होता है। विश्व व्यापार संगठन वार्षिक रिपोर्ट 1999-2001 के अनुसार सेवा क्षेत्र विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) के विश्वव्यापी वार्षिक भण्डार के 40 प्रतिशत और विश्वव्यापी वार्षिक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्रवाहों के 40 प्रतिशत तक योगदान देता है। यद्यपि विकसित देशों का विकासशील देशों और अल्पविकसित देशों की तुलना में सेवा क्षेत्र में निरप्रवाह रूप से अधिक विदेशी सीधा निवेश का अंश है।

उरूग्वे दौर के माध्यम से प्रारम्भ किया गया सेवाओं में व्यापार उदारीकरण अधिकांश रूप में विकसित देशों में सेवा क्षेत्र समर्थन गुट की ओर से पड़ते दबाव के कारण है। ऐसा प्रतीत होता है कि आपूर्ति के तरीकों में एक व्यापारिक विद्यमानता होने के कारण गैट्स विकसित देशों में व्यापारिक हित की पूर्ति हेतु एक साधन होगा।  इसका आशय होगा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के माध्यम से सेवा, बैंकिंग एवं दूरसंचार आदि क्षेत्रों में विकासशील देश सेवा बाजारों तक पहुँचना। विशेषज्ञों के अनुसार उभरते विश्व परिदृश्य में निर्माण एवं अभियांत्रिकी, स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाओं आदि सेवा क्षेत्र विकासशील देशों में कुशल एवं प्रचुर श्रमिकों की तत्कालीन उपलब्धि होने के कारण भारी सम्भावनाएं हैं। भारत पहले ही सॉफ्टवेयर सेवाओं के अग्रणी निर्यातक और प्रशिक्षित मानव संसाधन के रूप में भी उभर चुका है।

4. सूचना संचार प्रौद्योगिकियों में गैट्स के अन्तर्गत सम्मिलित होने वाली सेवाओं की श्रृंखला सत्ता प्रयोग में दी गयी सेवाएं समझौते से बाहर रखी गयी हैं। अनेक महत्त्वपूर्ण सेवाओं में निजी एवं सरकारी आपूर्तिकर्ताओं का सह-अस्तित्व होने के कारण विविध व्याख्याओं के प्रति उत्तरदायी है।

5. गैट्स ने रियायत, सरकारी, प्रापण आदि नीति के मुद्दों पर प्रतिबंध लगाए हैं। यह प्रतिबंध ‘सेवाओं की लागत उपलब्धता एवं समान | वितरण पर’ प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।

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