मुगलकालीन इतिहास-लेखन की मुख्य विशेषता सरकारी इतिहासकारों द्वारा इतिहास-लेखन है। मुगल शासकों द्वारा इस समय सरकारी इतिहासकार रखने की प्रथा की शुरुआत हो चुकी थी, जिसे बाबर से लेकर औरंगजेब तक सभी मुगल शासकों ने कायम रखा। मुगलकालीन इतिहास-लेखन की दूसरी विशेषता यह थी कि शासकों द्वारा आत्मकथा का लेखन किया जाता था। जहीरुद्दीन बाबर भारत में मुगल वंश का संस्थापक था। इसने 1526 ई० में लोदी वंश के शासक इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली का सुल्तान बना। वह एक शासक के साथ-साथ एक लेखक भी था। उसके द्वारा लिखी गई ‘तुजक-ए-बाबरी’ या ‘बाबरनामा’ तुर्की में लिखी गई एक साहित्यिक कृति है। इस कृति में उसने मध्य एशिया में तैमूर के शासन, भारत के जनजीवन और भारतीय संस्कृति के विषय में लिखा है।
भारतीय शासकों के विषय में उसका जो लेखन है, वह वस्तुपरक नहीं लगता, क्योंकि उसने अपने लेखन में निष्पक्षता का परिचय न देते हुए भारतीय शासकों को विश्वासघाती कहा है, जबकि बाबर ने स्वयं उनको धोखा दिया था। अपने संस्मरण में बाबर ने भारत के विषय में लिखा है। यह एक विशिष्ट रूप से सुंदर देश है। दूसरे देशों की तुलना में यहाँ की दुनिया निराली है। यहाँ के पेड़, पहाड़, नदियाँ, वन, मैदानी भाग, जानवर, वनस्पतियाँ, निवासी, उनकी भाषाएँ, वर्षा आदि सभी अलग तरह के हैं। बाबर ने भारत की आर्थिक संपन्नता और देश में सोने-चांदी की अधिकता के विषय में भी लिखा है। बाबर एक सफल पारखी था। इलियट ने बाबर के संस्मरण को एक सर्वोत्कृष्ट एवं विश्वसनीय आत्मकथा माना है। ‘बाबरनामा’ बाबर के काल का मौलिक स्रोत है। इस ग्रंथ का फारसी भाषा में अनुवाद पायन्दा खां ने किया था। दूसरा अनुवाद अब्दुल रहीम खानखाना ने अकबर के आदेश पर किर था। इसका अनुवाद अनेक यूरोपीय भाषाओं में भी हुआ, विशेषकर फ्रेंच और अंग्रेजी में। अंग्रेजी में किए गए अनुवादों में किंग लैडन तथा अरिस्कन का नाम बहुत महत्त्वपूर्ण है।
अकबर के काल में इतिहास-लेखन में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया। अकबर ने सहस्राब्दी के पूर्ण होने पर इतिहासकारों के सामने इसके लेखन का प्रस्ताव रखा। जिसमें पैगंबर से लेकर अकबर के समय तक का इतिहास लिखा जाना था, जो कि एक हजार साल तक का था। उसका नाम ‘तारीख-ए-इल्फी’ रखा गया। बाबर और हुमायूँ के काल की सूचनाओं को देने के लिए सभी सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को कहा गया कि वे इन्हें पुस्तकीय रूप प्रदान करें। अकबर के कहने पर बेगम वाजियात-वियात और जौहर आफ़ताबी ने लेखन कार्य किया। वाजियात ने हुमायूँ के जीवन की घटनाओं को इरान, काबुल और भारत में वर्णित किया। उसकी रचना ‘तजकीरात-इ-हुमायूँ’ है। जौहर आफताबी ने हुमायूँ के जीवन की घटनाओं को ‘तजकीरात-उल-वाकियात’ में एकत्रित किया है। अकबर के शासनकाल की जानकारी के लिए ‘तारीख-इ-अल्फी’ तथा अबुल फजल का ‘अकबरनामा’ प्रसिद्ध है।
अकबर ने सात विद्वानों की एक परिषद का गठन ‘तारीख-ए-इल्फी’ के लेखन के लिए किया, जिसमें प्रत्येक सदस्य को कालक्रम के आधार पर इतिहास लिखने को कहा गया। अकबर ऐसा करके 15वीं शताब्दी के क्षेत्रीय राजाओं के विषय में संकलन करना चाहता था। 1585 ई. में यह कार्य संपूर्ण हो गया और अकबर के समक्ष इसे समर्पित किया गया। परन्तु अकबर ‘तारीख-ए-इल्फी’ में किए गए संकलन से संतुष्ट न हुआ और उसने अबुल फजल से बाबर तक और बाबर से लेकर अपने शासनकाल तक का इतिहास फिर से लिखने को कहा। अबुल फजल की सहायता के लिए दस लोगों को नियुक्त किया गया, जिन्होंने लेखन के लिए सामग्री एकत्रित की। अकबर ने इस कार्य के लिए अबुल फजल को इसलिए चुना, क्योंकि अबुल फजल अकबर के धार्मिक कार्यों से अवगत था।
