चीनी डायस्पोरा-चीनी का डायस्पोरा विश्व के सबसे बड़े डायस्पोराओं में से एक है। संख्या और विस्तार की दृष्टि से वह अन्य सभी समुदायों से अधिक है जो अपने मूल स्थान अथवा मातृभूमि से बाहर चले गए। एक आकलन के अनुसार 3.3 करोड़ चीनी प्रवास के लिए चले गए हैं जिसमें हांगकांग, मकाउ और ताईवान के प्रवासी भी शामिल हैं।
पूर्व काल में चीनी डायस्पोरा- चीनी लोगों का विदेशों में प्रवास का लम्बा इतिहास रहा है। सबसे उल्लेखनीय प्रवास मिंग राजवंश के समय हुआ था। इसके अधिकांश प्रवासी हान चीनी थे। प्रवासन की अगली लहर युआन राजवंश के दौरान आई जब शासकों ने व्यापार उपनिवेश स्थापित करने में रुचि दिखाई। 14वीं शताब्दी तक कम्बोडिया, जावा, सुमात्रा और सिंगापुर में चीनी बस्तियाँ बस गईं थीं।
15वीं शताब्दी में, चीनियों ने थाईलैण्ड में और 16वीं शताब्दी में फिलिपिन्स में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए थे। 17वीं शताब्दी में पश्चिमी जगत के देशों में श्रमिकों की माँग थी जिससे चीनी उन देशों में चले गए। फ्रांसीसी और अंग्रेजों द्वारा एशिया में उपनिवेशों की स्थापना से भी प्रवासन में वृद्धि हुई। 1868-1939 के दौरान लगभग 63 लाख चीनी केवल हांगकांग से ही चले गए।
इस समय वे मख्य रूप से करारबद्ध पुरुष मजदूरों के रूप में कार्य करते थे। कुछ चीनियों ने आस्ट्रेलिया के स्वर्ण क्षेत्रों, उत्तरी अमेरीका के पश्चिमी तट और न्यूजीलैण्ड की ओर रुख किया। अधिकांश चीनियों को हाशिए पर रखने की परिणति 1880 के दशक से संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड में वास्तव में उनके प्रवेश निषेध से हुई।
इसका कारण नस्लीय कानून था। अत: 19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों से 1940 के दशक तक, कुछ उल्लेखनीय अन्तरालों के साथ चीन से प्रवासन मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया के यूरोपीय उपनिवेशों की ओर था।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद प्रवासन- चीनी गणतंत्र की स्थापना के पश्चात अधिकांश प्रवासन चीन के परिधीय क्षेत्रों ताइवान, हांगकांग, मलेशिया और इंडोनेशिया से हुआ। इन आरम्भिक प्रवासियों में से अधिकांश अकुशल मजदूर थे, जो पश्चिमी यूरोप विशेष रूप से ब्रिटेन जा रहे थे,
लेकिन 1960 और 1970 के दशक में अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड की राह खुल जाने से एक अलग प्रकार का प्रवास शुरू हुआ। कुशल, शिक्षित पेशेवर और उनके परिवारों का प्रवासन होने लगा।
विशेष रूप से 1979 के सुधारों के बाद चीन ने अपनी अन्तः- उन्मुखी नीतियों को समाप्त कर दिया। फलतः कर्मकारों और चीनी छात्रों ने पश्चिमी देशों की यात्रा की।
1980 में कनाडा में चीन के 215 विदेशी छात्रों की संख्या 2001 में बढ़कर 11,138 हो गई। संयुक्त राज्य में 2002-03 में लगभग 64,757 छात्र अध्ययनरत थे। जापान में वर्ष 2000 में 64,000 विदेशी छात्रों में लगभग आधे चीनी थे।
पहचान :- घर से आत्मसातीकरण (घुलना-मिलना) और संबंध-प्रवासी चीनी अपने आत्मसातीकरण की मात्रा, परिवेशी समुदायों से अपने परस्पर संबंध और चीन के साथ अपने संबंध में बहुत विविध थे। थाईलैण्ड में, प्रवासी चीनियों ने व्यापक स्तर पर स्थानीय समुदाय के साथ अन्तर्विवाह किए और घुल-मिल गए।
म्यांमार में चीनियों ने बहुत कम अन्तर्विवाह किए, लेकिन व्यापक रूप से बर्मा की संस्कृति को अपना लिया। मलेशिया और सिंगापुर में प्रवासी चीनियों ने एक विशिष्ट सामुदायिक पहचान बना रखी है। फिलिपिन्स में अनेक युवा चीनी प्रवासी अच्छी तरह घुल-मिल गए हैं, लेकिन अधिक आयु वाले को विदेशी माना जाता है।
चीन महाद्वीप और ताईवान में आप्रवासियों के साथ घरेलू संबंध विकसित हो रहे हैं और यह काफी जटिल है। कम्यूनिस्ट राष्ट्र निर्माण के प्रारंभ में चीनियों से केवल चीन के प्रति एकल निष्ठा से उम्मीद की गई थी। उत्प्रवासियों को पूंजीवादी घुसपैठियों के रूप में शक की नजर से देखा जाता था। डेंग जिआओपिंग के सुधारों के बाद चीनी डायस्पोरा से देश द्वारा चीन के आर्थिक विकास में सहायता के लिए आग्रह किया गया। फलतः उन्हें अनेक सुविधाएँ प्रदान की गईं और उनके लिए विशेष प्रावधान किए गए।
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