किशोर शरीर की नई छवि के साथ-साथ उनकी उभरती हुई लैंगिकता के प्रति भी अनुकूलित होते हैं। शरीर की छवि एक मानसिक चित्रण है - हमारे शरीर के प्रकार के बारे में हमारी धारणा, हम कैसे दिखते हैं और हमारा शारीरिक आकर्षण। शारीरिक विकास उन्हें अपने शारीरिक साज-श्रृंगार में ज्यादा समय बिताने के लिए प्रेरित करता है। वे किशोर लड़कियां जो औरों से पहले परिपक्व होती हैं वे अपने बदलते शरीर के साथ सहज होने हेतु संघर्ष करती है और तानों इत्यादि का भी सामना कर सकती हैं। वे किशोर लड़के जो अपने साथियों की तुलना में बाद में परिपक्व होते हैं, वे नकारात्मक समकक्षी प्रतिक्रियाओं और धौंस से भी निपटते हैं। इस अवधि के दौरान विशेष रूप से शरीर से संबंधित नकारात्मक अनुभव मनोवैज्ञानिक स्थितियों जैसे शरीर की छवि के मुद्दे, खाने के विकार, लिंग या यौन पहचान के बारे में भीतरी शर्म की ओर ले जाते हैं।
पहचान के विकास का भी यह एक महत्वपूर्ण चरण है। किशोर विशिष्ट पहचान की आवश्यकता के प्रति सजग हो जाते हैं जबकि इसके साथ ही वह अपने हमउम्र साथियों द्वारा स्वीकार किए जाने के लिए संघर्ष करते हैं। बेहतर संज्ञानात्मक विकास का मतलब उपलब्ध विकल्पों और निर्णय लेने की बेहतर समझ है। जैसे कि ऊपर चर्चा की गई है इससे माता-पिता के साथ व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संबंध में संघर्ष होता है। किशोरावस्था के दौरान, विशेषकर शुरुआती दौर में, समकक्षी प्रभाव एक मनोसामाजिक मुद्दा है। किशोरावस्था में व्यक्ति अपने शौक इत्यादि पर धन और संसाधन खर्च करता है ताकि सामाजिकता बढ़ाने के साथ-साथ क्षमता बढ़ाई जा सके।
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