जहाँगीर के शासनकाल में इतिहास-लेखन को प्रश्रय दिया गया। उसने भी बाबर की तरह जीवनपयन्त लेखन का निश्चय किया था। अतः उसने अपने शासनकाल का इतिहास लिखने के लिए कई विद्वानों को नियुक्त किया था। जहाँगीर ने अब्दुलहक को आपने शासनकाल का इतिहास लिखने को कहा, किन्तु वह बहुत वृद्ध था, अत: उसके पुत्र नसलहक न जब्दतत तवारीख में उस समय के इतिहास का सकलन किया जहाँगीर के समय में ‘तारीख-इ-खान-ए-जहानी’ का संकलन नेहमत-अल्लाह-हरबी ने किया था। जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुके-जहाँगीरी’ लिखी है, जिसमें जहाँगीर के शासनकाल की विस्तृत जानकारी मिलती है।
शाहजहाँ के शासनकाल में मुतामद खान ने इकबाल नाम-ए-जहाँगीरी’ नामक ग्रंथ लिखा, जिसमें जहाँगीर और नूरजहाँ के संबंधों तथा शेर अफगान के वध का विस्तृत विवरण है। किसी अन्य ऐतिहासिक ग्रंथ में शेर अफगान के वध का विवर उपलब्ध नहीं होता। अत: ‘इकबाल नाम-ए-जहाँगीरी’ ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। ख्वाजा कामगार हुसैनी मुगल दरबार से संबंध रखता था। उन्होंने शाहजहाँ तथा जहाँगीर दोनों के शासनकाल में काम किया। उसकी रचना ‘मासिर-ए-जहाँगीरी’ थी, जिसके लेखन में हुसैनी ने ‘तुजुके-ए-जहाँगीरी’ की सहायता ली। अकबर के शासनकाल में जिस तरह से अबुल फजल द्वारा ‘अकबरनामा’ की रचना की गई, इससे शाहजहाँ बहुत प्रभावित हुआ और उसने भी अपने शासनकाल के विजय में फारसी गद्य विशेष से लेखन करवाने का सोचा।
औरंगज़ेब के शासनकाल के समय भी इसका लेखन जारी रहा, जिसे सादिक खान और मोहम्मद सलेह कंबोह ने पूरा किया। यह शाहजहाँनामा के नाम से प्रसिद्ध है। औरंगजेब के शासनकाल में भी इतिहास-लेखन को प्रोत्साहन मिला। औरंगजेब मुहम्मद अमीन काजवानी को इतिहास-लेखन के लिए नियुक्त किया। औरंगजेब के समय समस्त सरकारी इतिहासकारों को बुलवाया गया और उनसे महत्त्वपूर्ण घटनाओं और समाचारपत्रों को एकत्रित करने को कहा गया। इसके बाद लेखन कार्य प्रारंभ हुआ, जो ‘आलमगीरनामा’ के नाम से 1568 ई० में पूर्ण हुआ। इसमें औरंगजेब को ईश्वर का विशिष्ट दैवी कृपापात्र बताया गया है। औरंगजेब राज्य के खर्चों को कम करना चाहता था। साथ ही इतिहासकारों के अतिशयोक्तिपूर्ण लेखन से वह तंग भी आ चुका था। अत: कुछ दिनों के लिए उसने लेखन पर रोक लगा दी। कुछ समय बाद औरंगजेब के पुत्र ने साफी मुस्तैद खान को लिखने का आदेश दिया गया।
मुगलकालीन शासकों ने इतिहास-लेखन को महत्त्व दिया। शासकों द्वारा इस शासनकाल में जिस सरकारी इतिहास-लेखन की परंपरा की शुरुआत हुई उसमें इतिहासकारों ने बड़ी मेहनत के साथ शासनकाल की हर घटना का संकलन किया। अत: मुग काल और मुगलकाल में इतिहासकारों को राजकीय संरक्षण प्रदान करने की प्रथा प्रचलित थी। जिसका सबसे अधिक दोष यह है कि शासकों की चापलूसी और चाटुकारिता को ध्यान में रखकर लेखन किया गया। साथ ही इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि इस समय के कई लेखक बडे विद्वान और ज्ञानी थे, जिन्होंने उस काल की घटनाओं को बड़ी सूक्ष्मता के साथ अध्ययन करके अपने ग्रंथों का लेखन किया।
Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE
For PDF copy of Solved Assignment
WhatsApp Us - 9113311883(Paid)
0 Comments
Please do not enter any Spam link in the comment box