उद्यमशीलता की अभी तक कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी जा सकी है। इस संदर्भ में विचारकों के विचारों में भी मतभेद है। कुछ विचारकों के अनुसार कुछ विशेष किस्म के संगठनों के विनिमय के लिए नियमन प्रक्रिया बनाने में प्रशासन का एक अंग और इसके प्रकार्य उद्यमशीलता में शामिल हैं। कुछ विद्वान सामाजिक या नवीन निर्णयों को इसमें सम्मिलित करते हैं, जबकि अन्य विद्वान आर्थिक संगठनों के लिए इस शब्द का प्रयोग करते हैं। ऐतिहासिक संदर्भ में इस शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी शब्द से हुई है, जिसका अर्थ कुछ काम करने के अर्थ में लिया जाता था।
16वीं शताब्दी के दौरान सैन्य अभियानों में जुटे हुए लोगों को उद्यमी कहा जाता था। वास्तव में 17वीं सदी के बाद इस शब्द का प्रयोग सरकारी सड़क, पुल, बंदरगाह और मोर्चे सम्बन्धी संविदाकारों तथा बाद में वास्तुकारों के लिए फ्रांसीसियों द्वारा किया गया। 1800 के बाद इसका प्रयोग शैक्षणिक विषय में किया जाने लगा था, क्योंकि इसका प्रयोग फ्रांसीसी अर्थशास्त्रियों द्वारा किया जाने लगा। उन्होंने उद्यमी को संविदाकार, कृषक, उद्योगपति के रूप में लिया जो जोखिम उठाने वाले पूँजीपति के रूप में देखे जाते थे।
उद्यमशीलता की सैद्धान्तिक पृष्ठभूमि में वेबर और जोसेफ सम्प्टर के विचार बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। सक्म्प्टर ने पूर्व वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हुए उद्यमी को केवल प्रबन्धक वृत्तीय प्रवाह विकास प्रणाली के रूप में माना जबकि मैक्स वेबर के अनुसार पहचान बनाना एक जटिल काम है। इन्होंने ‘द प्रोटेस्टेंट एथिक्स एण्ड स्पिरिट ऑफ केपिटलिज्म’ में इस बात की चर्चा की है। उन्होंने पूँजीवाद को समझने के लिए कुछ सैद्धान्तिक आधारों का निर्माण किया। सम्प्टर का उद्यमशीलता एवं पूँजीवाद के संदर्भ में योगदान-सक्म्प्टर ने विविध चरणों में उद्यमशीलता के विभिन्न सैद्धान्तिक पक्षों पर विचार किया तथा मनोविज्ञान, आर्थिक सिद्धान्त, समाजशास्त्र सम्बन्धी कई उपागमों का प्रयोग किया। इसमें सबसे पहले उसने आर्थिक सिद्धान्त में उद्यमशीलता के समक्ष इतिहास का प्रतिपादन किया एवं इस संदर्भ में आर्थिक विचारधारा का इतिहास उसके ऐसे उपागम से काफी प्रभावित है, जो अभी भी शैक्षिणिक क्षेत्र पर हावी है।
सक्म्प्टर ने बारम्बार इस ओर इंगित किया है कि जब साधारण आर्थिक व्यवहार कमोबेश स्वचालित है, तो उद्यमी को सदैव ऐसे कार्यों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है जिन्हें इस रूप में लिया जाना चाहिए कि मानो उद्यमी को कुछ ऐसा करने में शामिल किया गया है, जो मूलतः नवीन है। यह एक ऐसी अंतर्दृष्टि है जो काफी महत्त्वपूर्ण प्रतीत होती है, जैसे कोई ऐसा नवीन काम करता है लेकिन उसे यह नहीं पता होता कि उसे आगे कैसे बढ़ना है और इसलिए उसे नए मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। सक्म्प्टर के अनुसार पूँजीवादी प्रक्रिया का अर्थ है वृत्तीय प्रवाह तथा इसे प्रवर्तकों और अनुयायियों द्वारा वितरित किया एवं बदला जाता है। कुछ निश्चित तकनीकी आर्थिक दशाओं के आधार पर व्यवसाय लाभ कमाना शुरू कर देता है।
यहाँ तक कि बढ़े हुए उत्पादन से बाजार की कीमतें गिरने लगती हैं। सक्म्प्टर के अनुसार यहाँ महत्त्वपूर्ण बात यह है कि समुचित वृत्ताकार प्रवाह में आक्रामक उद्यमी जिनके पास रखने को कुछ नहीं है, वह नवाचार के विचार को सुदृढ़ करेगा। सुस्थापित फर्मों की अड़चनों को दूर करने की उसकी सफलता उसके बल या अनुकूलन के ऐसे महत्त्वपूर्ण बिन्दु हैं जो परिवर्तनशीलता के साथ अन्त:क्रिया करता है। उसके इस उद्यमशीलता के सिद्धान्त को आर्थिक विकास के सिद्धान्त में देखा जा सकता है। उसने पूर्णतया एक नया आर्थिक सिद्धान्त बनाने का प्रयत्न किया। उसने कहा कि अर्थव्यवस्था के सभी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन उद्यमी द्वारा किए जाते हैं और ये परिवर्तन धीरे-धीरे व्यावसायिक चक्र के माध्यम से अपने ही बूते पर काम करते हैं।
