‘मैला आँचल’ आँचलिक उपन्यास होते हुए भी अंचल विशेष के समाज का समग्र चित्र प्रस्तुत करता है । इस दृष्टि से इसे सामाजिक उपन्यास भी कह सकते हैं । समाज की संरचना एवं सामाजिक सम्बन्ध :- मेरीगंज छोटा-सा गाँव है, परन्तु उसमें बारह वर्गों के लोग रहते हैं। प्रत्येक जाति का अपना मोहल्ला है, जिसे टोली कहते हैं । गाँव में तीन जातियां प्रमुख हैं – राजपूत, कायस्थ और यादव । जाति के नाम पर मुहल्लों के नाम रखे गये हैं जैसे कायस्थ टोली या मासिक टोली, राजपूत टोली, यादव टोली, ततया टोली, गुमर टोली । इन जातियों और उपजातियों से लोगों में परस्पर ईर्ष्या-द्वेष, वैमनस्य, मनमुटाव-झगड़े, एक-दूसरे को नीचा दिखाने की मनोवृत्ति है ।
ऊँच-नीच, छूआछूत की भावना इनमें दिलो-दिमाग पर इस कदर छायी हुई है कि गाँव वालों के बीच सौहार्द एवं सहयोग न होकर उनके बीच की दरारें बढ़ती जाती हैं । भंडारे के अवसर पर राजपूत टोली वाले के साथ ब्राह्मण टोली के लोग भोजन करने से मना कर देते हैं । उनके लिए अलग से प्रबंध किया जाता है । सिपैरिया टोली के लोग ग्वाला टोली के साथ एक पंगत में खाने से इंकार कर देते हैं । कुछ लोग धमकी देते हैं कि यदि भंडारे इन्तजाम बालदेव करेगा, तो भंडारा मंछुल होगा |
यदि विद्यापति के इस योग में प्रेम की मदिरा पिये हुए लोगों के बीच विवाहेतर सम्बन्धों को न अनैतिक पाया जाता है, न उन पर कोई विशेष ध्यान देता है । महंत सेवादास भाट मठ की कोठारिन लवली बालीचरण और चरखा सेन्टर की मास्टरनी मंगलादेवी, पुलिया और खलासी, रामदास और रामपियारी बालदेव और लक्ष्मी, कमला और प्रशान्त के सम्बन्ध विवाहेतर सम्बन्ध हैं | कमला तो विवाह से पूर्व ही गर्भवती हो जाती है, पर गाँव में कोई तूफान नहीं आता । यहाँ के समाज में स्त्री की दशा सदा की तरह शोचनीय और दयनीय है । उसका यौन-शोषण भी होता है और आर्थिक शोषण भी। अंधा और बूढ़ा महंत सेवादास अबोध किशोरी लक्ष्मी का यौन शोषण करता है और फुलिया के माँ-बाप अपनी विधवा बेटी का पुनर्विवाह इसलिये नहीं करते, क्योंकि उसका शरीर नोचकर प्राप्त धन से ही उनकी गृहस्थ की गाड़ी चलती है।
छोटी-छोटी बातों को लेकर औरतों में कहा-सुनी, गाली-गलौज आम बात है । रमजूदास की स्त्री और फुलिया की माँ के बीच का झगड़ा इस प्रकार के झगड़ों का स्वरूप बताता है। अंचल निवासियों की आधिदैविक चेतना :- आंचलिक उपन्यास में अनपढ़, अज्ञानी, अंधविश्वासी लोगों का चित्रण होता है । अतः लेखक अंचल में व्याप्त अंधविश्वासों, रूढ़ियों, शगुन-अपशगुन, जादू-टोना, भूत-प्रेत आदि में विश्वास के चित्र भी प्रस्तुत करता है । मेरीगंज के लोग देवी-देवताओं के कोप एवं कृपा में विश्वास करते हैं । प्रातःकाल वे कालीथान की ओर मुंह कर काली माँ को प्रणाम करते हैं । उनका विश्वास है कि जंगल में भूत-प्रेत रहते हैं । ततया टोली का नन्दलाल एक बार जंगल में गया था ।
