राष्ट्रवाद के सिद्धांत राष्ट्रवाद के सभी विद्वान इस बात से सहमत हैं कि राष्ट्रवाद को किसी विशिष्ट या आंतरिक कारकों या समाज के अन्दर सक्रिय कारणों से स्पष्ट नहीं किया जा सकता है। इसको स्पष्ट करने के लिए समुचित बाहरी कारकों या विशेष समाज के बाहरी कारकों की जरूरत है।टॉम नैन का कहना है कि यह सही नहीं है कि किसी प्रकार का राष्ट्रवाद आतरिक गतियों का उत्पाद है। राष्ट्रवाद के विद्वानों में मुख्य मतभेद बाहरी कारकों को भी पहचान को लेकर है। कुछ लोग राष्ट्रवाद को मानव समाज के विकास के आवश्यक चरण के रूप में देखते हैं। अन्य सिद्धांतकार राष्ट्रवाद को एक मानव भावना या पहचान के लिए बड़ी सामाजिक और मनोवैज्ञोनिक जरूरत या एक बड़ी पूर्णता के साथ पहचानते हैं। इस प्रकार राष्ट्रवाद की अवधारणा व्यापक है।
इसके लिए विभिन्न प्रकार की व्याख्याएं सामने आती हैं। मतभेदों को विचारों के माध्यम से समझा जा सकता है। ये विचार राष्ट्रवाद को एक दुर्घटना से लेकर एक महान मानवीय जरूरत के रूप में ले जाते हैं। इन सभी विचारों में दो विचार विशेष महत्त्वपूर्ण हैं गैर आधुनिकतावादी एवं आधुनिकतावाद|
गैर-आधुनिकतावादी सिद्धांत :-
आधुनिकतावादी राष्ट्र को एक आधुनिक परिघटना मानते हैं और इसके उद्भव काल को पिछली तीन शताब्दी से भी कम मानते हैं। इसके विपरीत गैर आधुनिकतावादी राष्ट्रवाद को अधिक अवधि का मानते हैं। उनका कहना है कि जटिलता के साथ गुंफित राष्ट्रवाद इतने कम समयांतराल में नहीं हो सकता और इसका विकास लंबे समय में हुआ है। जिस प्रकार आधुनिकतावादी विद्वानों में आपसी सहमति नहीं है, उसी प्रकार गैर-आधुनिकतावादियों में भी आपसी सहमति नहीं है। उन्हें विकासवादियों, प्रकृतिवादियों और निरन्तरवादियों में विभाजित किया जा सकता है। प्रकृतिवादी राष्ट्रवाद को अति प्राकृतिक भावना के रूप में देखते हैं।
प्रकृतिवादियों के आसपास ही निरन्तरता की स्थिति है। उनका कहना है कि पाकिस्तान तो उसी क्षण अपने अस्तित्व में आ गया, जब मुस्लिम शासन स्थापित होने से गैर-मुसलमानों का बड़े स्तर पर धर्मांतरण हुआ। वस्तुतः सभी देशों की अपनी छवि होती है, जिसे राष्ट्रवादी विचारक या नेता बनाते हैं। राष्ट्रवाद पर किये महत्त्वपूर्ण शोधों में निरन्तरवादियों की स्थिति को समझा गया है तथा उसे ‘आविष्कृत परंपरा’ के रूप में व्यक्त किया गया। आविष्कृत परम्परा में राष्ट्रवादी अतीत तथा परम्परा का प्रयोग करते हैं और उससे प्रेरणा प्राप्त करते है। वे अपने राष्ट्र के लिए अतीत, इतिहास तथा परम्परा से इसकी उपस्थिति का दावा करते हैं। उनके अनुसार परम्परा का रूप आविष्कृत या कृत्रिम होता है। परम्परा का आविष्कार विशेष प्रकार से किया जाता है, जिससे इसका इस्तेमाल राष्ट्रवादियों के समर्थन में हो।
