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सार्वजनिक प्रणाली प्रबंधन में नई प्रौद्योगिकियों की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।

 सूचना प्रौद्योगिकी, वैश्विक दबाव, आंतरिक कुशलता की आवश्यकता एवं अन्दरूनी मामलों में उत्पादकता समस्त राज्यों एवं लोक प्रशासन के ढांचे को परिवर्तित करते हैं।

तीसरे विश्व के देशों ने वैश्विक दबाव एवं अन्दरूनी दबावों के प्रति सार्वजनिक व्यवस्था में विस्तृत सुधार किए हैं। ये सुधार निम्नलिखित बातों पर ध्यान आकर्षित करते हैं

1. प्रशासकीय क्षमता एवं प्रशासकीय व्यवस्था में सुचना प्रौद्योगिकी के प्रयोग द्वारा सांगठनिक कुशलता को बढ़ावा देना।

2. लोगों के कार्य निष्पादन में सुधार करना।

3. सरकार एवं व्यापारिक कार्यों के लेन-देन में पारदर्शिता को बढ़ावा देना।

4. सूचना प्रसार द्वारा लोगों को मजबूत बनाना। 

उपर्युक्त सुधार के उपाय सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयोग नव-लोक प्रबंधन द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं। नव-लोक प्रबंधन एवं मुशासन परस्पर अत्यधिक कुशल सार्वजनिक व्यवस्था के कार्यों में सहयोग प्रदान करते हैं।

सूचना एवं प्रसारण प्रौद्योगिकी का लक्ष्य सरकार में कुशलता, खुलापन, अनुक्रियाशीलता एवं सहयोग प्रदान करना है। सूचना एवं संचार तकनीक के प्रयोग का प्रमुख लक्ष्य शासन में तीव्रता लाना है। कुछ प्रमुख लक्ष्य इस प्रकार हैं

1. सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के प्रति मानव संसाधन का निरन्तर विकास करना।

2. विकास में स्थानीय समूहों और संघों को सम्मिलित करना।

3. नागरिक प्रशासन अंतरापृष्ठ और लोक सेवा निष्पादन को विकसित करना।

4. विकास कार्यक्रमों के नियोजन, क्रियान्वयन और निगरानी के लिए प्रशासन को निर्णय निवेश प्रदान करना।

5. विकास के पहलुओं पर सार्वजनिक बहस को प्राथमिकता देना।

6. नागरिकों को सूचना एवं ज्ञान के लिए सशक्त बनाना।

7. परियोजना, बहु सेवा केन्द्र, सूचना एवं संचार तकनीक के प्रयोग के नियोजन एवं क्रियान्वयन में लगातार प्रशिक्षण।

भारत में अनेक क्षेत्रों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के विकास के लिए अनेक कदम उठाए जा रहे हैं। सूचना तकनीक अधिनियम 2000, साइबर स्पेस को संचालित करने और विभिन्न साइबर अपराध के विरुद्ध दंडों और अपराधों की परिभाषा के लिए हर संभव प्रयास कर चुका है। भारत सरकार द्वारा सूचना तकनीक और सॉफ्टवेयर विकास समिति पर सरकारी कुशलता बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का निर्माण किया गया है।

संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और ई-सरकार के केन्द्र सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के विकास के लिए अहम भूमिका निभा रहे हैं। भारत सरकार और राज्य सरकारों ने सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी में निर्माणात्मक भूमिका निभाई है।

इलेक्ट्रॉनिक शासन — विगत दशकों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी ने सरकारी सेवाओं को धीमी गति से विकसित किया है। यहाँ शासन का एक प्रकार है जो जनता को इलेक्ट्रॉनिक सेवाओं को मुहैया कराने में सम्मिलित प्रक्रियाओं से मिलकर बनता है। अन्त में उद्देश्यों की कार्यशैली को सरल बनाना, लोक सहभागिता को योग्य बनाना, डाक संचार एवं संजाल द्वारा शासन में सुधार लाना लक्ष्य रहा है। ई-शासन के महत्त्वपूर्ण प्रयासों के कारण सूचना प्रौद्योगिकी के विभिन्न उपकरणों के रूप में प्रयोग हो रहे हैं,

जैसे-1. ई-मेल,

2. संजाल वेबसाइट प्रकाशन,

3. ऑनलाइन प्रक्रियात्मक लेन देन.

