ऐतिहासिक अवस्था का परिप्रेक्ष्य – विकास और अल्पविकास के मध्य अन्तर को ज्ञात करने के साथ-साथ यह परिप्रेक्ष्य के मध्य की अवस्थाओं और उनके लक्षणों को सुनिश्चित करता है। यह परिप्रेक्ष्य मुख्य रूप से रोस्टो और 1960 मे उसके द्वारा विकसित आर्थिक प्रतिरूप से सम्बद्ध है। वाल्ट रोस्टो नामक आर्थिक इतिहासकार ने अमरीकी सरकार के सलाहकार के रूप में अपनी सेवायें दी। उनकी पुस्तक ‘द स्टेजिस ऑफ इकोनोमिक ग्रोथः ए नॉन कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो’ (1960) की प्रकृति पूर्व पूँजीवादी तथा नव विकासवादी थी।
इस प्रकार के लिखने के लिये पूर्ववर्ती विकासवादी सिद्धान्त के इस विचार से प्रेरणा प्राप्त हुई थी कि परिवर्तन और विकास क्रमिक घटनाओं में एक समुच्चय के अनुसार होते हैं।
रोस्टो के प्रमुख विचार निम्न प्रकार हैं
(i) परिवर्तन की प्रक्रियाएँ साधारण एवं स्वपोषित होती हैं।
(ii) आर्थिक वृद्धि (विकास) को निम्नलिखित विकास प्रतिरूप की पाँच अवस्थाओं के अनुपालन से प्राप्त किया जा सकता है।
(iii) समस्त समाजों को पाँच श्रेणियों में से किसी एक अथवा आर्थिक विकास की अवस्थाओं में से किसी एक में रखा जा सकता है।
1. प्रथम अवस्था-परम्परागत समाज – इस समाज में विज्ञान और तकनीक तक पहुँच | नहीं होती। परिणामतः स्थिति निम्न प्रकार की होती है
(i) उत्पादन सीमित होता है।
(ii) मूल्य प्रायः घातक होते हैं।
(iii) राजनीतिक शक्ति केन्द्रित नहीं होती।
(iv) अधिकांश लोग कृषि में लगे होते हैं।
(v) उत्पादन कम होता है।
(vi) समाज में सामाजिक संगठनों में परिवार और वंश समूहीकरण पर बल दिया जाता है।
(2) द्वितीय अवस्था-प्रारम्भ की पूर्व शर्ते – विकास की दूसरी अवस्था संक्रमण की अवस्था है। वस्तुतः पारम्परिक समाज प्रत्यक्षतः ही औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया की ओर नहीं चला जाता। इससे पूर्व कुछ निश्चित प्रारम्भिक क्रियाएँ पूरी की जाती हैं। इस अवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं
(i) आर्थिक उन्नति के समर्थन में विचारों की प्रचुरता होती है।
(ii) शिक्षा और उद्यम के नये स्तर तथा पूँजी लगाने वाली संस्थाएँ जैसे बैंक इत्यादि अपरिहार्य होती हैं।
(iii) निवेश बढ़ता है। विशेष रूप से परिवहन, संचार तथा कच्चे माल में निवेश बढ़ जाता है। यह वाणिज्यिक विस्तार की ओर ले जाता है।
(iv) तथापि रोस्टो के अनुसार परम्परागत सामाजिक ढाँचा और उत्पादन की तकनीक में परिवर्तन नहीं आता। इस अवस्था में दो प्रकार का समाज दृष्टिगोचर होता है। तृतीय अवस्थाः प्रारम्भ -इस अवस्था में अन्ततः परानी और पारम्परिक व्यवस्था तथा प्रतिरोध पर |
नियंत्रण स्थापित कर लिया जाता है :
(i) आर्थिक विकास को प्रारम्भ करने वाली शक्तियाँ फैलती हैं।
(ii) समाज में प्रमुखता प्राप्त कर लेती है।
(iii) कृषि का व्यापारीकरण होता है।
(iv) उत्पादन में वृद्धि होती है। कारण यह है कि विस्तार पाते हुए शहरी केन्द्रों से उत्पन्न होने वाली माँग की आपूर्ति हेतु यह आवश्यक हो जाता है।
(v) नवीन आर्थिक समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले नवीन राजनीतिक दल औद्योगिक अर्थव्यवस्था को नवीन ऊँचाइयों पर ले जाते हैं।
(vi) वस्तुतः प्रौद्योगिकी ही ब्रिटेन, कनाडा और संयुक्त राज्य अमरीका में प्रारम्भ के लिए आवश्यक प्रोत्साहन था।
भिन्न-भिन्न देशों में यह अवस्था भिन्न-भिन्न समय पर आई। उदाहरणार्थ,
(a) ब्रिटेन में प्रारम्भ का काल 1783 के बाद प्रारम्भ हुआ था।
(b) फ्रांस और अमरीका में 1840 के लगभग प्रारम्भ हुआ था।
(c) रूस में 1890 के लगभग प्रारम्भ हुआ था।
(d) भारत और चीन आदि देशों में 1950 में यह काल प्रारम्भ हुआ था।
चौथी अवस्था-परिपक्वता की ओर – इस अवस्था की प्रमुख विशेषतायें निम्न प्रकार हैं
(i) विकासशील अर्थव्यवस्था आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनी सभी आर्थिक गतिविधियों में विस्तृत करने का प्रयास करती है।
(ii) सकल घरेलू उत्पाद के 10 प्रतिशत से 20 प्रतिशत के मध्य का निवेश किया जाता है।
(iii) अर्थव्यवस्था विश्व की व्यवस्था में अपना स्थान बनाती है।
(iv) प्रौद्योगिकी अधिक जटिल और परिष्कृत हो जाती है।
(vii) उत्पादन प्रतिद्वन्द्वी पूँजीवादी बाजार में बने रहने हेतु लाभ अर्जित करने हेतु होता है।
पांचवी अवस्था-अधिक खपत – यह अन्तिम अवस्था है। इस अवस्था की प्रमुख विशेषतायें निम्न प्रकार हैं
(i) बड़े आर्थिक क्षेत्र टिकाऊ उपभोक्ता सामान और सेवाओं में विशेषज्ञता प्राप्त कर लेते हैं।
(ii) आर्थिक विकास यह सुनिश्चित करता है कि मूल आवश्यकताएँ पूरी हो रही हैं।
(iii) लोक कल्याण तथा सामाजिक सुरक्षा हेतु अधिक संसाधन आवंटित किये जाते हैं।
(iv) कल्याणकारी राज्य का उदय होता है।
(v) टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं का बड़ी संख्या में प्रयास किया जाता है।
रोस्टो ने अपने सिद्धान्त और विचारधारा को गतिशील माना है। उसके अनुसार यह आर्थिक तत्त्वों से ही सम्बन्धित न रहकर सामाजिक निर्णयों और सरकारी फैसलों से भी सम्बन्धित थी।
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