आतंकवाद को वर्गीकरण के आधार पर हिंसा के उपयोगी या उपयोगी की चेतावनी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसका चरित्र, उद्देश्य या संचालन प्रक्रिया सटीक ढंग से परिभाषित नहीं है। फिर भी क्षैतिज और उचं दोनों प्रकार के भय-अभिप्रेरण आतंकवाद के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। निष्ठुरता, मानवीय मूल्यों की अवहेलना, प्रचार की भूख आदि आतंकवाद के कुछ अन्य प्रमुख लक्षण हैं। यद्यपि आतंकवाद कोई नई घटना नहीं है।
इसके प्रभाव में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से तकनीकी विकास और प्रचार तंत्र के प्रति बढ़ती जागरूकता के परिणामस्वरूप वृद्धि हुई है। बंधक बनाना, अपहरण, बमबारी, हत्या, गोलीबारी आदि आतंकवाद के सामान्य लक्षण आतंकवाद राजनीतिक अथवा गुट-संबंधी और राज्य-प्रायोजित हो सकता है। राज्य-प्रायोजित आतंकवाद अधिक खतरनाक होता है, क्योंकि इसमें अवपीड़क एजेंसियाँ राज्य के अधीन रहती हैं। इतना ही नहीं, यह ‘परिणाम साधन से अधिक महत्त्वपूर्ण है’ के सिद्धांत पर आधारित होता है।
राजनीतिक या गुट-संबंधी आतंकवाद गैर-राज्यीय कर्ताओं के द्वारा प्रयोजित होता है तथा इसका केंद्रबिंदु आंतरिक होता है। फिर भी, चूँकि किसी स्थायी आतंकवादी अभियान को अस्त्र और धन की आपूर्ति की आवश्यकता रहती है, अधिकांश आतंकवादी संगठनों का अंतर्राष्ट्रीय पक्ष होता है। आतंकवाद से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लड़ने के लिए अभी तक कोई संगठित प्रयास नहीं हुआ है, यद्यपि राज्य/देश स्तर पर इस दिशा में प्रयास होते रहे हैं। “आतंकवाद” शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी क्रांति के उपरांत 1793-949 फ्रांस के आतंक के शासन के दौरान हुई। मूलतः क्रांति के नेताओं ने क्रांतिकारी बलों में से “देशद्रोहियों” को बाहर निकालने का प्रयास किया।
उन्होंने स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आतंक को सर्वोत्तम तरीका माना परंतु ज्यों-ज्यों क्रांति आगे बढ़ती गई इस शब्द को स्वयं क्रांतिकारी राज्य द्वारा राज्य हिंसा और गिलोटीन के साथ जोड़ा जाने लगा। माधुनिक समय के आतंकवाद का आरंभ 1972 में बर्लिन में इजराइल की ओलम्पिक टीम पर हमले से माना जाता है तब से लेकर आन तक हवाई जहाज अगवा किए गए हैं. विस्फोट किए गए हैं, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या जैसी हत्याएँ हुई हैं और सबसे अधिक दुस्साहसपूर्ण घटनाओं में से एक आतंकवादियों द्वारा हवाई जहाज से न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन का 11 सितम्बर 2001 का विनाश है।
आज अधिकांश आतंकवादी स्वयं को आतंकवादी कहलवाने की अपेक्षा अनियमित सैनिक बल तथा यहाँ तक कि स्वतंत्रता सेनानी कहलवाना पसंद करते हैं। पिछली शताब्दियों के आतंकवादियों के सशक्त आदर्शवादी सिद्धांत थे। परंपरागत दृष्टि से आतंकवादी समूह सशक्त धार्मिक, कट्टर तत्त्व होते हैं जोकि संघर्षकर्ताओं का मूल होता है परंतु यहाँ राज्य-प्रायोजित अथवा राज्य आतंकवाद और गैर-राज्य आतंकवाद के मध्य भेद करना अनिवार्य है। अमेरिका ने लंबे समय से लीबिया और ईरान (खोमेनी के शासन के दौराम) के आतंकी आक्रमणों को राज्य प्रायोजित आतंकवाद माना है।
