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'ठाकुर का कुआँ कहानी का महत्व।

 प्रेमचन्द हिन्दी के प्रथम कथा लेखक हैं जिन्होंने दलितों, अछूत कही जाने वाली जाति की समस्याओं पर गहराई से विचार कर उनके जीवन की त्रासदी का मार्मिक चित्रण किया है । उपन्यासों में ‘कर्मभूमि’ तथा कहानियों के ‘सद्गति’, ‘दूध का दाम’, ‘कफन’ और ‘ठाकुर का कुआं’ में दलित समाज के उत्पीड़न, शोषण, अपमान, तिरस्कार तथा गरीबी के कारण उनकी दीन-हीन स्थिति के चित्र प्रस्तुत किये हैं। ‘ठाकुर का कुआँ’ में उन्होंने बताया है कि जाति-प्रथा, ऊँच-नीच के भेदभाव, छूआछूत के कारण अछूत कैसा नारकीय जीवन जी रहे हैं। 

प्रेमचन्द इस कटु सत्य को उजागर करते हैं कि जीवन की बुनियादी जरूरत और प्राकृतिक सम्पदा जल तक के लिए वे सवर्णों की दया पर निर्भर हैं और सवर्ण इतने हृदयहीन तथा अमानवीय हैं कि वे उन्हें इस प्राकृतिक सम्पदा, जो ईश्वर ने वायु की तरह सबको निःशुल्क दी है, से भी वंचित रखते हैं, फलतः अछूत परिवार को अभाव, अपमान और भयग्रस्त और असुरक्षा का जीवन बिताना पड़ता है । परिवार में दो सदस्य हैं – पति जोखू तथा पत्नी गंगी । अछूतों के लिए गाँव की बस्ती से दूर कुएँ का पानी किसी जानवर की .. गिरने से बदबूदार तथा अपेय बन जाता है। रोगी और दुर्बल शरीर जोखू से वह बदबूदार पानी नहीं पिया जाता | अतः गंगी उसके लिए गांव में ठाकुर के कुएँ से पानी लाने का प्रस्ताव करती है ।

गंगी के सोच, साहस, प्रयास और अन्त में भयाक्रान्त होकर कुएं से भागने और घर लौटकर पति को दुर्गन्धपूर्ण पानी पीते देखने से कथानक का निर्माण होता है । कहानी पानी की समस्या को लेकर गहन चिन्ता में डूबे अछूत पति-पत्नी जोखू और गंगी को लेकर शुरू होती है । जोखू और गंगी स्वच्छ पानी की समस्या से जूझ रहे हैं । ‘जोखू ने लोटा मुंह से लगाया तो पानी में सख्त बदबू आयी । “जोखू बोला – यह कैसा पानी है, मारे बास के पिया नहीं जाता ।” लम्बे समय से बीमार जोखू प्यास के मारे तड़प रहा था। गंगी प्रतिदिन शाम को पानी भर लिया करती थी। कुआं दूर था, बार-बार जाना मुश्किल था । वह अन्य गरीब सवर्ण महिलाओं के कुएँ से पानी नहीं भर सकती। अछूतों को सवर्णों के कुएँ पर चढ़ने का अधिकार ही नहीं था ।

जब गंगी ठाकुर के कुएं से पानी लाने की बात कहती है, तो जोखू उसे बरजता है “ठाकुर के कुएँ पर कौन चढ़ने देगा दूर से लोग डॉट बताएँगे । ‘साहू का कुआँ गाँव के उस सिरे पर है, परन्तु वहाँ भी कौन पानी भरने देगा ? और कोई कुआं गाँव में है नहीं ।’

जोखू के इस बयान से यह साफ पता चलता है कि अछूतों की आर्थिक दशा ऐसी नहीं थी कि वे अपने लिए कुआं खुदवा सकें, मजबूरन सवर्णों के आगे पानी के लिए गिड़गिड़ाने के सिवाए उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है । गंगी बोली- ‘यह पानी कैसे पियोगे ? न जाने कौन जानवर मरा है । कुएँ से मैं साफ पानी लाये देती हूँ ।’ जोखू बहुत आश्चर्य में पड़ गया, लेकिन दूसरा पानी कहां से आएगा’ गंगी कहती है “दो-दो कुएँ हैं, एक लोटा पानी न भरने देंगे ।” जोखू ने उस सामान्य यथार्थ की ओर संकेत किया, जिस पर सबसे पहले प्रेमचंद की नजर पड़ती थी। हाथ-पांव तुड़वा आयेगी और कुछ न होगा बैठ चुपके से ऐसा क्यों होगा ? क्योंकि ‘ब्राह्मण देवता आशीर्वाद देंगे, ठाकुर लाती मारेंगे और साहुजी एक के पांच करने में लगे रहेंगे ।

