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'परिन्दे” कहानी के संरचना-शिल्प पर प्रकाश डालिए।

 ‘परिंदे’ निर्मल वर्मा की सशक्त कहानियों में से एक है। ‘परिन्दे’ कहानी-संग्रह की यह अंतिम कहानी है और इसका शीर्षक प्रतीकात्मक है, जिससे आधुनिक मानव की नियति को पकड़ने की कोशिश किया गया है।जहाँ सभी मनुष्य किसी-नकिसी के लिए प्रतीक्षित हैं। कहानी की नायिका लतिका इस कहानी का केन्द्र बिन्दु है। वह एक पहाड़ी स्कूल में वार्डन है । वह कुमाऊँ के कॉन्वेन्ट स्कूल में शिक्षिका भी है। मिस्टर ह्यूबर्ट, डॉ. मुकर्जी और मिस वुड आदि उसके साथ उस स्कूल में शिक्षक हैं। कहानी में उस समय का ज़िक्र है, जब सर्दी की छुट्टियाँ होने वाली हैं और होस्टल खाली होने का समय आ गया है। पिछले दो-तीन सालों से मिस लतिका होस्टल में ही रह रही हैं और डाक्टर मुकर्जी छुट्टियों में कहीं नहीं जाते, डाक्टर तो सर्दी-गर्मी में भी यहीं रहते हैं।

परिंदे मूलतः प्रेम कहानी है, कहानी में प्रेम के प्रति जितना तीब्र सम्मोहन है उतना ही उस सम्मोहन से मुक्ति होने की अकुलाहट भी। ‘परिंदे’ कहानी में निर्मल की मनोवैज्ञानिक सूझ-बूझ भी काफी उभर कर सामने आई है। कहानी की नायिका लतिका अपने प्रेमी- कैप्टन नेगी की मृत्यु के बाद एक पहाड़ी स्कूल में अकेलेपन की जिंदगी गुजार रही है। अप सहकर्मी डॉ. मुकर्जी के काफी प्रेरित करने पर भी वह दूसरा संबंध नहीं बना पाती, अपनी स्थिति से निकल नहीं पाती। लतिका ही नहीं मि. [बर्ट, मुकर्जी आदि सभी पात्रों की अपनी एक व्यक्तिगत परिस्थिति है, जिसका समाधान सभी चाहते हैं, लेकिन न ढूँढ़ पाने के कारण एब्सर्ड के शिकार हैं।

सभी का जीवन एक ही प्रश्न का उत्तर खोज रहा है- ‘हम कहाँ जाएँगे?’ यही वह प्रश्न है जो कहानी के केंद्र में शुरू से अंत तक बना हुआ है और बिना किसी प्रत्यक्ष या ठोस समाधान के बना ही रह जाता है। अगर कहानी के पात्रो पर गौर करें तो लतिका, डॉ मुकर्जी सभी अपना दर्द लिए जीते है। ऊपर से हंसने की असफल कोशिश करने वाले और अन्दर ही अन्दर रोते हुए चेहरों पर आने वाली बारीक से बारीक प्रतिक्रियाओं का प्रभाव समेटने का प्रयास काफी प्रभावशाली बन गया है। उनके र्सवाद से पता चलता है कि वे अन्दर से उदास है तभी तो डॉ.मुकर्जी मिस बुड से कहते है- ” कहीं नहीं जमती, तो पिछे भी कुछ नहीं छूट पाता।” फिर डॉ.मुखर्जी से कहते है- कभी-कभी तो मैं सोचता हूं कि इंसान जिंदा ही क्यों रहता है, क्या उसे इससे कोई बेहतर काम करने को नहीं मिला है?

अगर इस कहानी के वातावरण को ध्यान से समझे तो वातावरण का अंकल चित्रण काफी अच्छा हुआ है। पहाड़ी इलाका है, सर्दी की छुट्टियों में पत्तो की सायं-सायं करते आवाज हैं। पिकनिक के लिए भूलादेवी के मंदिर का वर्णन है । पहाड़ी इलाका में वर्षा का क्या क्या ठिकाना कब वर्षा आ जाएगी । ‘बुरूस के फूला , चीड़ के पत्ते बहते नाले यह सब दृश्य प्रकृति की ओर मोड़ देते है। जब मेघाच्छन्न आकाश में सरकते हुए बादलों के पीछे पहाड़ियों के झुण्ड कभी ऊपर आते थे, कभी छिप जाते थे।इस प्रकार पूरी कहानी में प्रकृति तथा वातावरण कफी रोचक दंग से किया गया है। इनकी भाषा इस कहानी में भावानुकूल है। कही भाषा चिन्तन प्रधान है, कहीं रूमानी। परिन्दे कहानी, रूमानी बोध को चित्रित करती है उर्दू के शब्दो की, है कहीं-कहीं पूरे अंग्रेजी व्याकरण है। कुल मिलाकर अलंकृत भाषा है, मानवीय करण है, प्रतीक और बिम्ब है।

प्रवासी होने के कारण इनके कम्य शिल्प और भाषा में प्रवासीय प्रभाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। परिन्दे कहानी के माध्यम से निर्मल वर्मा से अपना उद्देश्य भी प्रकट किया है। प्रमी के मर जाने के बाट अतीत को याद कर लतिका पूरे संसार में स्वयं को मिसकिट पाती है निर्मल वर्मा की मान्यता है। अतीत का मोह व्यथ है मरे हुए के साथ मरना बेवकूफी है। शून्यता का अनुभव मनुष्य के जीवन में निराशा और अंधकार के सिवाय कुछ नहीं लाता अतः अतीत को जब तक हम विस्मृत नहीं करते हमें भविष्य में आगे कदम ठीक दंग से नहीं बढ़ा सकते है। अतीत को याद जरूर किया जाए लेकिन अतीत के साथ ही चिपक कर रहना यह बेवकूफी है। अतीत को भूलाकर भविष्य की कामनाएं रची जाए गदी जाए यही संदेश हम पाते है।

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