4. वायरलेस सप्लीकेशन प्रोगकॉल का प्रयोग एवं प्रकाशन,

5. लघु संदेश सेवा,

6. संजाल का विकास एवं प्रयोग,

7. नागरिकों की पहुंच को प्रोत्साहना

ई-शासन सार्वजनिक व्यवस्था में प्रौद्योगिकी का प्रयोग विशेषतः वेब आधारित संजाल प्रयोगों की पहुंच और नागरिकों, कर्मचारियों को सार्वजनिक सेवाओं का निष्पादन करने के लिए किया जाता है। सूचना एवं संचार तकनीक के प्रयोग के साथ, ई-शासन की परियोजनाओं ने सरकारी उपकरणों के बहु संचार नेटवर्क को बढ़ावा दिया है।

नागरिकों एवं व्यापारियों के लिए कुशल प्रशासनिक वातावरण का निर्माण किया है। सरकारी सेवाओं की निष्पादन प्रक्रिया को सुधारा है। सार्वजनिक व्यवस्था में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के संभावित परिणाम निम्नलिखित हैं

1. सरकार के विभिन्न अंगों के मध्य देश की राज्य या स्थानीय सरकारों और देशों के बीच वेबयुक्त शासन द्वारा बेहतर अंत:क्रियाएं और संबंध

2. लोकसेवकों के निष्पादन सहित सरकार के कार्यकारी कार्यों की कुशलता और प्रभाव में वृद्धि।

3. नागरिकों एवं राज्य के बीच संबंधों में मौलिक परिवर्तन एवं विकास ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत बनाना।

4. नागरिकों एवं व्यापार में शासन की पारदर्शिता, शासन द्वारा एकत्र और उत्पन्न सूचनाओं की पहुंच में वृद्धि करना। 

ई-शासन सरकारी संचालन में तेजी से बदलाव लाता है और कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधानपालिका के दायित्वों को एक नया रूप प्रदान करता है। सूचना प्रौद्योगिकी में विकास की दृष्टि से सरकारी विभागों की वेबसाइर गतिशील सूचनाओं और निर्धारित लेन-देन जैसी अत्यधिक उन्नतशील सेवाओं को मुहैया कराने का प्रयास करती है।

भारत में ई-शासन का प्रयोग केन्द्र और राज्य सरकारों दोनों द्वारा किया जा रहा है। ई-शासन की परियोजनाओं के आगमन और लोगों को बेहतर सेवा निष्पादन के लिए सरकार द्वारा सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को जोर-शोर से क्रियान्वित करने की आवश्यकता है। यह शासन को पुनर्निर्मित करता है। डाटा संचार की लागत में कमी, इलेक्ट्रॉनिक संचार के साथ-साथ अंतर संचालन का विस्तृत क्षेत्र, स्तरीय नेटवर्किंग प्रोटोकॉल द्वारा एकीकृत सरकार को लाभ पहुंचाता है।

डिजिटल शासन — डिजिटल शासन ई-शासन के मॉडलों का एक प्रकार है। डिजिटल शासन व्यवस्था संजाल का प्रयोग जनता और सरकार को जोड़ने के लिए एक साधन के रूप में करती है। प्रभु (2004) विकासशील देशों में ई-शासन के छः प्रारूपों को प्रस्तुत करते हैं। जो इस प्रकार हैं

प्रसारण/वृहत् प्रसार प्रारूप — यह प्रारूप सूचनाओं पर आधारित है। इस प्रारूप के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि यह सूचित नागरिक शासन प्रणाली को अच्छी प्रकार से समझ सकता है और उसको सचित इच्छाओं को मजबूत बनाने के लिए अपने अधिकारों और दायित्वों का प्रयोग कर सकता है। सरकारी विभाग सार्वजनिक रूप से जनता को सूचना देने के लिए इस प्रारूप को अपना रहे हैं।