गरीबों का दर्द कौन समझता है ? दर्द छोड़ें यहाँ तो मर भी जाएं तो दुआर पर झांकने तक नहीं आता। कंधा देना तो बड़ी बात है।  प्रश्न उठता है कि सवर्ण जातियाँ अछूतों के प्रति इस हद तक असंवेदनशील क्यों ह, उनके दुःख में शामिल होने, उनकी गरीबी को हटाने या उनकी मृत्यु पर भी कोई क्यों नहीं साथ आता ? प्रेमचंद ने जोखू व गंगी के द्वारा इन प्रश्नों को पहली बार रचना के माध्यम से उठाकर अछूत जीवन की वास्तविकता से परिचित कराया है । पति के द्वारा सावधान किये जाने तथा दंड दिये जाने की चेतावनी के बावजूद गंगी ठाकुर के कुएँ से पानी भरने चल पड़ती है। गंगी जानती है कि उसे किसी ने देख लिया, तो उसका बचना मुश्किल है ।

एक घड़ा पानी की कीमत जान गंवाकर चुकानी पड़ सकती है। उस स्थिति की कोई सवर्ण स्त्री क्या कल्पना कर सकती है ? कि पानी जो जीवन की जरूरत है, उसके लिए अछूतों को इस कदर बेबसी का सामना क्यों करना पड़े ? गंगी अभी कुएँ के पास तक भी नहीं पहुंची थी, पेड़ों की आड़ में छुपकर वह ठाकुर का आंगन खाली हो जाने का इंतजार करने लगी । कुछ देर बाद गंगी पेड़ की छाया से निकली और कुएँ के जगत के पास आयी, बेफिक्रे चले गये थे । ठाकुर भी दरवाजा बंद करके अंदर आंगन में सोने जा रहे थे । गंगी ने सुख की सांस ली किसी तरह मैदान तो साफ हुआ। गंगी को इतनी सावधानी की जरूरत इसलिए पड़ रही थी क्योंकि अछूत स्त्री ठाकुर या किसी सवर्ण के कुएँ पर चढ़कर पानी भरने का साहस कर रही थी।

किसी अछूत द्वारा नियम को तोड़ने पर हिन्दू धर्म में इस अपराध के लिए बड़ी सख्त सजा का प्रावधान है। ‘उसने रस्सी का फंदा घड़े में डाला । दाएं-बाएँ चौकन्नी दृष्टि से देखा, जैसे कोई सिपाही रात को शु के किले में सूराख कर रहा हो । अंत में देवताओं को याद करके उसने कलेजा मजबूत किया और घड़ा कुएँ में डाल दिया । घड़े को पानी में डालकर उसने बहुत ही आहिस्ते से उसे ऊपर खींचा, जिससे कोई आवाज न हो और ठाकुर या अन्य कोई घर सदस्य जाग न जाए । गंगी के इस संकल्प और मनोभाव को प्रेमचंद इन शब्दों में अभिव्यक्त करते है, ‘घड़े ने पानी में गोता लगाया ।

गंगी द्वारा ली गई सावधानी, दिखाई गई तेजी और दृढ़ संकल्प का नतीजा कुछ नहीं निकला । ज्योंही ‘गंगी झुकी कि घड़े को पकड़कर जगत पर रखे कि एकाएक ठाकुर साहब का दरवाजा खुल गया । प्रेमचंद ने लिखा है ‘शेर का मुंह इससे अधिक भयानक न होगा।’ कहानी के अन्त में स्पष्ट है कि दलितों की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति ऐसी है कि उन्हें सवर्णों के अत्याचार, शोषण, उत्पीड़न सहने पड़ते हैं | इस सामाजिक व्यवस्था की सच्चाई को प्रेमचंद ने नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया है । उनका उद्देश्य यही है कि गंगी के शोषण की तीव्रता को पाठक वर्ग समझ सकें । गंगी अस्पृश्य वर्ग की स्त्री है और उसका कुएँ को छूना भयंकर अपराध में शामिल है। गंगी अपमानबोध, असुरक्षितता, अनिश्चितता, जातिगत उत्पीड़न की शिकार है, उसके मानवीय अधिकारों का हनन हो रहा है, क्योंकि वह अछूत है।

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