जिन्ना मुस्लिम राष्ट्र को न्यायोचित केवल इस आधार पर ठहरा सके कि हिन्दू और मुसलमान के मध्य किसी प्रकार का संबंध नहीं है तथा यही कारण था कि भारतीय इतिहास में मुस्लिम राष्ट्र का अस्तित्व बहुत पहले से रहा है। इस प्रकार मुस्लिम राष्ट्र को वैध ठहराने के लिए परम्परा की खोज की जा रही थी। प्रमुख इतिहासकार एरिक हॉब्सबाम की राष्ट्रवाद की अवधारणा भी महत्त्वपूर्ण है। उनका तर्क है कि मानव इतिहास के पूर्व आधुनिक काल से गुजरते हुए राष्ट्रवाद की व्याख्य की जा सकती है। पूर्व उपस्थित संस्कृतियों, विरासतों तथा विभिन्न अन्य नैतिक संधियों, भावनाओं एवं पूर्व स्मृतियों पर राष्ट्रवाद केन्द्रित है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़. एक-दूसरे के साथ बढ़ती है और राष्ट्र के उदय में योगदान देती है।
आधुनिकतावादी सिद्धांत :-
सभी आधुनिकतावादी एक-दूसरे से सहमत नहीं हैं और उनके विचारों में पर्याप्त भिन्नता है। राष्ट्रवाद का एक प्रभावशाली आधुनिकतावादी सिद्धांत अर्नेस्ट गैलनर द्वारा दिया गया। गैलनर राष्ट्रवाद के उदय को विश्व के कृषक समाज से औद्योगिक समाज में रूपान्तरण के रूप में व्यक्त करते हैं। नये औद्योगिक समाज ने बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय समुदायों के सृजन को आवश्यक बना दिया। औद्योगिक समाज में कुछ ऐसी विशेषताएं थीं, जो सम्पूर्ण विश्व में एक शक्ति के रूप में राष्ट्रवाद के उभार के रूप में सामने आईं। यद्यपि गैलनर के सिद्धांत में एक बड़ी समस्या थी। गैलनर द्वारा वर्णित औद्योगिक समाज पूर्णरूप से विकसित यूरोपीय समाजों में विकसित हो सकता था। इसके विपरीत यही राष्ट्रवाद वास्तव में एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा और यह विकसित तथा अविकसित दोनों प्रकार के देशों में फैला,
इसलिए प्रश्न उठता था कि एशिया तथा अफ्रीका के देशों में राष्ट्रवाद की व्याख्या किस प्रकारका की जाए। इस प्रश्न का उत्तर एक अन्य आधुनिकतावादी विद्वान टॉम नैन के सिद्धांत से मिला था। उसने राष्ट्रवाद को वैश्विक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के क्रियाकलापों के साथ जोड़ा, परन्तु गैलनर के विपरीत उन्होंने अपने व्याख्या की तलाश विकास, शिक्षा तथा औद्योगिक समाज की गतिशीलता की अपेक्षा औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप सभी समुदायों को मिली विषमता तथा विस्थापन में की। इस भिन्नता ने विश्व को ‘यूरोपिन अभिकेन्द्र’ तथा एक एशियाई तथा अफ्रीकी परिधि में विभक्त कर दिया अर्थात् पूँजीवाद ने साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद को जन्म दिया।
क्षेत्र के संभ्रांतों ने इस विषमता के अपमान को अधिक महसूस किया। इसका सामना करने के लिए एकता तथा एकात्मकता की दृष्टि ने एक विशाल समुदाय निर्माण करने का कार्य किया। सभी सीमाओं से परे जाकर उन्होंने औपनिवेशिक वर्चस्व के खिलाफ लड़ाई लड़ी। इसी प्रक्रिया के दौरान इन उपनिवेशों में राष्ट्रवाद का उदय हुआ।
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