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जाति की संकल्पना, ग्रामीण सामाजिक संरचना का निर्धारिण कैसे करती हैं? चर्चा कीजिए।

 जाति की संकल्पना, ग्रामीण सामाजिक संरचना का निर्धारिण: निम्नलिखित बिंदु ग्रामीण सामाजिक संरचना को निर्धारिण करने वाली जाति की संकल्पना देते हैं:

1. अंतर्विवाह और बहिर्विवाह के नियम: वैवाहिक संबंधों के संबंध में कई नियम मौजूद हैं। एक ही गोत्र के व्यक्ति से कोई विवाह नहीं कर सकता। एक पुरुष भी ऐसी लड़की से शादी नहीं कर सकता, जो खून से संबंधित हो।

2. व्यवसायों की अन्योन्याश्रयता: जाति के आधार पर श्रम विभाजन ग्रामीण समाजों में जाति व्यवस्था की एक अनिवार्य विशेषता है। गाँव की अर्थव्यवस्था पहले जजमानी व्यवस्था पर आधारित थी।

3. जीवन के विभिन्न चरणों में जाति का महत्व: एक व्यक्ति का जीवन विभिन्न चरणों से गुजरता है, जैसे जन्म समारोह, विवाह और मृत्यु।

4. जाति संघ: हालांकि जाति की शक्ति अपनी प्रमुखता खो रही है, जाति संघ बहुत मजबूत हो रहे हैं, खासकर राजनीतिक मामलों में।

5. प्रभुत्वशाली जाति: जिस जाति में अन्य जातियों की तुलना में अधिक संख्यात्मक शक्ति होती है, जो अधिकांश भूमि रखती है और गांव से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय लेती है, वह ‘प्रमुख जाति’ है।

6. ग्रामीण अर्थव्यवस्था और जाति: ग्रामीण समाज में जाति लोगों के आर्थिक जीवन को निर्धारित करती है। हालांकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था विविध है, पारंपरिक ग्रामीण व्यवसाय ग्रामीण लोगों की स्थिति और धन का निर्धारण करते हैं।

7. सामाजिक और व्यावसायिक गतिशीलता: किसी भी ग्रामीण समाज में जाति के आधार पर सामाजिक और व्यावसायिक गतिशीलता का विश्लेषण किया जाता है। किसी व्यक्ति या परिवार की आर्थिक गतिशीलता उस जाति से निर्धारित होती है, जिससे वह संबंधित है।

8. पदानुक्रमित संबंध जाति पर आधारित हैं: जाति पदानुक्रमित संबंधों की एक प्रणाली है, जहां ब्राह्मणों को सर्वोच्च स्थान और शूद्रों को निम्नतम स्थान पर रखा जाता है।

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