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“सत्येषु दुःखादिषु दृष्टरार्या सम्यग्वितर्कश्च पराकमश्च। इदं त्रय॑ ज्ञानविधौ प्रवृतं प्रज्ञाअ्रयं क्लेशपरिक्षयाय |।"

प्रसंग - प्रस्तुत काव्य पंक्तियां अश्वघाष द्वारा बुद्धचरित’ नामक महाकाव्य से ली गई हैं। इस महाकाव्य की रचना मानव के सुखों तथा कल्याण के लिए तथा बुद्ध के प्रति अपने श्रद्धाभाव की व्यक्त रकने के लिए कवि ने की थी।

इसमें महात्मा बुद्ध के जीवन, उपदेश तथा सिद्धांतों का काव्यात्मक वर्णन है। भगवान बुद्ध के जीवन तथा कार्यों पर लिखा गया, यह संस्कृत का प्रथम महाकाव्य है। कवि का कहना है

व्याख्या :- सुख-दुःख में समान दृष्टि, तर्क तथा पराक्रम इन तीनों को ज्ञान विधियों में प्रवृत्त करने से ही बुद्धि को क्लेश के आश्रय से मुक्त या दूर रखा जा सकता है अर्थात अश्वघोष मानव के कल्याण तथा मुख के लिए तर्क, पराक्रम तथा सुख-दु:ख में अपनी ज्ञान बुद्धि से सामंजस्य करके क्लेश से दूर रहने का उपदेश देते हैं।

किसी भी परिस्थिति में बुद्धि को विचलित नहीं होने देना चाहिए और सम-विषम परिस्थितियों में सदैव सामंजस्य या समानता स्थापित करने का प्रयत्न करते हुए क्लेश या चिंता दुःख आदि का निवारण करना चाहिए।

विशेष :

(1) भाषा सरल, सुगम संस्कृत है।

(2)कवि का तार्किक चिंतन सामाजिक जीवन के अनुभव पर आधारित है।

(3) मानव कल्याण तथा सुख की भावना की कामना परिलक्षित होती है।

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