त्त्वपूर्ण प्रवाह प्रारूप — यह प्रारूप प्रमुख निर्धारित ऑडिएन्स के मूल्यों के सूचना प्रसारण पर आधारित है। यह परिवर्तित मीडिया और सूचना एवं संचार तकनीक के माध्यम से जनता के विस्तृत अधिकार क्षेत्रों को प्रसारित करता है। इस प्रारूप की शक्ति सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की आधुनिक विशेषताओं में है, जो दूरी एवं समय को कम करती है।

तुलनात्मक विश्लेषण प्रारूप — यहां प्रास्य सार्वजनिक अथवा निजी अधिकार क्षेत्र एवं इसकी तुलना में वास्तविक सूचनाओं की उपस्थिति को दर्शाता है और यह सामरिक ज्ञान एवं तर्कों को भी संचालित करता है।

इस प्रारूप की वास्तविक शक्ति सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की क्षमता में विद्यमान रहती है। जो सूचना की पुताप्ति के तरीकों एवं भेजने की पद्धति को सभी भौगोलिक बाधाओं से बचाता है। विकासशील देश इस प्रारूप का प्रयोग कुशलतापूर्वक अपने हित लाभ के लिए करते हैं।

संग्रह एवं लॉबीइंग प्रारूप –– यह अधिकार डिजिटल शाला का प्रारूप है और यह विकासशील देशों में नागरिकों के सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय निर्माण प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है। यह प्रारूप विश्व भर में वास्तविक सहयोगियों की मजबूतीकरण की क्रियाओं को सशक्त बनाने के लिए नियोजित प्रवाहों पर आधारित है। 

यह प्रारूप सामूहिक सहयोग द्वारा भौगोलिक, सांस्थानिक और प्रशासनिक समस्याओं का समाधान करता है। यह प्रारूप नीतिगत मुद्दों एवं चर्चा में व्यक्तिगत और साम्प्रदायिक सहभागिता के क्षेत्र को बढ़ावा देता है।

पारस्परिक सेवा प्रारूप –– यह प्रारूप सूचना एव संचार तकनीक की विस्तृत सहभागिता, सरकार में पारदर्शिता के साथ-साथ निर्णय निर्माण में समय और लागत में बचत को प्रयोग में लाता है।

यह प्रारूप नागरिकों को प्रत्यक्ष रूप से प्रदान की जाने वाली सेवाओं को सुलभ बनाता है। यह प्रारूप पारस्परिक लक्ष्यों के लिए निम्नलिखित विधियों को अपनाता है

(क) राजस्व संग्रह, करों की अदायगी, सरकारी कार्यविधि, अदायगी इत्यादि जैसे शासन कार्यों को ऑनलाइन करना।

(ख) नीति-निर्माताओं के साथ पारस्परिक माध्यमों को स्थापित करना, जैसे-वीडियो कांफ्रेंसिंग और ऑनलाइन संवाद।

(ग) संबंधित शासन प्रारूप के साथ नागरिकों द्वारा शिकायतों के आवेदन, प्रतिपुष्टि और रिपोर्ट को भरना।

(घ) नीतियों एवं कानूनी ढांचे को बनाने से पूर्व चर्चा/विचार मत को गंभीर विषयों पर संचालित करना।

ई-शासन परिपक्वता प्रारूप — यह प्रारूप सूचना और संचार प्रौद्योगिकी व्यवस्था में अनुक्रियाशीलता एवं उत्तरदायित्व को एक तरफ तथा दूसरी ओर व्यवस्था में आम नागरिक को सही समय पर सही सूचना मुहैया कराने के लिए सशक्त प्रयास करता है। 

यह प्रारूप एक सेवा दृष्टिकोण पर आधारित है। यह प्रारूप इच्छित परिपक्वता के लिए उन विषयों की जानकारी देता है, जिनके माध्यम से निर्धारित स्तरों को प्राप्त किया जा सकता है।

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