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रामकाव्य परंपरा

 राम काव्य परंपरा की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं :

राम का स्वरूप : राम-काव्य परंपरा के कवियों के राम महर्षि वाल्मीकि के राम से सर्वथा भिन्न हैं | इन कवियों ने राम को ईश्वर का अवतार स्वीकार किया है। उनका राम शिव, शक्ति व सौंदर्य का समन्वित रूप है। उनके अनुसार श्री राम दया के सागर, पतित-पावन, महान दानशील व विनयशील हैं | भक्ति भावना से उन्हें सहज ही प्राप्त किया जा सकता है । देवी-देवता भी उनके चरणों की वंदना करते हैं।

पृथ्वी को दुष्टों से रहित करने व संत जनों का उद्धार करने के लिए ही उन्होंने धरा पर अवतार लिया है। राम-कवि उन्हें लोकरक्षक व मर्यादा पुरुषोत्तम मानते हैं। 

क्ति भावना : राम काव्य परंपरा की सबसे प्रमुख विशेषता इन की भक्ति भावना है। इन कवियों की रचनाओं में नवधा भक्ति के उदाहरण मिलते हैं परंतु मुख्यत: इनकी रचनाओं में दास्य भक्ति का परिपाक हुआ है ।

दास्य भक्ति की प्रधानता होने पर भी अन्य प्रकार की भक्ति इनके काव्य में मिलती है । जैसे सीता में माधुर्य भाव की भक्ति है, सुग्रीव में सख्य भाव की भक्ति है, दशरथ, कौशल्या आदि में वात्सल्य भाव की भक्ति देखी जा सकती है।

मन्वय भावना : संपूर्ण राम काव्य अपनी समन्वय भावना के लिए प्रसिद्ध है। इसलिए इस काव्य को मानवतावादी काव्य भी कहा गया है। विशेषत: तुलसीदास जी के .. काव्य में समन्वय की विराट चेष्टा देखी जा सकती है। राम काव्य में समन्वय की भावना अनेक रूपों में दिखाई देती है ; यथा – निर्गुण और सगुण का समन्वय, ज्ञान, भक्ति और कर्म का समन्वय, ब्राह्मण और शूद्र का समन्वय, शास्त्रों व व्यवहार का समन्वय, परिवार व समाज का समन्वय, विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का समन्वय, भोग व त्याग का समन्वय आदि।

भले ही राम कवि श्री राम को अपना आराध्य देव स्वीकार करते हैं परंतु यह कवि अन्य देवी-देवताओं की आराधना भी करते हैं। स्वयं राम ने सेतुबंध के अवसर पर शिव की उपासना कीतुलसीदास जी ने ‘कृष्ण गीतावली’ की रचना भी की है और ‘रामचरितमानस’ की भी उन्होंने राम भक्ति को कृष्ण भक्ति के साथ जोड़ा। जब वे श्रीराम के सर्व व्यापक रूप का वर्णन करते हैं तो उनका सगुण राम निर्गुण ब्रह्म बन जाता है।

चरित्र चित्रण : राम काव्य परंपरा के कवियों ने रामकथा से जुड़े पात्रों का चरित्र चित्रण किया है। उन्होंने मुख्य रुप से श्री राम के चरित्र का चित्रण किया है। उनके राम ईश्वर के अवतार हैं । वह सर्वगुण संपन्न व सर्वशक्तिमान हैं | वह शिव, शक्ति व सौंदर्य का समन्वित रूप हैं । वह दया के सागर, पतित-पावन, दान शील व महान विनयशील हैं। देवी-देवता भी उनके चरणों की वंदना करते हैं। पृथ्वी को दुष्टों से रहित करने व संत जनों का उद्धार करने के लिए ही उन्होंने अवतार लिया है |

राम कवि उन्हें लोकरक्षक व मर्यादा पुरुषोत्तम मानते हैं। राम के अतिरिक्त लक्ष्मण, भरत, सीता, हनुमान आदि अन्य पात्रों के चरित्रों पर भी समुचित प्रकाश डाला गया है। इन सभी पात्रों के माध्यम से राम कवियों ने समाज के सामने कुछ आदर्श प्रस्तुत किए हैं जैसे राम अकेले ही आदर्श भाई, आदर्श पुत्र व आदर्श राजा का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

परंतु उनकी छवि एक आदर्श पति के रूप में लाख तर्क देने पर भी एक तर्कशील व्यक्ति के मन में नहीं उभर पाती | उनका व्यक्तित्व नारी समानता और पति-पत्नी के पारस्परिक विश्वास के सिद्धांतों पर खरा नहीं उतरता। भरत आदर्श भाई का, सीता आदर्श नारी व आदर्श पत्नी का, हनुमान आदर्श सेवक का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। यही कारण है कि राम काव्य पढ़कर पाठक एक आदर्श नागरिक बनने का संकल्प लेते हैं।

लोकमंगल की भावना : संपूर्ण राम काव्य लोकमंगल की भावना पर टिका है। संपूर्ण राम कथा लोक कल्याण की भावना से प्रेरित है। राम कवि समाज को मर्यादित, अनुशासित व व्यवस्थित देखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम रूप में चित्रित किया। 

उन्हें आदर्श व्यक्ति व आदर्श राजा के रूप में दिखाया | अन्य पात्र भी लोकमंगल की भावना लिए हुए हैं और जो पात्र लोक-अमंगल चाहते हैं, उनका राम कथा में नाश किया गया है। यही कारण है कि आज भी भक्तजन जब दुखों से छुटकारा पाना चाहते हैं व अपना कल्याण चाहते हैं तो वे राम कथा का पाठ करवाते हैं। यह भी एक सच्चाई है कि बिना आदर्श व नैतिक गुणों के लोक कल्याण संभव नहीं।

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