वहाँ बगुले की तरह सफेद प्रेतनी ने मिलकर साँप के कोड़ों से उसकी इतनी पिटाई की कि वह कुछ क्षणों में ही वहीं ढेर हो गया । जहालत और अंधविश्वासों के कारण ही बुढ़ापे भी सुन्दर लगने वाली तथा सबके प्रति स्नेह लुटाने वाली पारवती मौसी को डाइन मानकर उसमें साथ क्रूर और अपमानजनक व्यवहार कि जाता है। वे नदियों को माँ कहते हैं, क्योंकि वे उनके खेतों के लिए जल तो देती हैं, आवश्यकता पड़ने पर नदी की पूजा-अर्चना करने वालों की अनेक प्रकार से सहायता करती हैं। यदि गृह-स्वामी नदी में स्नान करता है, गले में कपड़े का खूट डालकर कमला मैया को पान-सुपारी चढ़ाता है, तो कमला मैया चांदी के बरतन देकर गृह-स्वामी के अनुष्ठान में, शादी-ब्याह या श्राद्ध के योग में सहायता करती हैं ।
अंधविश्वासी खलाजी का विश्वास है कि डॉक्टर लोग रोग फैलाते हैं । सुईं घोंपकर देह में जहर दे देते हैं, उनके द्वारा कुओं में दवा डालने से और उस पानी पीने वालों को हैजे के प्रकोप का शिकार बनना पड़ता है – गाँव का गाँव हैजे से समाप्त हो जाता है। काला आजार फैलने का कारण भी वह डॉक्टरों को बताते हैं और आरोप लगाते हैं कि विलायती दवाओं में गाय का खून मिलाकर उन्हें धर्मभ्रष्ट करते हैं । धार्मिक वातावरण – मेरीगंज का यह धार्मिक स्थल तो है ही, उसमें सम्पत्ति का आकर्षण भी है । डेरे का महंत नौ सौ बीघे की जमीन का मालिक भी हो जाता है ।
अतः यह सम्पत्ति का क्रीड़ा-स्थल और विकृतियों की पूर्ति का माध्यम बन गया है । मेरीगंज के लोग गाँव में स्थापित मट तथा उसमें अधिपति महंत में पूरी श्रद्धा रखते हैं । महंत द्वारा आयोजित विभिन्न अनुष्ठानों में भाग लेते हैं । कबीर पंथी मठ होने वाले धार्मिक क्रिया-कलाप के चित्र-प्रातःकाल प्रातमक शबद-गायन खंजड़ी बजाकर कीर्तन, प्रातकी के बाद सत्संग होता है, जिसमें मट के सब लोगों का भाग लेना अनिवार्य है । सत्संग में महंत जी उपस्थित लोगों को उपदेश देते हैं, उनके प्रश्नों के उत्तर देते हैं ।
राजनीतिक चेतना – मेरीगंज में सभी राजनीतिक दल सक्रिय हैं | बावनदास और बालदेव कांग्रेसी है, गांधीजी के भक्त हैं, कालीचरण समाजवादी है, समाजवादी विचारों से विद्रोह की भावना जगाता है, अन्याय-अत्याचार का विरोध करता है, नवयुवकों को क्रांति करने का आह्वा देता है । उसी के प्रयत्नों से मठ में नागाबाबा का समर्थन प्राप्त प्रत्याशी नरसिंह दास मठाधीश न होकर रामराज मठ का महंत बनता उसी के प्रयत्नों से खलाजी और फुलिया का चुभौना कराया जाता है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं की चहल-पहल का भी वर्णन है । चुनावों, उनको जीतने के लिए अपनाये गए हथकंडों और चुनाव जीतने के बाद एम.एल.ए. बने राजनेताओं के कुकर्मों का पर्दाफाश किया गया है ।
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