वे राज्य जो आतंकवादी कार्यकलापों को पनपने का असर प्रदान करते हैं, वे इस श्रेणी में आते हैं। आज अधिकांश आतंकवादी गतिविधियाँ नृजातीय अलगाववादी आंदोलनों के रूप में कार्यरत हैं। कई मामलों में नृजातीय समूहों को अखिल धार्मिक संपर्कों से सहयोग मिलता है जो आवश्यक नहीं कि देश की सीमा के भीतर हो। कई मुस्लिम समूह इस श्रेणी में आते हैं जबकि आइरिश रिपब्लिकन आर्मी , लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम , कुर्दिश उग्रवादी , स्पेन का बास्क होमलैण्ड एण्ड लिबर्टी जातीय आंदोलन की श्रेणी में आते हैं।
(1) वामपंथी आतंकवाद-पूँजीवाद को नष्ट करके साम्यवादी अधवा समाजवादी शासन की स्थापना के लिए छेदी गई हिंसा (जैसे रेड आर्मी फेक्शन, जर्मन रेड ब्रिगेड, प्राइमा लिनिया, द वैदर अंडरग्राउंड/सिम्बियोनीस लिबरेशन आर्मी) को वामपंथी आतंकवाद का नाम दिया जाता है।
(2) दक्षिणपंथी आतंकवाद-उदारवादी लोकतांत्रिक सरकारों के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग।
(3) राज्य प्रायोजित आतंकवाद-इनमें राज्य या तो स्वयं अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आतंकवादी तरीके अपनाता है अथवा आतंकवादी समूहों को शरण अथवा सहायता के माध्यम से कई प्रकार से सहयोग देता है।
(4) राष्ट्रवादी-अलगाववादी आतंकवाद-अपने राष्ट्रीय/नृजातीय समूह के लिए अलग राज्य की स्थापना की इच्छा से हिंसा करने वाले (जैसे-आइरिश रिपब्लिकन आर्मी , लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम , कुर्दिश वर्कर्स पार्टी बास्क होमलैण्ड एण्ड लिबर्टी ऐसे कुछ आतंकवादी संगठन हैं।
(5) धार्मिक आतंकवाद-धार्मिक सिद्धांतों के लिए और उनके अनुसार दैवी इच्छा की प्राप्ति के उद्देश्य से हिंसा का प्रयोग करते हैं। वे आमूल-चूल परिवर्तन लाने के उद्देश्य से “शत्रु” की वृहत् श्रेणी को लक्ष्य बनाते हैं (जैसे ऑम शिन्क्रियो, अलकायदा, हिजबुल, हमास)।
नृजातीय आंदोलन पर आधारित आतंकवाद सदैव चर्चा का विषय रहा है। यदि नृजातीय आंदोलन का उद्देश्य आत्म-निर्णय है और उसकी प्राप्ति के लिए आतंकवादी तरीके प्रयोग में लाए जा रहे हैं, तो उन्हें आतंकवादी कहा जाएगा अथवा स्वतंत्रता सेनानी? आत्म-निर्णय के अधिकार की संकल्पना पर शैक्षिक साहित्य में कई सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं जो संबंध विच्छेद की नैतिकता को समझते हैं।
“उचित कारण” सिद्धांतों में निरंकुशता का विरोध करने और आत्म-निर्णय के अधिकार के मध्य सशक्त संबंध हैं और ऐसा करने से मानवाधिकार के ढाँचे में आत्म-निर्णय के अधिकार को सुदृढ़ता मिलती है। आतंकवाद से किस प्रकार बचाव किया जाए? लंबे समय से स्थापित लोकतांत्रिक देशों को आज इस वास्तविकता का सामना करना पड़ रहा है कि लोगों को आतंकवाद के प्रभाव से बचाने का मार्ग चुनने पर कुछ सीमा तक नागरिक स्वतंत्रता की कमी होना अनिवार्य है।
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