सक्म्प्टर ने इस बात को भी माना कि उसके सजातीयता के विचार ने परिवर्तन उत्पन्न किया, जो ऐसे परिवर्तन के विपरीत था जिसे बाहरी शक्तियों ने प्रस्तुत किया था तथा जो न केवल आर्थिक घटनाओं वरन् सभी सामाजिक घटनाओं पर भी लागू होता था तथा इसे दो प्रकार की गतिविधियों के रूप में देखा जा सकता था-पहली सृजनात्मक और नवीन गतिविधियाँ थी व दूसरी आवर्तक और मशीनी गतिविधियाँ थीं। उन्होंने उद्यमशीलता को नवीनता के रूप में लिया है। उनकी विभिन्न रचनाओं का अधिकांश भाग आर्थिक सिद्धान्त को विकसित करने के प्रयास से सम्बन्धित है। ये पूँजी, ऋण लाभ, व्यावसायिक चक्र जो उद्यमशीलता के सिद्धान्त के साथ जोड़े जाते हैं। ऐसा करके सक्म्प्टर यह दावा करता है कि उद्यमशीलता को पहले से मौजूद सामग्री और बलों के नए तालमेल के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। ये आविष्कारों की बजाए नयी बातों को करने से जुड़े हैं और इसके साथ यह भी कि कोई भी हमेशा के लिए उद्यमी नहीं रहता है। जब वह कोई नवीन गतिविधि कर रहा होता है, तभी उद्यमी होता है।
उन्होंने उद्यमी का आर्थिक वर्गीकरण किया है, जो निम्नलिखित है
1. नयी वस्तुओं की खोज,
2. उत्पादन के नए साधनों की पेशकश,
3. नये बाजार की शुरूआत,
4. कच्चे माल की आपूर्ति के नए स्रोतों की खोज,
सक्म्प्टर ने एक और वर्गीकरण किया है जो काफी प्रचलित है। यह उद्यमी के अभिप्रेरण से जुड़ा हुआ है तथा उनके अनुसार ऐसे तीन महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं, जो उद्यमी को प्ररित करते हैं
(i) निजी हुकूमत की प्राप्ति का सपना और इच्छा-शक्ति,
(ii) जीतने की इच्छा,
(iii) किसी वस्तु को सृजित करने का आनंद।
वह कहता है कि उद्यमी को अभिप्रेरित करने के लिए केवल धन ही पर्याप्त नहीं है। उसके अनुसार उद्यमी सैद्धान्तिक नजरिए से निश्चित रूप से आर्थिक व्यक्ति नहीं होते। वह कहता है कि आर्थिक विकास के सिद्धान्त में अभिप्रेरण का उसका विचार मनोविज्ञान के क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। सारांश-इस बात में कोई शंका नहीं है कि सैद्धान्तिक दृष्टि से वेबर का योगदान बहुत है, लेकिन व्यवहार में यह कमजोर नजर आता है। इस कमी के बावजूद भी वेबर के विचार को पूँजीवादी विकास के संदर्भ में उद्यमी के व्यावहारिक अनुप्रयोग को विकसित करने और इसकी रूपरेखा बनाने के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है तथा वेबर की उद्यमशीलता की प्रारम्भिक परिभाषा समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में सम्प्टर की व्यक्तिवादी उद्यमशीलता को व्यापक करने के कार्य को सुविधाजनक बना सकती है।
उद्यमशीलता की उत्तरजीविता, आधुनिक उद्यम के संगठन का विचार जो लाभ के अवसरों को उत्पन्न करने के लिए एक अनिवार्य शर्त है और जिसे उत्तरजीविता के लिए सृजनात्मक व्यक्तित्व वाले विचार के रूप में भी देखा जा सकता है। व्यवसाय से धन कमाना तथा वेबर की पद्धति सम्बन्धी कार्य जैसा कि उन्होंने ‘द प्रोटेस्टेंट एथिक’ में दर्शाया है, इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न को जन्म देता है कि किस प्रकार वैश्वीकरण और उदारवाद की वर्तमान गतिशील स्थिति में पद्धति के कार्य और धन अर्जित करने के मूल तत्त्वों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसमें शायद उद्यमशीलता और पूँजीवाद में सिद्धान्त के सुधार व संशोधन की आवश्यकता है।
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