‘पाजेब’ एक चरित्रप्रधान कहानी है, जिसमें लम्बी-चौड़ी घटनाएँ नहीं घटतीं । घर में पाजेब का खो जाना और खोने को चोरी समझ लेना एक मामूली घटना है । इसलिए इस कहानी का कहानीपन घटना के वर्णन में निहित नहीं है, बल्कि बालक पात्रों के चरित्र-चित्रण द्वारा बाल-मनोविज्ञान की कुशल अभिव्यंजना में निहित है । चरित्रप्रधान कहानी की सफलता पात्रों के कुशल चरित्रांकन पर अवलम्बित है । जैनेन्द्र की इस कहानी के पात्रों के अनुकूल, अवसर के अनुकूल संवाद भी लेखक की कहानीकला के वैशिष्ट्रय हैं प्रायः संवाद लम्बे नहीं हैं। कहीं-कहीं एक-दो शब्दों से, ‘हाँ’ या ‘ना’ से और कभी मौन से काम चलाया गया है ।
आशुतोष और उसके पिता के बीच हुए संवाद ऐसे ही हैं । आशुतोष की माँ और छुन्नू की माँ के बीच हुए संवाद दोनों की संकीर्ण सोच को स्पष्ट करते हैं । वे पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं के द्योतक हैं । आशुतोष और उसके पिता के बीच हुई बातचीत देखिए । जब पिता को पत्नी बताती है कि आशुतोष ने छुन्नू को पाजेब दी थी और उसने उसे पतंग वाले को बेच दिया, तो वह पूछते हैं कि पतंगवाले ने कितनी इकन्नियां दी थी, तो वह कुछ नहीं बोलता, पिता क्रोध आता है –
बोलते क्यों नहीं? वह नहीं बोला । सुनते हो ! बोलते नहीं तो .....
आशुतोष डर गया और कुछ नहीं बोला । इस पर पिता ने उसके कान खींचे । तब भी वह बिना आंसू बहाये गुमसुम खड़ा रहा । अब भी नहीं बोले, तो ? वह डर के मारे पीला हो गया, लेकिन बोला नहीं, इस प्रसंग से स्पष्ट है कि जैनेन्द्र गहरी से गहरी बात को सरल शब्दों, छोटे-छोटे वाक्यों और संक्षिप्त संवादों के माध्यम से कह देते हैं । कथोपकथन की दृष्टि से ‘पाज़ेब’ सजीव रचना है । कहानी के संवाद स्वाभाविक, सशक्त, रोचक, नाटकीय, संक्षिप्त तथा पात्रानुकूल हैं एक अन्य उदाहरण देखिए,
जैनेन्द्र की कहानियों की भाषा, विशेषतः ‘पाजेब’ की भाषा को देखें, तो कहना होगा कि गहरी से गहरी बात को सरल शब्दों, छोटे-छोटे वाक्यों, संक्षिप्त संवादों और शहर के मध्यमवर्ग की बोलचाल की भाषा में कह देने की कला में वे माहिर हैं | उनकी बोधगम्य पैनी भाषा पाठकों के मन में उतरती जाती है । उनकी भाषा के पीछे उनकी दार्शनिकता, उनका अध्ययन और जीवन-जगत का व्यापक अनुभव बोलता है । इसलिए उनकी भाषा प्रायः विशेष अर्थगर्भित हो गई है, जो मुख्यार्थ का अतिक्रमण कर अन्य अर्थध्वनियों की ओर अग्रसर होने लगती है |
‘पाजेब’ कहानी द्वारा लेखक माता-पिता तथा अभिभावकों को सन्देश भी देते हैं-
कहानी पढ़कर यह मनोवैज्ञानिक तथ्य सामने आता है कि बच्चे प्रायः सच बोलते हैं, पर किसी दबाव या लालच के कारण वे झूठ का सहारा लेने पर विवश होते हैं । झूट बोलना उन की विवशता हो सकती है, स्वभाव नहीं । रास्ते से भाग आने के बाद आशुतोष को कोठरी में बंद कर दिया गया, जहाँ उसने मुक्ति की सांस ली और सो गया । पिता ने जब उसे एक रुपया देकर ललचाया, तो वह पतंग वाले के पास जाने को तैयार हुआ ।
इस प्रकार पिता द्वारा की गई सख्ती काम नहीं आई एक रुपए का लालच उसे पतंग वाले के पास जाने के लिए तैयार कर गया । इससे स्पष्ट होता है कि सख्त व्यवहार अथवा मारपीट से जिद्दी हो जाते हैं, प्यार-दुलार या लालच से उन्हें वांछित दिशा की ओर मोड़ा जा सकता है। वह बताते हैं कि माता-पिता को बालकों का मनोविज्ञान समझकर कोमल व्यवहार करना चाहिए ।
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