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परिचय प्रेम का प्रवर्तक है। बिना परिचय के प्रेम नहीं हो सकता। यदि देश-प्रेम के लिए हृदय में जगह करनी है तो देश के स्वरूप से परिचित और अभ्यस्त हो जाओ।

 प्रस्तुत गद्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध ‘लोभ और प्रीति’ से लिया गया है। इस गद्य में प्रेम के उदात्त रूप का चित्रण है। इसमें बताया गया है कि सच्चे प्रेम के स्वरूप की चर्चा की गई है।

व्याख्या :- लोभ और प्रीति ऐसे भाव है, जिसका संबंध मनुष्य के जीवन व्यवहार से बहुत गहरा है। हृदयगत भावनाओं की अभिव्यक्ति ही प्रेम है, प्रेमी ही प्रेम करता है। यह प्रेम ऐसा होता है कि प्रेमी ही केवल देना चाहता है बदले में कुछ लेना नहीं चाहता है।

प्रेम का उदात्त रूप है- प्रेमी युगल एक दूसरे से प्रेम करना जानता है या फिर एक ही प्रेम करे दूसरा भी उतना ही प्रेम करे। प्रिय की उदासीनता, उपेक्षा, तिरस्कार को जानते हुए भी प्रेमी से काफी प्रेम करता है।

जब तक ऐसे प्रेम के साथ तुष्टि अंतर्तुष्टि को क्षोभ लगा दिखाई पड़ता है तभी प्रेम का उत्कर्ष रूप प्रकट होता है। यदि प्रेमी प्रिय की उदासीनता और उत्प्रेक्षा को देखकर परेशान होता है तो यह प्रेम का रूप है।

कठोर और परेशानी के बाद भी प्रेम का रूप निखरता है। यही प्रेम का अत्यंत निखरा हुआ निर्मल और विशुद्ध रूप दिखाई पड़ता है।

विशेष :– (1) प्रेम का निस्वार्थ रूप ।
(2) मनोविज्ञान का रूप निबंध में।

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