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स्वच्छंदतावादी आलोचना

 स्वच्छंदतावादी आलोचना का विकास हिन्दी की छायावादी काव्यधारा के मूल्यांकन के साथ हुआ। पुराने आचार्यों ने छायावादी काव्य की नवीन चेतना को सही परिप्रेक्ष्य में नहीं समझा और न उसका ठीक से मूल्यांकन किया।

छायावादी कवियों ने अपने काव्य के समुचित मूल्यांकन के लिए जहाँ अपने काव्य सिद्धांतों और मान्यताओं को स्पष्टता के साथ प्रस्तुत किया, वहीं नए आलोचकों को प्रेरित एवं प्रभावित करके छायावादी या स्वच्छंदतावादी काव्यालोचना का मार्ग प्रशस्त किया।

वाजपेयी जी के साथ ही डॉ. नरेंद्र ने छायावादी काव्य का जो मूल्यांकन प्रस्तुत किया, वह भी हिन्दी की स्वच्छंदतावादी आलोचना को परिपुष्ट करने वाला है।

‘आधुनिक हिन्दी कविता की प्रवृत्तियाँ और ‘सुमित्रानंदन पंत’ जैसे ग्रंथों से उन्हें छायावादी आलोचक के रूप में ख्याति मिली।

उन्होंने काव्य में आत्माभिव्यक्ति कामहत्वपूर्ण माना और छायावाद को ‘स्थूल के विरुद्ध का विद्रोह’ कहा। उन्होंने यह स्थापित किया कि भक्ति आंदोलन के बाद हिन्दी साहित्य में छायावाद एक बड़ा काव्यान्दोलन था ।

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